जिसके मन, बुद्धि, शरीर एवं इन्द्रियों पर भगवान्‌ का पूर्ण अधिकार हो गया, वही मुक्त है-प्रथम माला

A person whose mind, intellect, body and senses are completely under the control of God is free.

SPRITUALITY

आदरणीय परम पूज्य श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी की लाभदायक पुस्तक 'सत्संग के बिखरे मोती '

10/23/20241 min read

भगवान् ने कहा, 'अर्जुन ! युद्ध करो, पर विजय के लिए नहीं आशारहित होकर, ममतारहित होकर (निराशीर्निर्ममो भूत्वा ) युद्ध करो, केवल निमित्तमात्र बनो, मैं कराऊँ वैसे करते जाओ।' ऐसी ही साधना करनी है।

१००-जो होता है, सब भगवान्‌का किया ही होता है। इसलिये अहंकारका त्याग कर दो। कर्मका फल भी छोड़ दो भगवान्पर ही। भगवान्‌के हाथके यन्त्र बनकर उनके इच्छानुसार करते चले जाओ।

१०१-जिसके जिम्मे जो काम है, वह वही करे, पर करे भगवान्‌की सेवाके लिये। यहाँतक कि मनके प्रत्येक संकल्प-विकल्पको भी भगवत्सेवासे जोड़ दे।

१०२-जिसके मन, बुद्धि, शरीर एवं इन्द्रियोंपर भगवान्‌का पूर्ण अधिकार हो गया, वही मुक्त है।

१०३-श्रीगोपीजनोंके मन, बुद्धि, शरीरपर एकमात्र श्रीभगवान्‌का ही अधिकार था। भगवान्ने उनके लिये स्वयं यह स्वीकार किया है- 'ता मन्मनस्का मत्प्राणाः ।'

१०४-सब काम करो, पर करो भगवान्‌को याद रखते हुए उन्हींके प्रीत्यर्थ ! हम नौकरी करते हैं, व्यापार करते हैं, पर उस नौकरी या व्यापारको भगवान्‌को याद करते हुए भगवान्‌की प्रसन्नताके लिये करें तो वह व्यापार ही भगवत्पूजा बन जायगा।

१०५-सारे पदार्थोंपरसे अपनी मालिकी उठा दो। मालिक भगवान्‌को बना दो और स्वयं मैनेजर बन जाओ।

१०६-भगवान्के चिन्तनमें ही सुखकी, तृप्तिकी खोज करो। फिर जीवन दिव्य बन जायगा। क्रियाएँ सब-की-सब भगवान्के लिये होने लग जायँगी। ऐसा असम्भव नहीं है।

१०७-कुछ भी न हो सके तो जिस किसी भावसे हो, भगवान्‌का नाम लेते रहो।

१०८-नामका सच्चा आश्रय लेकर निश्चिन्त हो जाओ।