क्या होम लोन के साथ बंधी बीमा पॉलिसी पर भरोसा किया जा सकता है? जानिए आपके अधिकार और सावधानियां

Can you rely on home loan insurance policies bundled with loans? Explore the legal, regulatory, and practical aspects of home loan insurance in India, common claim rejection reasons, and your rights as a borrower.

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kaisechale.com

5/28/20251 min read

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क्या होम लोन के साथ बंधी बीमा पॉलिसी पर भरोसा किया जा सकता है? जानिए आपके अधिकार और सावधानियां

परिचय

भारत में घर खरीदते समय अक्सर बैंक या वित्तीय संस्थान लोन के साथ बीमा पॉलिसी भी बेचते हैं। इनका दावा होता है कि अगर लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाए या गंभीर बीमारी हो जाए, तो बीमा कंपनी लोन की बकाया राशि चुका देगी और परिवार पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। लेकिन क्या वास्तव में ये पॉलिसी उतनी भरोसेमंद हैं? हाल ही में कई मामलों में बीमा कंपनियों ने क्लेम रिजेक्ट कर दिए, जिससे परिवारों को दोहरी मुसीबत झेलनी पड़ी1

बीमा क्लेम रिजेक्शन के आम कारण

  • पूर्व-स्थित बीमारी (Pre-existing Disease) का खुलासा न करना:
    बीमा कंपनियां अक्सर यह आधार बनाकर क्लेम रिजेक्ट कर देती हैं कि पॉलिसीधारक ने अपनी पूर्व-स्थित बीमारियों की जानकारी नहीं दी थी। उदाहरण के लिए, एक केस में HDFC Life ने डाइबिटीज और फैटी लिवर का हवाला देकर क्लेम रिजेक्ट कर दिया, जबकि मृत्यु का कारण इनसे सीधे जुड़ा नहीं था
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  • सिंप्लिफाइड फॉर्म और मेडिकल टेस्ट की कमी:
    लोन के साथ दी जाने वाली ग्रुप बीमा पॉलिसी में अक्सर केवल हां/ना वाले सवाल होते हैं और मेडिकल टेस्ट नहीं होते। ऐसे में बीमा कंपनी की जिम्मेदारी बनती है कि वह पूरी जानकारी ले, वरना बाद में खुलासे की कमी का हवाला देकर क्लेम रिजेक्ट नहीं कर सकती
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  • कानूनी और नियामकीय प्रावधान:
    सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर बीमा कंपनी ने पॉलिसी जारी करते समय मेडिकल टेस्ट या विस्तृत जानकारी नहीं मांगी, तो बाद में क्लेम रिजेक्ट करना उचित नहीं है। खासकर डाइबिटीज जैसी आम लाइफस्टाइल बीमारियों को आधार बनाकर क्लेम रिजेक्ट करना न्यायसंगत नहीं है
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ग्रुप क्रेडिट बीमा: क्या है और कैसे काम करता है?

ग्रुप क्रेडिट बीमा एक ऐसा प्रोडक्ट है जो लोन लेने वाले लोगों के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य है कि अगर लोनधारक की मृत्यु, गंभीर बीमारी या विकलांगता हो जाए, तो बीमा कंपनी लोन की बकाया राशि चुका दे। आमतौर पर यह पॉलिसी लोन के साथ ही दी जाती है और प्रीमियम लोन अमाउंट में जोड़ दिया जाता है1

क्लेम रिजेक्शन के खिलाफ आपके अधिकार

  • बीमा कंपनी की जिम्मेदारी:
    अगर बीमा कंपनी ने पॉलिसी जारी करते समय विस्तृत जानकारी या मेडिकल टेस्ट नहीं मांगे, तो वह बाद में जानकारी की कमी का हवाला देकर क्लेम रिजेक्ट नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अगर सिंप्लिफाइड फॉर्म में ही पॉलिसी जारी कर दी गई, तो बीमा कंपनी ने उस रिस्क को स्वीकार कर लिया माना जाएगा
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  • डाइबिटीज और हाईपरटेंशन पर कानून:
    दिल्ली स्टेट कमीशन और NCDRC जैसे उपभोक्ता फोरम ने भी कहा है कि डाइबिटीज जैसी बीमारियों के आधार पर क्लेम रिजेक्ट करना उचित नहीं है, जब तक कि वह मृत्यु या बीमारी का सीधा कारण न हो
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  • लोन के साथ बीमा खरीदने की मजबूरी:
    RBI और IRDAI के नियमों के अनुसार, कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान आपको किसी खास बीमा कंपनी से पॉलिसी खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। अगर ऐसा दबाव डाला गया है, तो आप IRDAI या बैंकिंग ओम्बड्समैन के पास शिकायत कर सकते हैं
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बीमा क्लेम रिजेक्शन से कैसे बचें?

  • सच्ची और पूरी जानकारी दें:
    बीमा फॉर्म भरते समय अपनी सभी स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां सही-सही दें, भले ही फॉर्म सिंप्लिफाइड हो।

  • पॉलिसी डॉक्युमेंट्स ध्यान से पढ़ें:
    सभी शर्तें, एक्सक्लूजन, और क्लेम प्रोसेस को अच्छी तरह समझें।

  • मेडिकल टेस्ट की मांग करें:
    अगर आपको कोई गंभीर या पुरानी बीमारी है, तो मेडिकल टेस्ट करवाकर ही पॉलिसी लें, ताकि बाद में विवाद न हो।

  • बीमा कंपनी चुनने की आज़ादी:
    बैंक या लोन कंपनी के दबाव में आकर किसी खास कंपनी की पॉलिसी न लें। बाजार में उपलब्ध विकल्पों की तुलना करें।

क्लेम रिजेक्शन होने पर क्या करें?

  • बीमा कंपनी से लिखित जवाब लें:
    क्लेम रिजेक्शन का कारण लिखित में मांगें।

  • कंज्यूमर फोरम या कोर्ट जाएं:
    अगर आपको लगता है कि आपके साथ अन्याय हुआ है, तो कंज्यूमर कोर्ट या हाई कोर्ट में अपील करें। कई मामलों में उपभोक्ता फोरम ने पॉलिसीधारक के पक्ष में फैसला दिया है
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  • IRDAI या बैंकिंग ओम्बड्समैन से शिकायत करें:
    जबरन बीमा खरीदवाने या अन्य शिकायतों के लिए नियामक संस्थाओं का सहारा लें।

निष्कर्ष

होम लोन के साथ मिलने वाली बीमा पॉलिसी सुरक्षा का एक अच्छा विकल्प हो सकती है, लेकिन आंख मूंदकर भरोसा करना सही नहीं है। बीमा कंपनियों द्वारा क्लेम रिजेक्शन के मामले बढ़ रहे हैं, खासकर पूर्व-स्थित बीमारियों के नाम पर। अपने अधिकार जानें, सभी जानकारियां सही दें, और जरूरत पड़े तो कानूनी सहायता लें। बीमा का असली मकसद तभी पूरा होगा जब मुश्किल समय में परिवार को आर्थिक सुरक्षा मिले, न कि और परेशानियां बढ़ें।

नोट: यह लेख आपके जानकारी के लिए है। किसी भी बीमा पॉलिसी को खरीदने या क्लेम करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

Source: ECONOMIC TIMES