पितृऋण क्या है और उससे छूटने का उपाय क्या है?

पुत्र जन्मभर माता-पिता आदिके नामसे पिण्ड-पानी देता है, पर आगे पिण्ड-पानी देनेके लिये सन्तान उत्पन्न नहीं करता तो वह पितृऋणसे मुक्त नहीं होता

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

3/23/20241 min read

प्रश्न - शास्त्रों में गृहस्थपर पाँच ऋण बताये गये हैं- पितृऋण, देवऋण, ऋषिऋण, भूतऋण और मनुष्यऋण। इनमेंसे पितृऋण क्या है और उससे छूटने का उपाय क्या है?

उत्तर- माता-पिता, दादा-दादी, परदादा-परदादी, नाना- नानी, परनाना-परनानी आदिके मरने पर जो कार्य किये जाते हैं, वे सब 'प्रेतकार्य' हैं और परम्परा से श्राद्ध-तर्पण करना, पिण्ड- पानी देना आदि जो कार्य पितरों के उद्देश्य से किये जाते हैं, वे सब 'पितृकार्य' हैं। मरने के बाद प्राणी देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी, भूत-प्रेत, वृक्ष-लता आदि किसी भी योनि में चला जाय तो उसकी 'पितर' संज्ञा होती है।

माता-पिता के रज-वीर्यसे शरीर बनता है। माताके दूध से और पिताके कमाये हुए अन्न से शरीरका पालन-पोषण होता है। पिता के धन से शिक्षा एवं योग्यता प्राप्त होती है। माता-पिताके उद्योगसे विवाह होता है। इस तरह पुत्र पर माता-पिता का माता-पिता पर दादा-दादीका और दादा-दादीपर परदादा-परदादीका ऋण रहता है। परम्परासे रहनेवाले इस पितृऋण से मुक्त होनेके लिये, पितरों की सद्गतिके लिये उनके नाम से पिण्ड-पानी देना चाहिये। श्राद्ध-तर्पण करना चाहिये।

पुत्र जन्मभर माता-पिता आदि के नाम से पिण्ड-पानी देता है, पर आगे पिण्ड-पानी देनेके लिये सन्तान उत्पन्न नहीं करता तो वह पितृऋण से मुक्त नहीं होता अर्थात् उस पर पितरों का ऋण रहता है। परन्तु सन्तान उत्पन्न होनेपर उस पर पितृऋण नहीं रहता, प्रत्युत वह पितृऋण सन्तानपर आ जाता है। पितर पिण्ड-पानी चाहते हैं; अतः पिण्ड-पानी मिलनेसे वे सुखी रहते हैं और न मिलनेसे वे दुःखी हो जाते हैं। पुत्रकी सन्तान न होने से भी वे दुःखी हो जाते हैं कि आगे हमें पिण्ड-पानी कौन देगा!

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.