घर में कुत्ता पालना चाहिये या नहीं ?
Should a dog be kept at home or not?
SPRITUALITY
प्रश्न-घर में कुत्ता पालना चाहिये या नहीं ?
उत्तर- घरमें कुत्ता नहीं रखना चाहिये। कुत्ते का पालन करने वाला नरक में जाता है. महाभारत में आया है कि जब पाण्डव और द्रौपदी वीरसंन्यास लेकर उत्तर की ओर चले चलते-चलते भीमसेन आदि सभी गिर गये। अन्तमें जब युधिष्ठि भी लड़खड़ा गये, तब इन्द्रकी आज्ञासे मातलि रथ लेकर वह आया और युधिष्ठिरसे कहा कि आप इसी शरीरसे स्वर्ग पधारो युधिष्ठिरने देखा कि एक कुत्ता उनके पास खड़ा है। उन्होंने कह कि यह कुत्ता मेरी शरण में आया है; अतः यह भी मेरे साथ स्वर्गमें चलेगा। इन्द्र ने युधिष्ठिर से कहा-
स्वर्गे लोके श्ववतां नास्ति धिष्ण्यमिष्टापूर्तं क्रोधवशा हरन्ति।
ततो विचार्य क्रियतां धर्मराज त्यज श्वानं नात्र नृशंसमस्ति ।
(महाभारत, महाप्र० ३।१०)
'धर्मराज ! कुत्ता रखनेवालोंके लिये स्वर्गलोकमें स्थान नहीं है। उनके यज्ञ करने और कुआँ, बावड़ी आदि बनवानेका जो पुण्य होता है, उसे क्रोधवश नामक राक्षस हर लेते हैं। इसलिये सोच-विचारकर काम करो और इस कुत्तेको छोड़ दो। ऐसा करनेमें कोई निर्दयता नहीं है।'
युधिष्ठिरने कहा कि मैंने इसका पालन नहीं किया है, यह - तो मेरी शरणमें आया है। मैं इसको अपना आधा पुण्य देता हूँ, इसीसे यह मेरे साथ चलेगा। युधिष्ठिरके ऐसा कहनेपर उस कुत्तेमेंसे धर्मराज प्रकट हो गये और बोले कि मैंने तेरी परीक्षा ली थी. तुमने मेरे पर विजय कर ली, अब चलो स्वर्ग ! स्वच्छता महाभारतमें आया है- तात्पर्य है कि गृहस्थको घरमें कुत्ता नहीं रखना चाहिये।
भिन्नभाण्डं च खट्वां च कुक्कुटं शुनकं तथा।
अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुहः ।।
भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः ।
कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नन्ति देवताः ।
वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं तस्माद् वृक्षं न रोपयेत् ॥
(महाभारत, अनु० १२७। १५-१६)
'घरमें फूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्षका होना अच्छा नहीं माना गया है। फूटे बर्तनमें कलियुगका वास कहा गया है। टूटी खाट रहनेसे धनकी हानि होती है। मुर्गे और कुत्तेके रहनेपर देवता उस घरमें हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकानके अन्दर कोई बड़ा वृक्ष होनेपर उसकी जड़के भीतर साँप, बिच्छू आदि जन्तुओंका रहना अनिवार्य हो जाता है, इसलिये घरके भीतर पेड़ न लगाये।'
कुत्ता महान् अशुद्ध, अपवित्र होता है। उसके खान-पानसे, स्पर्शसे, उसके जगह-जगह बैठनेसे गृहस्थके खान-पानमें, रहन- सहनमें अशुद्धि, अपवित्रता आती है और अपवित्रताका फल भी अपवित्र (नरक आदि) ही होता है।
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.