क्या भक्ति में आस पास के माहौल का फर्क पड़ता है ?
Does the surrounding environment make a difference in devotion?
SPRITUALITY


क्या भक्ति में आस पास के माहौल का फर्क पड़ता है ?
मैं रोजाना अपने घर के पास एक पार्क में योग अभ्यास के लिए जाता हूँ. मुझे योग के बाद एक 'अंकल जी' मिलते है. 'अंकल जी' पैंट-कमीज में संत ही है. अध्यात्म का अच्छा ज्ञान रखते है.
बात हो रही थी कि घर परिवार के लोग ही संतों के बताये मार्ग में नहीं चलते. उनको कुछ बोलो तो मानते नहीं है. 'अंकल जी' ने अपना अनुभव बताया. उन्होंने कहा कि मेरे पोता बचपन में अध्यात्म को लेकर जो मैं उसे समझाता था, उसको मानता था. उसकी लेखनी बहुत अच्छी थी. वह बहुत सुंदर तरीके से अध्यात्म की बातें, श्लोक आदि लिखता था. लेकिन अब बड़ा होने के बाद उसकी रूचि घट गई है. मोबाइल फ़ोन, टीवी, आईपीएल आदि ने उसका यह गुण छीन लिया है.
मैंने 'अंकल जी' को कहा, जब मैं वृन्दावन में जाता हूँ. तो वहां पूज्य महाराज जी के आश्रम से जुड़े गृहस्थ के बच्चों को देखता हूँ तो उनको भक्ति में लीन देखता हूँ. ऐसा नहीं उनके माँ बाप स्मार्ट फ़ोन नहीं रखते और वृन्दावन कोई दूरदराज गाँव के इलाके में है. वहां भी मेट्रो सिटिज की तरह चकाचौंध देखने को मिलती है. फिर क्यों उनपर यह चकाचौंध असर नहीं करती. मुझे लगता है- आसपास के माहौल का बहुत फर्क पड़ता है. वहां का भाग्वातिक माहौल में बढे होने कि वजह से वह दुसरे बच्चे की तरह फॉर्मल स्कूल कॉलेज एजुकेशन लेने के बाद भी bhakti marg भक्ति मार्ग में मजबूती से चल रहे है. जबकि शहरों में भक्ति के उलट माहौल है. पढना लिखना, bhakti, पूजा पाठ सब चीज भोगने मजे करने और एन्जॉय करने से जुडी हुई है. इसलिए बच्चे भगवान् पर दृढ़ता से विश्वाश नहीं कर पा रहे हैं. माँ बाप भी बच्चों को पढ़ाई लिखाई में अच्छा करने के लिए भगवान् से मांगना सिखा रहे है. क्योंकि उन्होंने भी यही किया है.
महाराज जी भी वृन्दवान वास का इसलिए इतना ज्यादा जोर देते हैं. 'अंकल जी' ने भी इस बात को माना. लेकिन यहाँ सबकुछ छोडकर वहां बसना क्या इतना आसान है. बड़े लक्ष्य के लिए कठिनाई तो झेलनी पड़ती है. बस असल बात धुन लगने की है. राधे राधे
के सी घाट, वृन्दावन


प्रेम मंदिर, वृन्दावन

