दहेज़ पाप है तो फिर शास्त्रों में इसका विधान क्यों है?

If dowry is a sin then what is its provision in the scriptures?

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

4/6/20241 min read

प्रश्न- क्या दहेज लेना पाप है?

उत्तर-हाँ, पाप है।

प्रश्न - अगर पाप है तो फिर शास्त्रोंमें इसका विधान क्यों है?

उत्तर- शास्त्रोंमें केवल दहेज देनेका विधान है, लेनेका विधान नहीं है। दहेज लेना नहीं चाहिये और न लेनेकी ही महिमा है। कारण कि दहेज देना तो हाथकी बात है, पर दहेज लेना हाथकी बात नहीं है।

चाहना दो तरहकी होती है- (१) हमारी चीज हमारेको

मिल जाय-यह चाहना न्याययुक्त है, परन्तु परमात्मप्राप्तिमें यह चाहना भी बाधक है। (२) दूसरोंकी चीज हमारेको मिल जाय-यह चाहना नरकोंमें ले जानेवाली है। ऐसे ही दहेज लेनेकी जो इच्छा है, वह नरकोंमें ले जानेवाली है। दहेज कम मिले, ज्यादा मिले और न भी मिले - यह तो प्रारब्धपर निर्भर है, पर अन्यायपूर्वक दूसरोंका धन लेनेकी जो इच्छा है, वह घोर नरकोंमें ले जानेवाली है। मनुष्य-शरीर प्राप्त करके घोर नरकॉमें जाना कितना बड़ा नुकसान है, पतन है। अतः मनुष्यको कम- से-कम घोर नरकोंमें ले जानेवाली इच्छाका, पराये धनकी इच्छाका तो त्याग करना ही चाहिये।

वास्तवमें धन प्रारब्धके अनुसार ही मिलता है, इच्छामात्रसे नहीं। अगर धन इच्छामात्रसे मिलता तो कोई भी निर्धन नहीं रहता। धनकी इच्छा कभी किसीकी पूरी हुई नहीं, होगी नहीं और हो सकती भी नहीं। उसका तो त्याग ही करना पड़ेगा। धन मिलनेवाला हो तो इच्छा न रखनेसे सुगमतापूर्वक मिलता है और इच्छा रखनेसे कठिनतापूर्वक, पाप-अन्यायपूर्वक मिलता है। गीतामें अर्जुनने पूछा कि मनुष्य न चाहता हुआ भी पाप क्यों कर बैठता है? तो भगवान्ने उत्तर दिया कि कामना ही सम्पूर्ण पापोंका मूल है (३।३६-३७)।

पुराने जमानेमें दहेजमें बेटेके ससुरालसे आया हुआ धन बाहर ही वितरित कर दिया करते थे, अपने घरमें नहीं रखते थे और 'दूसरोंकी कन्या दानमें ली है' - इसके लिये प्रायश्चित्तरूपसे यज्ञ, दान, ब्राह्मण-भोजन आदि किया करते थे। कारण कि दूसरोंकी कन्या दानमें लेना बड़ा भारी कर्जा (ऋण) है। परन्तु गृहस्थाश्रममें कन्या दानमें लेनी पड़ती है; अतः उनका यह भाव रहता था कि हमारे घर कन्या होगी तो हम भी कन्यादान करेंगे।

जो ब्राह्मण विधि-विधानसे गाय आदिको दानमें लेते हैं, वे भी उसके लिये प्रायश्चित्तरूपसे यज्ञ, गायत्री-जप करते हैं- ऐसा हमने देखा है। जब दूसरोंका धन लेना भी दोष है, तो फिर दहेजमें धन लेना दोष है ही। अगर कहीं दहेज लेना भी पड़े तो केवल देनेवालेकी इच्छापूर्ति, प्रसन्नताके लिये ही लेना चाहिये। अपनी किंचिन्मात्र भी लेनेकी इच्छा नहीं हो और केवल देने वाले की प्रसन्नता के लिए ही थोडा लिया जाए, तो वह लेना भी देने के सामान है.

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.