नाम जप में जल्दीबाजी ना करें
Do not hurry in chanting the name
SPRITUALITY


नाम जप में जल्दी बाजी ना करें
जब हम नाम या मंत्र जाप कर रहे हो तो उसमें जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए, ऐसा ना हो कि आप नाम या मंत्र को देख ना पाए. जब आप राधा या भगवान का कोई भी नाम या मंत्र जप रहे हो उसे देखिए, हर शब्द हर मन्त्र को मन में लिखिए. आपको जपते जपते नाम आपके सामने दिखना चाहिए. मन में नाम को देखते-देखते नाम जपिये, आपको रोमांच होने लगेगा, रोना आने लगेगा.
हर नाम को सुने और देखें
दूसरी बात अगर नाम को सुने बिना ही जपते रहे तो आपका मन इधर-उधर भागने लगेगा. ऐसे जप को मन स्वीकार नहीं करता. कुछ लोग सोचते हैं कि जल्दी-जल्दी माला फेरने या काउंटर पर संख्या बढ़ने से बहुत कुछ मिल जाएगा लेकिन ऐसा जल्दी-जल्दी का अभ्यास नहीं होना चाहिए. जब अभ्यास पक्का हो जाता है तो चाहे बहुत शोर गुल भी हो तो भी हम नाम जप में टिके रह सकते हैं. धीरे-धीरे देखते हुए और सुनते हुए नाम जप का अभ्यास करने पर बहुत शोर होने पर भी आपको नाम या मंत्र आपके सामने दिखने लगेगा. अगर किसी से बात भी हो रही हो तब भी उसके मुख पर वही नाम लिखा हुआ दिखेगा. जिधर दृष्टि जाएगी- नाम ही नाम. केवल नाम.
केवल संख्या पूरी करने पर जोर ना दे
माला की संख्या नए साधकों को इसलिए बताई जाती है, क्योंकि वह अक्सर महापुरुषों की तरह निरंतर नाम जप नहीं कर पाए. उनका मन प्रमादी होता है इसलिए उन्हें कहा जाता है, कम से कम 11 माला का तो नियम ले ले या 21 माला का नियम तो ले लो.
मन को वश में करने की प्रक्रिया गिनती से नहीं होती
मन गिनती से वश में नहीं आता. मन तो बस समय काटता है. माला पूरी हुई उसके बाद माल रख दी और फिर संसार के परमपंचों में घूमने लगा. मन चाहे कुछ और सोचता रहेगा, कुछ और किसी और दिशा में भट्कता रहेगा. माला चलती रहेगी तेजी से चलती रहेगी और साथ में फोन भी चलता रहेगा, लेकिन अगर सही तरीके से सुनते हुए और मन में लिखते हुए नाम जप किया जाए तो नाम में वह शक्ति है जो मन को निश्चित रूप में वश में कर सकती है.
जब मन्त्र में मन ना लगे तो उसे समय नाम जप करें
जिस नाम का उच्चारण किया जाए उसे मन की निगरानी में लाना जरूरी है. मन की आंखों से उसे देखना, उस पर नजर रखना. अगर आपकी नजर जरा भी चुकी तो पता भी नहीं चलेगा कि कितने नाम निकल गए और मन इधर-उधर भटकता रहा.
यदि आपका मन निगरानी नहीं कर रहा है और इधर-उधर भटक रहा है तो ऐसे समय में मंत्र उच्चारण ना करें बल्कि मुख से नाम जप करें. बोल बोल कर नाम जप करें, मन को घसीटे क्योंकि मंत्र को मुख से बोला नहीं जा सकता. मंत्र तो अंदर ही अंदर जपना होता है.
विविध धुनों में नाम को गुनगुनाना या कीर्तन करना
रजोगुणी मन विषयों की तरफ जाता है. जैसे सांप के जहर को नष्ट करने के लिए जहर का इंजेक्शन लगाया जाता है. वैसे ही आप किसी ध्वनि या धुन में नाम को गाकर अपने मन को फंसा सकते हैं फिर नाम मन नाम को छोड़ना भी चाहेगा तो छोड़ नहीं पाएगा, अगर कोई ध्वनि आपको बहुत प्रिय लगे तो उसमें नाम को गुनगुना ना शुरू करें, आपको पता भी नहीं चलेगा और आप उसे धुन में नाम को दिनभर गुनगुनाते रहेंगे.
अपने गुरुदेव और आराध्य देव की छवि को समीप रखें
अपने आराध्य देव या गुरु की छवि को समीप रखकर नाम जपे, अगर आप कोई काम कर रहे हैं तो उसमें भी अपने प्रभु को अपने साथ रखें जैसे कि आप परिक्रमा करने जा रहे हैं तो प्रभु से कहिए चलो प्रिया प्रीतम मेरे साथ वन विहार के लिए चलो, फिर ऐसी भावना करें कि प्रभु आपके साथ-साथ चल रहे हैं. ऐसा बार-बार करने से एक दिन सच में आपको उनके नुपूरॊ की झंकार सुनाई देने लगेगी.
गुरुदेव और आराध्य देव में कोई अंतर नहीं है
हममें कमी यह है कि हम भगवान के श्री विग्रह में तो प्रभु की भावना कर लेते हैं पर गुरुदेव को केवल एक साधारण मनुष्य ही समझते हैं. गुरुदेव साक्षात प्रभु ही है पर हमारा अभिमान हमें उन्हें मनुष्य से ज्यादा मानने नहीं देता. हम सोचते हैं कि यह भी तो हमारे तरह ही खाते पीते हैं या हमारे जैसे ही कपड़े पहनते हैं. हम जिस प्रभु को प्राप्त करना चाहते हैं, वही प्रभु एक ऐसे रूप में आए हैं जिनकी बात हमें समझ आए. हम ऐसी भावना अपने गुरु में नहीं कर पाते.
प्रभु और गुरुदेव के रूप को बार-बार देखकर नाम जाप करते रहें. इससे आपका मन आपके अधीन हो जाएगा. प्रभु आपकी चेष्टा को देख रहे हैं कि आप बार-बार अपने मन को प्रभु में लगाने की कोशिश कर रहे हैं तो आपकी साधना से नहीं बल्कि उनकी करुणा और कृपा से आपका मन आपके अधीन हो जाएगा।
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