प्रश्न- आज महँगाई के जमाने में अधिक सन्तान होगी तो उनका पालन-पोषण आदि कैसे करेंगे ?
Question: In today's era of inflation, if we have more children then how will we raise them?
महापाप से बचो AVOD THE BIGOTRY
प्रश्न- आज महँगाई के जमाने में अधिक सन्तान होगी तो उनका पालन-पोषण आदि कैसे करेंगे ?
उत्तर- आप विचार करें कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है; अतः जनसंख्या बढ़ेगी, सन्तान अधिक होगी तो उसके पालन-पोषणकी व्यवस्था भी जरूर होगी। पहले जमानेमें हमारी यह देखी हुई बात है कि जिस वर्ष टिड्डियाँ अधिक आती थीं, उस वर्ष खेती अच्छी होती थी, अकाल नहीं पड़ता था। टिड्डियोंके आनेपर लोग उत्साहसे कहते थे कि इस बार वर्षा अधिक होगी; क्योंकि इतने जन्तु आये हैं तो उनके भोजनकी व्यवस्था (खेती) भी अधिक होगी। भगवान्की जो व्यवस्था पहले थी, वह आज भी जरूर होगी। आप परिवार नियोजन करते हैं और व्यवस्थाका भार अपनेपर लेते हैं, इसीका यह परिणाम है कि आज व्यवस्था करनेमें मुश्किल हो रही है। अतः आप अपनेपर भार मत लो और अपने कर्तव्यमें तत्पर रहो तो आपके और परिवारके पालन-पोषणकी व्यवस्था भगवान्की तरफसे जरूर होगी।
पहले राजा-महाराजाओंके यहाँ हजारों सन्तानें पैदा होती थीं और उनका पालन-पोषण भी होता था। जैसे, राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। राजा अग्रसेनके अनेक पुत्र हुए, जिनके वंशज आज अग्रवाल कहलाते हैं। धृतराष्ट्रके सौ पुत्र थे। इस प्रकार एक-एक आदमीकी सैकड़ों, हजारों सन्तानें हुई हैं। कोई जानना चाहे तो मैं बता सकता हूँ कि गाँव-के-गाँव एक-एक आदमीकी सन्तानोंसे बसे हुए हैं। यह प्रत्यक्ष देखनेमें आता है कि जो वास्तवमें विरक्त सन्त होते हैं, जो अपने निर्वाहकी परवाह ही नहीं करते, चेष्टा ही नहीं करते, उनके निर्वाहकी व्यवस्था जनता करती है। जो अपने निर्वाहके लिये चेष्टा करते हैं, उनकी अपेक्षा उन विरक्त सन्तोंके निर्वाह का प्रबन्ध अच्छा होता है।
आप थोड़ा विचार करें; जो मुसलमान भाई हैं, वे चार-चार विवाह करते हैं। हमने सुना है कि एक भाईकी डेढ़ सौ सन्तानें हुई; और एक भाईके उन्नीस बालक हुए, उनमेंसे दो मर गये और सत्रह मौजूद हैं। इस प्रकार वे प्रायः परिवार नियोजन नहीं करते, फिर भी उनकी सन्तानका पालन-पोषण हो रहा है। क्या केवल हिन्दू ही अन्न खाते हैं, कपड़े पहनते हैं, पढ़ाई करते हैं? दूसरे लोग क्या अन्न नहीं खाते, कपड़े नहीं पहनते, पढ़ाई नहीं करते? मुसलमान भाई तो कहते हैं कि सन्तान होना खुदाका विधान है, उसको बदलनेका अधिकार मनुष्यको नहीं है। जो उसके विधानको बदलते हैं, वे अनधिकार चेष्टा करते हैं। वास्तवमें परिवार नियोजन करनेवालोंकी जनसंख्या कम हो जाती है। अतः मुसलमानोंने यह सोचा कि परिवार- नियोजन नहीं करेंगे तो अपनी जनसंख्या बढ़ेगी और जनसंख्या बढ़नेसे अपना ही राज्य हो जायगा; क्योंकि वोटों का जमाना है। इसलिये वे केवल अपनी संख्या बढ़ानेकी धुनमें हैं। परंतु हिन्दू केवल अपनी थोडी-सी सुख-सुविधाके लिये नसबन्दी, गर्भपात आदि महापाप करनेमें लगे हुए हैं। अपनी संख्या तेजीसे कम हो रही है- इस तरफ भी उनकी दृष्टि नहीं है और परलोक में इस महापाप का भयंकर दण्ड भोगना पड़ेगा-इस तरफ भी उनकी दृष्टि नहीं है। केवल खाने- पीने, सुख भोगनेकी तरफ तो पशुओंकी भी दृष्टि रहती है। अगर यही दृष्टि मनुष्यकी भी है तो यह मनुष्यता नहीं है।
हिन्दू-धर्म में मनुष्य-जन्म को दुर्लभ बताया गया है और कल्याणको सुगम बताया गया है। अतः कोई जीव मनुष्य-जन्म में, हिन्दू-धर्म में आ रहा हो तो उसको रोकना नहीं चाहिये। अगर आप उसको रोक दोगे तो वह जीव विधर्मियोंके यहाँ पैदा होगा और आपके धर्मका, हिन्दुओंका नाश करेगा; क्योंकि जीवका ऋणानुबन्ध केवल एकके साथ नहीं होता, प्रत्युत कइयों के साथ होता है।
कौरव और पाण्डव-दोनों की नौ-नौ अक्षौहिणी सेनाएँ थीं। परंतु एक अक्षौहिणी नारायणी सेना और एक अक्षौहिणी शल्यकी सेना कौरवों की तरफ चली जानेसे कौरवों की सेना पाण्डवोंकी सेनासे चार अक्षौहिणी बढ़ गयी अर्थात् पाण्डवोंकी सेना सात अक्षौहिणी और कौरवोंकी सेना ग्यारह अक्षौहिणी हो गयी! इसी प्रकार हिन्दूलोग नसबन्दी, आपरेशन आदिके द्वारा सन्तति-निरोध करेंगे तो जो सन्तान उनके यहाँ पैदा होनेवाली थी, वह विधर्मियोंके यहाँ पैदा हो जायगी। जैसे, अबतक हिन्दुओंके यहाँ लगभग बारह करोड़ शिशुओंका जन्म रोका गया है *। अतः वे बारह करोड़ शिशु गोघातक विधर्मियोंके यहाँ जन्म लेंगे तो विधर्मियोंकी संख्या हिन्दुओंकी संख्यासे चौबीस करोड़ बढ़ जायगी। विधर्मियों की संख्या बढ़ेगी तो फिर वे हिन्दुओंका ही नाश करेंगे। अतः हिन्दुओंको अपनी सन्तान-परम्परा नष्ट नहीं करनी चाहिये और गोघातकोंकी संख्या बढ़ाकर गोहत्याके पापमें भागीदार नहीं बनना चाहिये।
* जिन व्यक्तियोंने सन्तति-निरोध किया है, उनकी आगे होनेवाली कई सन्तानोंका भी स्वतः निरोध हुआ है। अगर प्रत्येक व्यक्तिकी आगे होनेवाली दो या तीन सन्तानोंका भी निरोध माना जाय तो यह संख्या चौबीस या छत्तीस करोड़तक पहुँच जाती है!
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.
स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।