गृहस्थ में बाल-बच्चोंके भरण-पोषण, विवाह आदि को लेकर अनेक चिन्ताएँ रहती हैं, उन चिन्ताओंसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है?

There are many worries in a household regarding the maintenance of children, marriage etc., how can one get rid of those worries?

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

3/29/20241 min read

प्रश्न - गृहस्थमें बाल-बच्चोंके भरण-पोषण, विवाह आदिको लेकर अनेक चिन्ताएँ रहती हैं, उन चिन्ताओंसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है?

उत्तर- प्रत्येक प्राणी अपने प्रारब्धके अनुसार ही जन्मता है। प्रारब्धमें तीन चीजें होती हैं- जन्म, आयु और भोग। * इन तीनोंमें प्राणीका 'जन्म' तो हो चुका है; उसकी जितनी 'आयु' है, उतना तो वह जीयेगा ही; और अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का आना 'भोग' है। वास्तवमें परिस्थिति किसीको भी सुखी-दुःखी नहीं करती, प्रत्युत मनुष्य ही अज्ञानवश परिस्थितिसे सुखी- होगा, दुःखी हो जाता है।

कन्या बड़ी हो जाय तो ऐसी परिस्थितिमें उसके विवाहको लेकर चिन्ता नहीं करनी चाहिये; क्योंकि कन्या अपने प्रारब्ध (भाग्य) को लेकर ही आयी है। अतः उसको अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति उसके प्रारब्धके अनुसार ही मिलेगी। माता- पिताको तो उसके विवाहके विषयमें यह विचार करना है कि दी जहाँ हमारी कन्या सुखी रहे, वहीं उसको देना है। ऐसा विचार करना माता-पिताका कर्तव्य है। परन्तु हम उसको सुखी कर ही ने देंगे, उसको अच्छा परिवार मिल ही जायगा, यह उनके हाथकी बात नहीं है। अतः कर्तव्यका पालन तो होना चाहिये, पर चिन्ता नहीं होनी चाहिये।

एक चिन्ता होती है और एक विचार होता है। चिन्ता अज्ञान (मूर्खता) से पैदा होती है और उससे अन्तःकरण मैला होता है, नया विकास नहीं होता। परन्तु विचारसे बुद्धिका विकास होता है। अतः हरेक काम कैसे करना है, किस रीतिसे करना है आदि विचार तो करना चाहिये, पर चिन्ता कभी नहीं करनी चाहिये। यदि चिन्तासे रहित होकर विचार किया जाय तो कोई-न-कोई उपाय जरूर मिल जाता है।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.