सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा पत्नी की स्थायी भरण-पोषण राशि 2.5 गुना बढ़ाई, अब मिलेगी ₹50,000 प्रति माह और मकान का हक
The Supreme Court of India has revised permanent alimony for a divorced wife, increasing it from ₹20,000 to ₹50,000 per month with a 5% hike every two years. The decision, which also mandates the transfer of the marital home to the wife, sets a new benchmark for maintenance, emphasizing the wife's right to maintain her marital standard of living even after divorce. Explore the legal reasoning, implications, and expert opinions on this landmark judgment.
गृहस्थ धर्म HOUSEHOLD'S DUTY


प्रस्तावना
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में तलाकशुदा पत्नी को स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) के रूप में ₹50,000 प्रति माह देने का आदेश दिया है, जिसमें हर दो साल में 5% की वृद्धि भी होगी। साथ ही, पति को घर का लोन चुकाकर उस घर की रजिस्ट्री भी पत्नी के नाम करनी होगी235। इस फैसले ने भारत में तलाक के बाद महिलाओं के अधिकारों और भरण-पोषण की राशि निर्धारण के मानकों को नया आयाम दिया है।
केस का संक्षिप्त विवरण
शादी और अलगाव: पति-पत्नी की शादी 1997 में हुई थी और 2008 में दोनों अलग हो गए।
पहले आदेश: हाई कोर्ट ने 2016 में पत्नी को ₹20,000 प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था।
पत्नी की दलील: पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पति की आय अब ₹4 लाख प्रति माह है, ऐसे में ₹20,000 की राशि पर्याप्त नहीं है।
पति की दलील: पति ने बताया कि उसकी वर्तमान आय ₹1,64,039 है, दूसरी शादी हो चुकी है, और बूढ़े माता-पिता की जिम्मेदारी भी है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: कोर्ट ने माना कि पत्नी ने दोबारा शादी नहीं की है और उसकी आजीविका का एकमात्र सहारा यही भरण-पोषण है। इसलिए, पति की आय और जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए भरण-पोषण की राशि बढ़ाई गई235।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य बातें
भरण-पोषण राशि: ₹50,000 प्रति माह, हर दो साल में 5% वृद्धि के साथ
मकान का अधिकार: पति को घर का लोन चुकाकर मकान पत्नी के नाम ट्रांसफर करना होगा
बेटे के लिए: 26 वर्षीय बेटे के लिए अनिवार्य भरण-पोषण नहीं, लेकिन संपत्ति में अधिकार बरकरार
पति की आय: कोर्ट ने पति की पिछली आय और पेशेवर स्थिति को भी आकलन में शामिल किया
महिलाओं के अधिकार: पत्नी को शादी के समय के जीवन स्तर के अनुसार भरण-पोषण मिलेगा।
कानूनी और सामाजिक महत्व
मानक तय: यह फैसला बताता है कि भरण-पोषण की राशि पति की वर्तमान और पूर्व आय, पत्नी की स्थिति, मुद्रास्फीति, और जीवन स्तर के आधार पर तय की जाएगी56।
दूसरी शादी का असर: पति की दूसरी शादी या नई जिम्मेदारियों से पत्नी के भरण-पोषण अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
आय छुपाने पर चेतावनी: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति अपनी आय कम दिखाकर भरण-पोषण से बच नहीं सकता।
महिलाओं के लिए संदेश: तलाक के बाद भी पत्नी को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है, और कोर्ट उसकी सुरक्षा करेगा25।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञ: यह फैसला बताता है कि भरण-पोषण की राशि स्थायी नहीं होती, परिस्थितियों के बदलने पर इसमें संशोधन संभव है।
वित्तीय विशेषज्ञ: भरण-पोषण में वृद्धि मुद्रास्फीति और जीवन स्तर की रक्षा के लिए जरूरी है।
महिला अधिकार कार्यकर्ता: यह निर्णय महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को मजबूत करता है25।
भरण-पोषण निर्धारण के कानूनी आधार
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25: कोर्ट पति की आय, पत्नी की जरूरत, जीवन स्तर, और अन्य जिम्मेदारियों को देखकर भरण-पोषण तय करता है6।
कोई फिक्स फॉर्मूला नहीं: हर केस की परिस्थितियां अलग होती हैं, इसलिए कोर्ट विवेक से फैसला करता है6।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल तलाकशुदा महिलाओं के लिए राहत है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को भी नई मजबूती देता है। भरण-पोषण की राशि अब पति की आय, जीवन स्तर, और मुद्रास्फीति के अनुसार समय-समय पर बढ़ाई जा सकती है। यह फैसला आने वाले समय में अन्य मामलों के लिए भी मिसाल बनेगा।
नोट: यह लेख सुप्रीम कोर्ट के 29 मई 2025 के फैसले और संबंधित खबरों पर आधारित है2356