प्रश्न-किसी का गर्भ अपने-आप गिर जाए तो ?

Question – What if someone's pregnancy gets aborted on its own?

महापाप से बचो AVOD THE BIGOTRY

गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तक ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश. पुस्तक के लेखक स्वामी रामसुखदास जी हैं.

8/24/20241 min read

प्रश्न-किसी का गर्भ अपने-आप गिर जाए तो ?

उत्तर-यह एक रोग है और उसका इलाज करना चाहिए। एक स्त्री के पांच छह गर्भ गिर गए। एक संत ने उसके परिवारवालों को बताया कि उसके गर्भाषय में गरमी बहुत है, जिससे गर्भ झुलस जाता है और गिर जाता है; अतः इसके लिए एक उपाय करो। जब उसके गर्भ रह जाए तब वह इस विधि से गाय का दूध पिये। एक बर्तन पर दूध छाननेवाला कपड़ा डाल दें और कपड़े पर महीन पिसी मिश्र रख दें। फिर उस पर गाय का दूध दुहें, जिससे वह मिश्री दूध में मिलकर बर्तन में चली जाएगी। यह धारोश्ण दूध वह स्त्री तत्काल गाय के सामने ही बैठकर प्रतिदिन प्रातः खाली पेट एक महीने तक पिये। सन्त के कहे अनुसार उस स्त्री ने दूध पिया तो उसका गर्भ गिरा नहीं और उसकी संतान हो गई। वह सन्तान अब भी जीवित है। इस रोग को मिटाने की कोई ओशेधियों हैं, जिनको आयुर्वेद में निश्णात अनुभवी वैद्य से लेना चाहिए।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.

स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।