गुरुग्राम RERA केस: एक दुखी होम बायर्स के संघर्ष की कहानी : 9 साल की देरी पर 65 लाख रुपये मुआवजा – NCR के होमबायर्स के लिए बड़ा फैसला, कैसे बचे बिल्डर की चालबाजी से

हरियाणा के गुरुग्राम में एक फ्लैट के कब्जे में 9 साल से ज्यादा की देरी के मामले में RERA (Real Estate Regulatory Authority) ने बिल्डर को 65 लाख रुपये से अधिक मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह फैसला NCR के हजारों होमबायर्स के लिए राहत और कानूनी अधिकारों की जीत है। इस आर्टिकल में जानिए यह केस कैसे लड़ा गया, RERA ने क्या तर्क दिए, और इससे भविष्य के होमबायर्स को क्या सबक मिलता है।

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5/23/20251 मिनट पढ़ें

गुरुग्राम RERA केस: एक दुखी होम बायर्स के संघर्ष की कहानी : 9 साल की देरी पर 65 लाख रुपये मुआवजा – NCR के होमबायर्स के लिए बड़ा फैसला, कैसे बचे बिल्डर की चालबाजी से

URL: Economic Times Source

English Keywords:
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परिचय

हरियाणा के गुरुग्राम में एक फ्लैट के कब्जे में 9 साल से ज्यादा की देरी के मामले में RERA (Real Estate Regulatory Authority) ने बिल्डर को 65 लाख रुपये से अधिक मुआवजा देने का आदेश दिया है। इस आर्टिकल में जानिए यह केस कैसे लड़ा गया, RERA ने क्या तर्क दिए, और इससे भविष्य के होमबायर्स को क्या सबक मिलता है।

केस की पूरी कहानी

  • 2013: होमबायर ने लगभग 62 लाख रुपये में फ्लैट बुक किया।

  • डिलीवरी डेडलाइन: 7 दिसंबर 2015 तय थी।

  • 2023: 9 साल बाद भी फ्लैट नहीं मिला, तो होमबायर ने RERA में केस किया।

  • बिल्डर के तर्क: कोविड-19, पर्यावरण मंजूरी में देरी, आर्थिक मंदी, पानी की कमी आदि।

  • RERA का जवाब: ये सभी तर्क अस्वीकार्य हैं, क्योंकि डिलीवरी 2015 में होनी थी, जब कोविड-19 का कोई असर नहीं था।

RERA का फैसला

  • मुआवजा गणना: RERA ने नियम 15 के तहत SBI की सबसे ऊंची MCLR + 2% (कुल 11.1%) ब्याज दर से मुआवजा तय किया।

  • अंतिम आदेश: बिल्डर को 7 दिसंबर 2015 से फ्लैट की डिलीवरी या कब्जा मिलने तक हर महीने 11.1% ब्याज के साथ 65,63,237 रुपये देने होंगे।

  • अतिरिक्त आदेश: 20,000 रुपये मुकदमे का खर्च भी देना होगा।

कानूनी और व्यावहारिक महत्व

1. बिल्डर की जिम्मेदारी

बिल्डर-बायर एग्रीमेंट में तय समयसीमा का पालन जरूरी है। सिर्फ फोर्स मेज्योर (जैसे प्राकृतिक आपदा) की स्थिति में ही देरी जायज मानी जा सकती है।

2. एकतरफा क्लॉज अमान्य

RERA ने कहा कि बिल्डर-बायर एग्रीमेंट में एकतरफा या अस्पष्ट क्लॉज अनुचित हैं और इन्हें कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

3. निवेशक बनाम अलॉटी

अगर किसी व्यक्ति को यूनिट अलॉट हुई है, तो वह RERA के तहत ‘अलॉटी’ माना जाएगा, भले ही बिल्डर उसे निवेशक कहे।

4. मुआवजा दर का मानकीकरण

अब SBI MCLR + 2% ब्याज दर से ही मुआवजा तय होगा, जिससे पारदर्शिता और समानता बनी रहेगी।

होमबायर्स के लिए सबक

  • कानूनी अधिकार: अगर डिलीवरी में देरी हो तो RERA में केस करें, पैसा वापस लेने के बजाय मुआवजे की मांग भी कर सकते हैं।

  • एग्रीमेंट पढ़ें: एकतरफा या अस्पष्ट शर्तों को चुनौती दें।

  • फोर्स मेज्योर: सिर्फ प्राकृतिक आपदा या सरकारी आदेश जैसी परिस्थितियों में ही बिल्डर को राहत मिल सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

Q1. क्या बिल्डर डिलीवरी डेट को बार-बार बढ़ा सकता है?
नहीं, RERA के अनुसार सिर्फ 6 महीने की ग्रेस पीरियड के बाद बिना उचित वजह के देरी पर बिल्डर को मुआवजा देना होगा।

Q2. कौनसी परिस्थितियां फोर्स मेज्योर मानी जाती हैं?
प्राकृतिक आपदा, कोर्ट का आदेश, महामारी जैसी अप्रत्याशित स्थितियां। लेबर की कमी, आर्थिक मंदी या प्लानिंग की कमी नहीं।

Q3. क्या RERA में केस करना आसान है?
हां, RERA पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है। फैसला आमतौर पर 60-90 दिन में आ जाता है। लेकिन कोर्ट में जाने के बाद मामला खिंच भी जाता है.

निष्कर्ष

गुरुग्राम RERA का यह फैसला NCR और पूरे भारत के होमबायर्स के लिए मिसाल है। अब बिल्डर मनमानी देरी नहीं कर सकते और होमबायर्स को उनके पैसे का पूरा हक मिलेगा। अगर आप भी ऐसे किसी केस का सामना कर रहे हैं, तो RERA में शिकायत दर्ज कर अपने अधिकारों की रक्षा करें।

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