बच्चों का रूटीन कैसा होना चाहिए, महाराज जी ने बताया What should be the routine of children, Maharaj ji told

Maharaj ji beautiful answer

SPRITUALITY

Dheeraj Kanojia

9/17/20231 min read

राधावल्लभ श्री हरिवंश महाराज जी, मैं तेईस साल से प्रिंसिपल के पद पर विद्यालय में सेवा दे रही हूं. मैंने विद्यालय में विद्यार्थियों में परिवर्तन के लिए सुबह प्रार्थना सभा में कुछ मिनट का ध्यान एवं महापुरुषों जैसे चैतन्य महाप्रभु जी, स्वामी विवेकानंद महापुरुषों पर चर्चाओं की संस्कृति प्रचलित करने का प्रयास किया है. मेरा सवाल है की आज आधुनिक शिक्षा प्रणाली केवल किताबी ज्ञान पर आधारित है. मैं मेरे विद्यार्थियों को किन नई विधियों से उनकी आध्यात्मिक ज्ञान की प्रगति में सहायता कर सकते है, कृपया मेरा मार्ग दर्शन करें.

महाराज जी का उत्तर

हाँ सबसे पहले हमारी दृष्टि बच्चों की दिनचर्या पर होनी चाहिए. चाहे साधक हो या विद्यार्थी हो जिसकी दिनचर्या ठीक नहीं है उसका विचार ना स्वस्थ होगा और ना स्वस्थ शरीर होगा और ना वह उन्नति को प्राप्त होता है. सबसे पहले दिनचर्या ठीक करे. अब हमारी नई पीढ़ी की दिनचर्या खराब हो गई क्योंकि सूर्य उदय के पहले उठने की दिनचर्या बहुत मंगलमय होती है। अब बच्चे दस बजे सो कर उठ रहे हैं. आठ बजे तक सो रहे हैं.

कोई महत्व ही नहीं है कि भुवन भास्कर (सूर्य) ज्ञान प्रदान करने वाले बुद्धि के जो दाता हैं, अर्घ के द्वारा उनका स्वागत करना चाहिए. वेद मंत्र, गायत्री मंत्रों के द्वारा उनकी अर्चना वंदन करनी चाहिए. तो चलो तुम्हें मन्त्र ज्ञान नहीं है, तुम्हें ऐसा ज्ञान नहीं है तो कम से कम उनके आदर के लिए सैया (बिस्तर या बेड) तो त्याग कर दो।

वैसे सुबह चार बजे प्रातः उठना सबके लिए अत्यंत आवश्यक है. अगर प्रातः चार बजे नहीं उठे तो आप सैया में सो रहे हैं. भगवान सूर्य उदय हो रहा है तो आपकी बुद्धि क्षीण (कम) हो जाएंगी. आपकी आयु क्षीण जायेगी. आपका श्री, कांति, तेज नष्ट हो जाएगा. आप देखो चेहरों में कहां तेज दिखाई दे रहा है. कहाँ तेज है कांतिमान चेहरा, प्रकाशमय वाणी, पवित्र आचारविचार, कहाँ दिखाई दे रहा है. न शौचाचार का ज्ञान, न कोई दिनचर्या है. तो पहले बच्चों को सुबह उठना सिखाए।. अपनी दिनचर्या ऐसी बनाए कि रात को दस बजे तक सो ही जाएँ। तो ग्यारह बारह एक, दो, तीन, चार, छह घंटे हुए. हम कह रहे है 6 क्या एक और घंटा जोड़ लीजिये, सात घंटे हो जाएंगे. तो सुबह पाँच बजे जग जाएंगे. सूर्य उदय के घंटा भर पहले आप जग जाएंगे . एक घंटा मतलब लगभग छः बजे सूर्य उदय होते होंगे. तो पाँच बजे सबसे पहले आप उठे.

सबसे पहले उठकर के दो चार बार भगवान का नाम लेना बच्चो को सिखाए।. हम माला जपने के लिए नहीं कह रहे, राधा राधा, राधा, राधा नाम लीजिये.

बस फिर धरती के पैर छुए. फिर उठकर माता पिता के चरणों को स्पर्श करें, जो बुजुर्ग जन है, बड़े जन है. सबके चरणों को प्रणाम करें. फिर जल पिए.

बासी मुंह जल पीना उदर के बहुत से रोगो को नष्ट करता है, ब्रह्मचर्य को पुष्ट करता है।. फिर थोड़ा टहलकर शौच (टॉयलेट) जाए फिर स्नान आदि करे. फिर दस मिनट दंड बैठक करे. बच्चे हैं ना. दस मिनट आसन और दस मिनट बैठकर प्राणवायु का संशोधन अनुलोमविलोम ऐसे मतलब तीस मिनट इसमें लगाए फिर इसके बाद हम शास्त्र अध्ययन करे. ऐसी दिनचर्या से जो स्कूल में पढ़ाया गया है, बिल्कुल स्मृति में बैठ जाएगा.

आज का जो खान-पान है। चाऊमीन, पिज़ज़ा, बरगर, यह जो चीजें हैं ये उनकी आँतों को कमजोर करेंगे, उनकी बुद्धि को गिराएंगे. क्योंकि अपवित्र और गरिष्ठ वस्तुएं स्वाद में तो अच्छी लगती हैं लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए या बुद्धि पवित्रता के लिए बिलकुल हानिकारक हैं.

छोटे छोटे बच्चे इन्हीं को खा रहे हैं. छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल है जो जो चाहे वो देख सकते हैं. कैसे उनका जीवन बनेगा.

प्रातः की यह दिनचर्या करके जब स्कूल जाए तो जिसे आप कहते है, ध्यान. तो बच्चे हैं वह किसका ध्यान करेंगे.

ध्यान तब होता है जब हमारी एकाग्रता कुछ तो केन्द्रित हो. कुछ तो हम देह के विषय में जानते हो. जिसका हम ध्यान देने जा रहे है. उसके विषय में कुछ तो जानकारी हो कि हमें किसका ध्यान रखना है. जब ध्यान करोगे अंदर पूरी चंचलता चल रही. ध्यान तो हुआ नहीं ना.

हां हम लोग जब स्कूल में थे तो जाते ही प्रार्थना करवाई जाती थी।.

हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बने ब्रह्मचारी, धर्म रक्षक, वीर व्रत धारी बने पूरा सुबह-सह अब इसका प्रभाव पड़ता है. प्राय : स्कूलों में करवाते हैं.

महापुरषों के चरित्र का तब प्रभाव पड़ेगा. जब हम अपने चरित्र को सुधारे. हम लोगों को चाहिए बच्चों के साथ एकांत में बैठक करे. उनको बताए कि ये क्रिया (हस्तमैथून, गन्दी बातें) करने से तुम्हारा पतन हो जाएगा, उसमें शर्माएं नहीं. जैसे डॉक्टर हमारे अंगों को देखकर शर्माएंगा तो ऑपरेशन ही नहीं कर पाएगा. वो छोटे बच्चे है, वो गलत बच्चों के संगती से गलत काम कर सकते है. अब आप बड़े महापुरुष का चरित्र बता रहे है, लेकिन गंदे बच्चों के संग से गन्दी हरकतों में जा रहे है. हमें पहले उनके चरित्र को देखना होगा.

मोबाइल रखना अच्छा है, क्योंकि आप जैसे कही जा रहे हो, कोई परेशानी में आप अपने घर फ़ोन कर सकते हो. लेकिन उसमें गन्दी बातें नहीं देखना चाहिए. ना ये बातें सुननी चाहिए. उनकी आप पहले दिनचर्या सुधारों. अगर उनकी दिनचर्या नहीं सुधरेगी तो आप भले उनके सामने महापुरुष के चरित्र बताएंगे, वो बैठेंगे जरूर, पर उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. असर जब पड़ेगा जब बच्चों का चरित्र सुधरेगा, क्योंकि जैसे संक्रामक रोग बढ़ता है, वैसे ही इन्द्रियों को छूट देकर करके गन्दी बातें बढ़ रही. क्योंकि हमारे आश्रम में भी सब तरह के बच्चे हैं छोटे से बढे. अपन लोगों कि एक दृष्ठि होती है, पता चल जाएगा कि आप कितने दिन के ब्रहमचारी हो, आप कितने भ्रष्टआचरण वाले हो. कुछ ऐसे योगिक चिन्ह से पता चल जाता है.

हमें चाहिए कि हम बच्चों को बताए कि गलत स्पर्श क्या है, अच्छा स्पर्श क्या है. उनको बताये कि आपको कोई ऐसा करने की सलाह दे रहा तो वह गलत सलाह दे रहा है. उनको बताना है कि आप कुछ ऐसा करते है, तो आपकी बहुत हानि हो जाएगी. आप भूलभलैया में फँस जाएंगे. स्मृति चली जाएंगी. आपके शरीर में रोग पैदा हो जाएगा. भयावह बात राखी जाए. भोजन सुधारा जाएं. उनके आचरण सुधारे जाए. उनसे मित्रव्रत व्यवहार किया जाए. टीचर का मतलब गुरु होता है. गुरु का मतलब माँ होता है. टीचर के पास जो भी बच्चे आते है, उन्हें हमें मां की तरह प्यार देना है. जैसे गलती हो जाए तो डांट भी देंगे, लेकिन जैसे अपने बच्चे को डांटते है, वैसे डांटेंगे. उनके साथ हम कड़ा व्यवहार नहीं करेंगे. किसी बच्चे कि गलती में उसे विरोध के द्वारा कम सुधार जा सकता है, प्यार के द्वारा ज्यादा सुधार जा सकता है. जहाँ मन मलिन विचारों के तरफ भाग जाता है, फिर सुधारना मुश्किल हो जाता है.

ये जो टच वाला बड़ा मोबाइल चला हुआ है, ये बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है, क्योंकि एक तो वैसे ही इन्द्रिया चंचल होती है, बच्चे विषयों की तरफ भागते है, उनको पूरा ज्ञान है, सब गेम खेलना. मोबाइल पर सर्च करो तो कुछ भी संसार की बात आ जाएगी. अब उन्हें कोई चंचल बालक उसमें सर्च करके गन्दी बातें दिखाए, तो वही संस्कार पड़ जाएंगे.

जिसके हाथ में बड़ा स्क्रीन वाला मोबाइल है, वो बच्चा तो गड़बड़ हो जाएगा, अगर बच्चों को छोटा मोबाइल यह कह कर दिया जाए कि ये आपको सिर्फ फ़ोन करने के लिए दिया है. अगर कुछ पढ़ाई लिखाई का काम है, तो हमारे सामने चेक करो क्या पढ़ाई लिखाई कि सामग्री चाहिए. आजकल बच्चे इतने प्रवीण है कि आपको वो चेक भी करवा देंगे, वो बिलकुल साफ होगा, कुछ गन्दा नहीं होगा. उनको सब पता है, वो पूरा डाटा ही उड़ा देंगे. वो बहुत चतुर है.

हमारी पढ़ाई विद्या भागवत स्वरुप है. ऐसा नहीं कि यह आधुनिक विद्या किस काम की. आधुनिक विद्या पहले बुद्धि को विकसित करती है. उसी विकास को हम आधुनिक विद्या की ओंर मोड़ देते है. आप इसे गलत और सही काम दोनों में लगा सकते है. माता पिता भी अपनी दिनचर्या सुधारे. आप जो वातावरण बना रहे है उसका बच्चे पर असर पड़ रहा है,, आपको ही भोगना पड़ेगा. माँ बाप बच्चों के पहले गुरु है. ऐसे मूढ़ पुरुष है, बच्चे से शराब पीने के लिए गिलास मंगाते है. उनके सामने गन्दी हंसी मजाक करते हो.फिर चाहते हो वो देशभक्त बने. अच्छे कैसे बन जाएंगे. पहले माँ बाप को अपना आचरण ठीक करना पड़ेगा. बच्चों की दिनचर्या सुधारी जाएं. इससे उनकी उन्नति होगी.