प्रश्न-गर्भ में जीव (प्राण) तो रहता नहीं, बाद में आता है, फिर गर्भपात पाप कैसे ?

Question: There is no life in the womb, it comes later, then how is abortion a sin?

महापाप से बचो AVOD THE BIGOTRY

गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तक ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश. पुस्तक के लेखक स्वामी रामसुखदास जी हैं.

8/24/20241 min read

प्रश्न-गर्भ में जीव (प्राण) तो रहता नहीं, बाद में आता है, फिर गर्भपात पाप कैसे ?

उत्तर-पुरुष के वीर्य को एक बूंद में हजारों जीव होते हैं। उनमें से जो जीव रज के साथ चिपक जाता है, गर्भाष्य में रह जाता है, वही बढ़कर गर्भ बनता है। जीव के बिना न तो वीर्य रज के साथ चिपक सकता है और न गर्भ बढ़ सकता है। प्राण-शक्ति के बिना गर्भ बढ़ ही नहीं सकता। जीव में प्राणशक्ति पहले सूक्ष्म होती है, पर गर्भ में आते ही प्राणशक्ति स्थूल हो जाती है और गर्भ बढ़ने लगता है। गर्भ बढ़ने पर जब प्राणशक्ति विशेषता से प्रतीत होती है और गर्भ में हलचल होने लगती है, तब लोग कह देतें है कि गर्भ में जीव आ गया।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.

स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।