क्या आप यह निर्णय भगवान पर छोड़ सकते हैं कि आपको क्या चाहिए? Can you leave it to God to decide what you need?
आर्टिकल को पढ़ने से पहले आप इस सवाल का जवाब हाँ या ना में सोचे.
SPRITUALITY
जय श्री राधा जय श्री राधा
इस आर्टिकल की हेडिंग में पूछे गए सवाल कि आपको क्या चाहिए यह बात आप भगवान् पर छोड़ सकते है?, का जवाब अगर नहीं में है तो आप अपना जीवन गलत तरीके से जी रहे है. हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं पढ़िए आगे...
सत्संग के बिखरे मोती’ पुस्तक की प्रथम माला से पाठ शुरू किया था. आज आगे की कर्म संख्या से आगे के उपदेश लिखे गए है.
श्री भाई जी (हनुमानप्रसादजी पोद्दार)- के दैनिक सत्संग में से लिखे नोट्स को गीता प्रेस की ओर से ‘सत्संग के बिखरे मोती’ पुस्तक में पेश किया गया है. इससे आपको बहुत ज्यादा फायदा मिलेगा.
सत्संग के बिखरे मोती
प्रथम माला
२०. हारे को हरिनाम – इसी उपाय से सबका मंगल दिखता है और किसी भी उपाय में राग द्वेष उत्पन्न होकर फँस जाने का भय है.
२१. भगवान पर विश्वास हो, उनकी कृपा का भरोसा हो और नाम-जप होता रहे तो अपने आप ही निर्भयता आएगी, साहस आयेगा. विपत्ति का टलना भी इसी उपाय से होगा.
२२. मनुष्य जब सब उपायों से हार जाता है तब उसे हरिनाम सूझता है, तभी वह हरिनाम को पकड़ता है और तभी उसे विजय मिलती है.
२३. भगवान का आश्रय ग्रहण करो, भगवान की कृपा पर विश्वास करो, जिससे मन में अशांति नहीं रहे.
२४. हमें क्या चाहिए, इस बात को हम भूले हुए हैं.
२५. हम अज्ञानवश ऐसी चीज की प्राप्ति की इच्छा कर बैठते हैं, जिसकी हमें आवश्यकता नहीं है और जिसमें हमारा अकल्याण है.
२६. किस चीज की प्राप्ति में हमारा भला है, इस बात को ठीक ठाक भगवान जानते हैं.
२७. हमें क्या चाहिए, हम ठीक-ठाक नहीं जानते, चाहने में भूल कर बैठते हैं. बहुत बार तो ऐसी वस्तु चाह बैठते हैं. जिसकी प्राप्ति महान दुखायिनी होती है. इसलिए हमें क्या चाहिए, यह विचार भगवान पर छोड़ देना चाहिए. इस बात को सोचें भगवान्, उस वस्तु का संग्रह करें भगवान् और रक्षा करें भगवान्. फिर मंगलमय भगवान् हमारे लिए जो उचित समझेंगे देंगे और इस उपाय से हमको अविनाशी पद बिना ही परिश्रम प्राप्त हो जाएगा.
२८. भगवान् ने कहा है-‘योगक्षेमं वहाम्यहम. योग (अप्राप्त की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त का रक्षण) दोनों स्वयं मेरे जिम्मे रहें-यह भगवान् की प्रतिज्ञा है. इससे बड़ा आश्वासन और क्या हो सकता है.
२९. भगवान् के ऊपर योगक्षेमं का भार छोड़ देने में ही परम लाभ है.