माता का दर्जा ऊँचा है या पिता का ? और ऊंचा होने में क्या कारण है?

Is the status of mother or father higher? And what is the reason for getting heavy?

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

4/11/20241 min read

प्रश्न- माता का दर्जा ऊँचा है या पिताका ? और ऊँचा होने में क्या कारण है?

उत्तर- ऊँचा दर्जा माँका ही है। माँका दर्जा पितासे सौ गुरु अधिक बताया गया है- 'सहस्त्रं तु पितॄन्माता गौरवेणातिरिच्यते (मनु० २।१४५)। रामजी जब वनवासके लिये जाने लगे, तब है माँके पास गये और माँके चरणोंमें पड़कर कहा कि 'माँ! मुझे वनवासकी आज्ञा हुई है।' माँ ने कहा कि अगर केवल पिताकी ऐसे आज्ञा है तो फिर माँको बड़ी समझकर तुम वनमें मत जाओ - जौं केवल पितु आयसु ताता । तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता।

(मानस, अयोध्या० ५६।१)

हाँ, अगर तुम्हारी छोटी माँ और पिताने वनमें जानेके लिये कह दिया है तो * वन तुम्हारे लिये सौ अयोध्या के समान है-

जौ पितु मातु कहेउ बन जाना । तौ कानन सत अवध समाना।

(मानस, अयोध्या० ५६।२)

पिता तो धन-सम्पत्ति आदि से पुत्रका पालन-पोषण करता है। पर माँ अपना शरीर देकर पुत्रका पालन-पोषण करती है। धन- सम्पत्ति आदि तो ममताकी वस्तुएँ हैं और शरीर अहंताकी। ममतासे अहंता नजदीक होती है। ममताकी वस्तुएँ आती-जाती रहती हैं और शरीर अपेक्षाकृत रहता है। अतः माँका दर्जा ऊँचा होना ही चाहिये।

माँ ने अपनी युवावस्थाका नाश किया है। अपना शरीर देकर, अपना दूध पिलाकर पालन-पोषण किया है। माँ ने दाईका, नाई का, धोबी का, दर्जी का, गुरु का काम भी किया है! और तो क्या, टट्टी- नो पेशाब उठाकर मेहतरका काम भी किया है! वह काम भी भार रूपसे नहीं, प्रत्युत बड़े स्नेहपूर्वक, ममतापूर्वक, उत्साहपूर्वक किया है और बदले में लेनेकी भावना नहीं रखी है। जब बच्चा बीमार हो जाता है, तब माँ के शरीरका बल घट जाता है। अतः संसार में माँ के समान बच्चेका पालन-पोषण करने वाला और कौन वे है! 'मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम्।' इसीलिये माँ का दर्जा ऊँचा है। शास्त्रोंमें आया है कि पुत्र साधु-संन्यासी बन जाय, फिर भी यदि माँ सामने आ जाय तो वह माँको साक्षात् दण्डवत् प्रणाम करे। इतना ऊँचा दर्जा और किसका हो सकता है!

* कौसल्या अम्बाने अपनेसे भी अधिक छोटी माँ (विमाता) का आदा करनेकी जो बात कही है, यह उनका उदारभाव है। कौसल्याने सबको यह शिक्ष दी है कि माँसे भी विमाताका अधिक आदर करना चाहिये, जिससे परिवारले परस्पर प्रेम बना रहे

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.