क्या आप बीवी बच्चों की ऐशों आराम की इच्छाएं पूरी कर पा रहे हैं? Are you able to fulfill the wishes of wife and children?

एक परेशान पिता ने बोला-मैं अपने बच्चों की ऐशो आराम की जरूरते पूरी नहीं कर पा रहा A troubled father said - I am not able to fulfill the needs of my children's luxury

SPRITUALITY

Dheeraj Kanojia

8/13/20231 min read

आजकल की खर्चीली दुनिया में बुनियादी जरूरतों भी महंगी हो गई है. वहीँ एक मिडिल क्लास पर अपने परिवार के लिए ऐशो आराम की चीजों का बंदोबस्त करने का दबाव बन गया है.

ऐसे ही एक परेशान पिता ने वृन्दावन धाम के राधा केलि कुञ्ज के महाराज जी से कहा- महाराज जी मैं एक अच्छा पिता नहीं हूँ, मैं अपने बीवी बच्चो की ऐशो आराम की जरूरते पूरी नहीं कर पा रहा.

महाराज जी ने कुछ रोचक कहानियो के अलावा एक हल पेश किया है. मुझे लगता है, हम सब इस हल को अपनाकर अपने जीवन की उलझनों को दूर कर सकते हैं.

महाराज जी कहते हैं- ब्रह्मा में सामर्थ्य नही कि वो भोग विलास की पूर्ति कर सके, तो तो तुम क्या अपने बच्चों की कर सकते हो.

वासना की कभी पूर्ति नहीं हो सकती। ना अपनी ना दूसरों की।

एक विद्यार्थी पैदल स्कूल जाता था। स्कूल तीन किलोमीटर दूर था। एक धनिमानी का लड़का साइकिल से निकला। उसको लगा यह तो बहुत बढ़िया है. वह घर आकर पिता से बोला, हमें साइकिल चाहिए, वरना हम कल स्कूल नहीं जाएंगे. पिता ने साइकिल दे दी.

दूसरे दिन वे साइकिल से जा रहा था, तो अन्य कोई बच्चा मोटर साइकिल से स्कूल जा रहा था. उसने अपने पिता से मोटरसाइकिल की मांग रखी. पिता ने ला दी. एक दिन बारिश हो रही थी, वह मोटर साइकिल पर स्कूल जाते हुए भीग गया. उसने किसी बच्चे को कार से जाते देखा, उसने पिता से कार की मांग की. वह अपने की पिता की इकलौती संतान था. इसलिए पिता ने जमीन बेचकर कार ला दी. एक दिन स्कूल जाते हुए उसकी कार जाम में फंस गई, ऊपर से हवाई जहाज जा रहा था. उसने सोचा ये तो और बढ़िया है, हवाई जहाज तो जाम में भी नहीं फंस सकता. उसने पिता से हवाई जहाज की मांग रख दी. पिता ने जूता उतारकर उसकी बहुत पिटाई की. पिता ने कहा, तुम अब कल से पैदल ही स्कूल जाना.

महाराज जी कहते है- यह वासना सुरसा की तरह मुंह फैलाती जाएगी। चाहे जितना कर लो। कभी तृप्ति होने वाली नहीं।

महाराज जी की सलाह

आपकी जैसी आर्थिक स्थिति है, वैसे ही जीवन में रहो. पढ़ाई लिखाई भजन करके आगे बढ़ो तो बात ठीक है। अगर आप सोचेगे कि हम अपने बच्चों की वासना पूर्ति कर दें। ना अपनी कर सकते हो ना बच्चों की कर सकते हो।

एक राजा ने एक बकरे को लेकर एक प्रतियोगिता रखी.

राजा ने प्रजा को कहा, अगर इसे तृप्त करके लाओंगे तो तुम्हे बड़ा ईनाम देंगे।

लोग अच्छी अच्छी पत्तियां उस बकरे को खवाते। फिर वे लोग राजा के पास बकरे को ले जाते और राजा जरा सा बकरे के सामने कुछ डालता तो बकरा स्वभाव वश पत्तियां चुन लेता। राजा बोलता देखो बकरा खा रहा है, इसका मतलब यह तृप्त नहीं हुआ.

एक चतुर आदमी जो रोज दोनों बाते देखता। वह राजा से बकरा मांग कर ले गया.

उसने बकरे के सामने घास डाली और जैसे ही बकरे ने घास खाने के लिए मुँह आगे किया. उसने बांस की एक बड़ी छड़ी से उसकी पिटाई कर दी. वह पुरे दिन ऐसा करता रहा, जैसे बकरा घास खाने के लिए मुँह आगे करता , वे छड़ी से उसकी पिटाई कर देता। बकरा डर गया. अब उसने सामने पड़ी हरी घास के आगे मुँह आगे करना ही बंद कर दिया.

वे राजा के पास बकरे को ले गया. वह खुद बकरे के सामने से छड़ी लेकर खड़ा हो गया. राजा ने बकरे के सामने घास डाली, लेकिन बकरा छड़ी देखकर डर गया, उसने खाने के लिए मुँह नहीं मारा.

राजा ने कहा, बकरे का पेट खाली है। बकरा भूखा है, लेकिन वह खा क्यों नहीं रहा.

चतुर आदमी ने कहा, आपने प्रतियोगिता में ऐसी कोई शर्त नहीं रखी थी. मैंने उसे तृप्त कर दिया है, इसलिए वे नहीं खा रहा है. मुझे मेरा इनाम दिजीये.

महाराज जी बोले- हमें भी उसी चतुर आदमी की तरह रहना है.

समझे यह वासना बकरा है। यह डंडे से मानेगी। चारे से नहीं मानेगी। जैसे ही वासना बढे, उसको डंडे से काबू करो. हम बीवी बच्चों के प्रति अनासक्त रहे. उन्हें स्पष्ट कर दो- जैसी मेरी आर्थिक स्थिति है, उसके अनुसार तुम्हारा भरण पोषण करेंगे, तुम्हारी वासनाओं की पूर्ति नहीं कर सकते। कोई नहीं कर सकता। वासनाएं बढ़ती चली जाती है।

जो भारत के सबसे बड़े धनी है वे विश्व के सबसे बड़े धनी बनना चाहते है। वाासना का कभी अंत नहीं है।

उपासना से वासना को नष्ट किया जाता है। वासना की पूर्ति से वासना का नाश नहीं होता है। समझ गए।