गृहस्थाश्रम में कैसे रहना चाहिये ?

शास्त्रविहित यज्ञ आदि कर्म करके ब्रह्मलोक आदि लोकों की प्राप्ति करना भी खास बात नहीं है, क्योंकि वहाँ जाकर फिर पीछे लौटकर आना ही पड़ता है

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Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

3/20/20241 min read

प्रश्न - गृहस्थाश्रममें कैसे रहना चाहिये ?

उत्तर- यह मनुष्य-शरीर और इसमें भी गृहस्थ-आश्रम उद्धार करने की पाठशाला है। भोग भोगने और आराम करने के लिये यह मनुष्य-शरीर नहीं है।

एहि तन कर फल बिषय न भाई (मानस, उत्तर० ४४।१)।

शास्त्रविहित यज्ञ आदि कर्म करके ब्रह्मलोक आदि लोकों की प्राप्ति करना भी खास बात नहीं है, क्योंकि वहाँ जाकर फिर पीछे लौटकर आना ही पड़ता है-आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनः (गीता ८।१६) ।

अतः प्राणिमात्र के हित की भावना रखते हुए गृहस्थ-आश्रममें रहना चाहिये और अपनी शक्ति के अनुसार तन, मन, बुद्धि, योग्यता, अधिकार आदिके द्वारा दूसरों को सुख पहुँचाना चाहिये। दूसरों की सुख-सुविधा के लिये अपने सुख-आरामका त्याग करना ही मनुष्य की मनुष्यता है।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.