गृहस्थ का धर्म तो पहले संन्यासी आदि को भोजन देने का है और संन्यासी का धर्म गृहस्थ के भोजन करने के बाद भिक्षा के लिये जानेका है, तो दोनों बातें कैसे ?

The duty of a householder is to first give food to the Sanyasi etc. and the duty of a Sanyasi is to go for alms after the householder has had his food, so how can both be said?

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

3/30/20241 min read

प्रश्न- गृहस्थ का धर्म तो पहले संन्यासी आदि को भोजन देनेका है और संन्यासी का धर्म गृहस्थ के भोजन करने के बाद भिक्षा के लिये जानेका है, तो दोनों बातें कैसे ?

उत्तर- गृहस्थको चाहिये कि रसोई बन जानेपर पहले बलिवैश्वदेव कर ले, फिर अतिथि आ जाय तो उसको यथाशक्ति भोजन दे और अतिथि न आये तो एक गाय दुहनेमें जितना समय लगता है, उतने समयतक दरवाजेके बाहर खड़े होकर अतिथिकी प्रतीक्षा करे। अतिथि न आये तो उसका हिस्सा अलग रखकर भोजन कर ले।

संन्यासी कुछ भी संग्रह नहीं करता। अतः जब उसको भूख लगे, तब वह भिक्षाके लिये गृहस्थके घरपर जाय। जब गृहस्थ भोजन कर ले और बर्तन माँजकर अलग रख ले, उस समय वह भिक्षाके लिये जाय। तात्पर्य है कि गृहस्थपर भार न पड़े, उसकी रसोई कम न पड़े। घरमें एक-दो आदमियोंकी रसोई बनी हो और भिक्षुक आ जाय तो रसोई कम पड़ेगी! हाँ, घरमें पाँच-सात आदमियोंकी रसोई बनी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा; परन्तु उस घरपर भिक्षुक ज्यादा आ जायँ तो उनपर भी भार पड़ेगा। अतः गृहस्थके भोजन करनेके बाद ही संन्यासीको भिक्षाके लिये जाना

चाहिये और जो बचा हो, वह लेना चाहिये। संन्यासीको चाहिये है। अतः कि वह भिक्षाके लिये गृहस्थके घरपर ज्यादा न ठहरे। अगर गृहस्थ मना न करे तो एक गाय दुहनेमें जितना समय लगता है, उतने समयतक गृहस्थके घरपर ठहरे। अगर गृहस्थके मनमें देनेकी भावना न हो तो वहाँसे चल देना चाहिये, पर क्रोध नहीं करना चाहिये। ऐसे ही गृहस्थको भी क्रोध नहीं करना चाहिये।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.