माता-पिता अनुचित, निषिद्ध कर्म करनेकी आज्ञा दें तो पुत्रको क्या करना चाहिये ?

What should a son do if his parents allow him to do inappropriate or prohibited acts?

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

4/7/20241 min read

प्रश्न- माता-पिता अनुचित, निषिद्ध कर्म करनेकी आज्ञा दें तो पुत्रको क्या करना चाहिये ?

उत्तर - अनुचित आज्ञा दो तरह की होती है- (१) 'अमुक को मार दो' आदि दूसरोंका अनिष्ट करनेकी आज्ञा देना और (२) 'तुम घर छोड़कर वनमें जाओ' आदि आज्ञा देना। इनमेंसे दूसरी आज्ञाका तो पालन करना चाहिये, पर पहली आज्ञाका पालन नहीं करना चाहिये। उसमें पिताकी सामर्थ्य देखनी चाहिये। अगर पिता समर्थ हो तो उस आज्ञाका पालन करनेमें कोई हर्ज नहीं है। जैसे, जमदग्निने अपने पुत्र परशुरामजीसे कहा कि तुम्हारी माँ व्यभिचारिणी है और तुम्हारे भाई मेरी आज्ञाका पालन नहीं करते; अतः इनको मार डालो, तो परशुरामजीने उनका गला काट डाला। जमदग्निने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वरदान माँगो। परशुरामजीने कहा कि माँ और भाइयोंको जीवित कर दो और उनको मेरे द्वारा मारे जानेकी बात याद न रहे। जमदग्निने 'तथास्तु' कहा और सब जीवित हो गये। अगर पिता समर्थ नहीं है और वह अनुचित आज्ञा देता है तो पुत्रको उस आज्ञाका पालन नहीं करना चाहिये। कारण कि अगर पुत्र उस अनुचित आज्ञाका पालन करेगा तो पिताको नरक होगा। जिस आज्ञाके पालनसे पिताको नरक हो, दुःख पाना पड़े, ऐसी आज्ञाका पालन नहीं करना चाहिये। मैं भले ही नरकमें चला जाऊँ, पर पिता नरकमें न जाय - ऐसा भाव होनेसे न पुत्रको नरक होगा और न पिताको। तात्पर्य है कि पिताको नरकसे बचानेके लिये उनकी आज्ञा भंग कर दे, पर अनुचित काम कभी न करे।

अगर पिता समर्थ नहीं है और वह अनुचित आज्ञा देता है, पर पुत्रने उम्रभर माता-पिताकी किसी भी आज्ञाका उल्लंघन नहीं किया है तो पुत्र उस अनुचित आज्ञाके पालनमें जल्दबाजी न करे, उसपर विचार करे और भगवान्को याद करे। जैसे, गौतमने अपने पुत्र चिरकारीसे कहा कि तुम्हारी माँ व्यभिचारिणी है, इसको मार डालो; और ऐसा कहकर वे वनमें चले गये। चिरकारीने तलवार निक और पिताकी आज्ञापर विचार करने लगा। वहाँ गौतमके पिताकी अ विचार आया कि उसको क्यों मारें, उसका त्याग भी तो कर नहीं किय हैं। ऐसा विचार करके वे लौटकर आये तो उन्होंने देखा। चिरकारी हाथमें तलवार लिये खड़ा है; अतः उन्होंने चिरकार जाओ तो मना कर दिया कि माँको मत मारो।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.