विवाह क्यों करें ? क्या विवाह करना आवश्यक है।
जिसके मनमें भोगेच्छा है अथवा जो वंश-परम्परा चलाना चाहता है और (वंश-परम्परा चलानेके लिये) उसका कोई भाई नहीं है, उसको केवल भोगेच्छा मिटानेके उद्देश्यसे अथवा वंश- परम्परा चलानेके लिये विवाह कर लेना चाहिये।
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प्रश्न - विवाह क्यों करें ? क्या विवाह करना आवश्यक है।
उत्तर-हमारे यहाँ दो तरह के ब्रह्मचारी होते हैं-नैष्ठिक और उपकुर्वाण। जो आजीवन ब्रह्मचर्यका पालन करते हैं, वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहलाते हैं और जो विचार के द्वारा भोगेच्छा को नहीं मिटा पाते और केवल भोगेच्छा को मिटाने के लिये ही विवाह करते हैं, वे उपकुर्वाण ब्रह्मचारी कहलाते हैं।
तात्पर्य है कि जो विचार के द्वारा भोगेच्छा को न मिटा सके, वह विवाह करके देख ले, जिससे यह अनुभव हो जाय कि यह भोगेच्छा भोग भोगने से मिटनेवाली नहीं है। इसलिये गृहस्थ के बाद वानप्रस्थ और संन्यास-आश्रममें जाने का विधान किया गया है। सदा गृहस्थ मे ही रहकर भोग भोगना मनुष्यता नहीं है।
जिसके मनमें भोगेच्छा है अथवा जो वंश-परम्परा चलाना चाहता है और (वंश-परम्परा चलानेके लिये) उसका कोई भाई नहीं है, उसको केवल भोगेच्छा मिटानेके उद्देश्य से अथवा वंश- परम्परा चलानेके लिये विवाह कर लेना चाहिये। अगर उपर्युक्त दोनों इच्छाएँ न हों तो विवाह करने की जरूरत नहीं है। शास्त्रों मे निवृत्ति को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है- निवृत्तिस्तु महाफला।
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.