यह काम करो, ऐशो आराम, मान सत्कार बड़ाई मुफ्त में मिलेगी

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यह ब्लॉग https://satcharcha.blogspot.com से है. यह विचार स्वामी रामसुखदास जी के है.

4/26/20241 min read

यह काम करो, ऐशो आराम, मान सत्कार बड़ाई मुफ्त में मिलेगी

घरों में बहनें, माताएँ, भाई, बच्चे, छोटे-बड़े सब काम करते हैं; परंतु बड़ी भारी भूल होती है यह कि आसक्ति, कामना और स्वार्थके साथ हमलोग सम्बन्ध जोड़ लेते हैं; किंतु उससे लाभ कुछ नहीं होता । लौकिक लाभ भी नहीं होता; फिर अलौकिककी तो बात ही क्या । इच्छावालेको लोग अच्छा भी नहीं कहते । कहते हैं‒‘अमुक बड़ा स्वार्थी है, पेटू है, चट्टू है ।’ उसके चाहनेपर हम कौन-सा अधिक दे देंगे ? उलटा कम देंगे । स्वार्थका सम्बन्ध रखनेवालेको अधिक देना कोई नहीं चाहता । किसी साधु-ब्राह्मणको कुछ देंगे तो त्यागी देखकर ही देंगे या भोगी-रागी समझकर देंगे ? घरमें भी रागीसे, भोगीसे वस्तु छिपायी जाती है । जो रागी नहीं होगा, उसके सामने वस्तु बेरोक-टोक आयेगी । रागीको वस्तु मिलनेमें भी बाधा लगेगी और कल्याणमें तो महती बाधा लगेगी ही । इसके विपरीत अपना कर्तव्य समझकर सेवा करोगे तो सेवा तो मूल्यवती होगी और वस्तु अनायासमें मिलेगी । आराम मुफ्तमें मिलेगा । मान-सत्कार-बड़ाई मुफ्तमें मिलेगी । पर चाहोगे तो फँस जाओगे । यह बात गीता ग्रन्थि खोलकर बताती है । तुम जो काम करो, इस रीतिसे करो ।

यह ब्लॉग https://satcharcha.blogspot.com से है. यह विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. स्वामीजीका जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।