यह काम करो, ऐशो आराम, मान सत्कार बड़ाई मुफ्त में मिलेगी
Do this work, you will get luxuries, respect and praise for free.
SPRITUALITY


यह काम करो, ऐशो आराम, मान सत्कार बड़ाई मुफ्त में मिलेगी
घरों में बहनें, माताएँ, भाई, बच्चे, छोटे-बड़े सब काम करते हैं; परंतु बड़ी भारी भूल होती है यह कि आसक्ति, कामना और स्वार्थके साथ हमलोग सम्बन्ध जोड़ लेते हैं; किंतु उससे लाभ कुछ नहीं होता । लौकिक लाभ भी नहीं होता; फिर अलौकिककी तो बात ही क्या । इच्छावालेको लोग अच्छा भी नहीं कहते । कहते हैं‒‘अमुक बड़ा स्वार्थी है, पेटू है, चट्टू है ।’ उसके चाहनेपर हम कौन-सा अधिक दे देंगे ? उलटा कम देंगे । स्वार्थका सम्बन्ध रखनेवालेको अधिक देना कोई नहीं चाहता । किसी साधु-ब्राह्मणको कुछ देंगे तो त्यागी देखकर ही देंगे या भोगी-रागी समझकर देंगे ? घरमें भी रागीसे, भोगीसे वस्तु छिपायी जाती है । जो रागी नहीं होगा, उसके सामने वस्तु बेरोक-टोक आयेगी । रागीको वस्तु मिलनेमें भी बाधा लगेगी और कल्याणमें तो महती बाधा लगेगी ही । इसके विपरीत अपना कर्तव्य समझकर सेवा करोगे तो सेवा तो मूल्यवती होगी और वस्तु अनायासमें मिलेगी । आराम मुफ्तमें मिलेगा । मान-सत्कार-बड़ाई मुफ्तमें मिलेगी । पर चाहोगे तो फँस जाओगे । यह बात गीता ग्रन्थि खोलकर बताती है । तुम जो काम करो, इस रीतिसे करो ।
यह ब्लॉग https://satcharcha.blogspot.com से है. यह विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. स्वामीजीका जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।