प्रश्न-गर्भपात करने से क्या हानि है ?

Question-What is the harm in abortion?

महापाप से बचो AVOD THE BIGOTRY

गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तक ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश. पुस्तक के लेखक स्वामी रामसुखदास जी हैं.

8/26/20241 min read

प्रश्न-गर्भपात करने से क्या हानि है ?

उत्तर-गर्भपात से तो हानि-ही-हानि है। कृत्रिम गर्भस्त्राव, गर्भपात कराने से स्त्री का शरीर खराब हो जाता है, कमजोर हो जाता है। जवानी अवस्था में भले ही कमजोरी का पता न लगे पर थोड़ी अवस्था ढलने पर इसका पता लगने लगेगा। जब जक शरीर खून बनता है, तब तक कमजोरी का पूरा पता नहीं लगता, पर खून बनना कम होने पर कमजोरी का पता लगता ही है। गर्भपात से बहुतों को प्रदर हो जाता है। इसके सिवाय गर्भपात से खून गिरने का एक रास्ता खुल जाता है।

बच्चा पैदा होने से स्त्री का शरीर खराब न हीं होता, क्योंकि बच्चा पैदा होना प्राकृत है और वह समय पर होता है। तात्पर्य है कि प्राकृत चीजों से स्वाभाविक ही खराबी पैदा नहीं होती, खराबी तो कृत्रिम चीजों से ही होती है।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.

स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।