जानिये कैसे इच्छा नहीं करके और चुप रहकर भगवान् मिलेंगे, श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी के मुख से

Know how you can find God by not desiring anything and by remaining silent, from the mouth of revered Swami Shri Ram Sukhdasji

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

6/20/20241 min read

जानिये कैसे इच्छा नहीं करके और चुप रहकर भगवान् मिलेंगे, श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी के मुख से

राम राम

अन्तिम प्रवचन

* (ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के ३ जुलाई, २००५ को परमधाम पधारने के पूर्व दिनांक २९-३० जून, २००५ को गीताभवन, स्वर्गाश्रम में दिया गया अन्तिम प्रवचन)

एक बहुत श्रेष्ठ, बड़ी सुगम, बड़ी सरल बात है । वह यह है कि किसी तरह की कोई इच्छा मत रखो । न परमात्मा की, न आत्मा की, न संसार की, न मुक्ति की, न कल्याण की, कुछ भी इच्छा मत करो और चुप हो जाओ । शान्त हो जाओ । कारण कि परमात्मा सब जगह शान्तरूप से परिपूर्ण है । स्वतः-स्वाभाविक सब जगह परिपूर्ण है । कोई इच्छा न रहे, किसी तरह की कोई कामना न रहे तो एकदम परमात्मा की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, पूर्णता हो जाय !

यह सबका अनुभव है कि कोई इच्छा पूरी होती है, कोई नहीं होती । सब इच्छाएँ पूरी हो जायँ यह नियम नहीं है । इच्छाओं का पूरा करना हमारे वश की बात नहीं है, पर इच्छाओं का त्याग करना हमारे वश की बात है । कोई भी इच्छा, चाहना नहीं रहेगी तो आपकी स्थिति स्वतः परमात्मा में होगी । आपको परमात्मतत्त्व का अनुभव हो जायगा । कुछ चाहना नहीं, कुछ करना नहीं, कहीं जान नहीं, कहीं आना नहीं, कोई अभ्यास नहीं । बस, इतनी ही बात है । इतने में ही पूरी बात हो गयी ! इच्छा करने से ही हम संसार में बँधे हैं । इच्छा सर्वथा छोड़ते ही सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मा में स्वतः-स्वाभाविक स्थिति है ।

प्रत्येक कार्य में तटस्थ रहो । न राग करो, न द्वेष करो ।

तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार ।

राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार ॥

(दोहावली ९४)

एक क्रिया है और एक पदार्थ है । क्रिया और पदार्थ यह प्रकृति है । क्रिया और पदार्थ दोनों से संबंध-विच्छेद करके एक भगवान्‌ के आश्रित हो जायँ । भगवान्‌ के शरण हो जायँ, बस । उसमें आपकी स्थिति स्वतः है । ‘भूमा अचल शाश्वत अमल सम ठोस है तू सर्वदा’‒ ऐसे परमात्मा में आपकी स्वाभाविक स्थिति है । स्वप्न में एक स्त्रीका बालक खो गया । वह बड़ी व्याकुल हो गयी । पर जब नींद खुली तो देखा कि बालक तो साथ में ही सोया है‒ तात्पर्य है कि जहाँ आप हैं, वहाँ परमात्मा पूरे-के-पूरे विद्यमान है । आप जहाँ हैं, वहीं चुप हो जाओ !!

‒२९ जून २००५, सायं लगभग ४ बजे

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श्रोता‒कल आपने बताया कि कोई चाहना न रखे । इच्छा छोड़ना और चुप होना दोनों में कौन ज्यादा फायदा करता है ?

स्वामीजी‒मैं भगवान्‌ का हूँ, भगवान्‌ मेरे हैं, मैं और किसी का नहीं हूँ, और कोई मेरा नहीं है । ऐसा स्वीकार कर लो । इच्छारहित होना और चुप होना‒दोनों बातें एक ही हैं । इच्छा कोई करनी ही नहीं है, भोगों की, न मोक्ष की, न प्रेम की, न भक्ति की, न अन्य किसी की ।

श्रोता‒इच्छा नहीं करनी है, पर कोई काम करना हो तो ?

स्वामीजी‒काम उत्साह से करो, आठों पहर करो, पर कोई इच्छा मत करो । इस बात को ठीक तरह से समझो । दूसरों की सेवा करो, उनका दुःख दूर करो, पर बदले में कुछ चाहो मत । सेवा कर दो और अन्तमें चुप हो जाओ । कहीं नौकरी करो तो वेतन भले ही ले लो, पर इच्छा मत करो ।

सार बात है कि जहाँ आप हैं, वहीं परमात्मा हैं । कोई इच्छा नहीं करोगे तो आपकी स्थिति परमात्मा में ही होगी । जब सब परमात्मा ही हैं तो फिर इच्छा किस की करें ? संसार की इच्छा है, इसलिये हम संसार में हैं । कोई भी इच्छा नहीं है तो हम परमात्मा में हैं ।

‒ ३० जून २००५, दिनमें लगभग ११ बजे

‘एक संतकी वसीयत’ पुस्तक से, पुस्तक कोड- 1633, पृष्ठ- संख्या- १४-१५, गीताप्रेस गोरखपुर

↪ ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज