भगवान का Favourite बनना है तो मानें ये 9 बातें: महाराज जी के अनुसार

भगवान का Favourite बनना हर भक्त का सपना है। श्री हित प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचनों से प्रेरित यह लेख बताता है कि कैसे 9 महत्वपूर्ण नियमों को अपनाकर आप भगवान के प्रिय बन सकते हैं। जानिए कैसे कृपा का अनुभव, दृढ़ संकल्प, स्वभाव में परिवर्तन, अहंकार का त्याग, संतोष, शुद्ध आहार, शुद्ध वाणी, सेवा भाव, दूसरों का सम्मान और सर्वत्र भगवान का दर्शन आपके जीवन को बदल सकते हैं।

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6/2/20251 min read

परिचय

हर भक्त की यह इच्छा होती है कि वह भगवान का प्रिय बन जाए, उनकी कृपा प्राप्त करे और जीवन में सच्ची शांति, प्रेम और आनंद का अनुभव करे। श्री हित प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचनों के अनुसार, भगवान का प्रिय बनने के लिए जीवन में कुछ विशेष नियमों और आदर्शों को अपनाना आवश्यक है। ये बातें न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खोलती हैं, बल्कि हमारे स्वभाव, व्यवहार और सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन लाती हैं1

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे वे 9 बातें, जिन्हें अपनाकर आप भगवान के Favourite बन सकते हैं।

1. कृपा का अनुभव और दृढ़ विश्वास

  • सबसे पहली बात यह समझें कि भगवान और गुरु की असीम कृपा सदैव हमारे ऊपर बरस रही है। कृपा को केवल सुख, सुविधा और सम्मान में न तौलें, बल्कि हर परिस्थिति में कृपा का अनुभव करें। यह विश्वास रखें कि हर परिस्थिति भगवान की कृपा से ही आती है और उसका अंतिम परिणाम मंगलमय ही होगा1

2. भगवत प्राप्ति का दृढ़ संकल्प

  • अपने जीवन का लक्ष्य स्पष्ट रखें: "मुझे इस जन्म में भगवान की प्राप्ति करनी है।" पद, प्रतिष्ठा, भोग या मनोरंजन में विश्राम न मानें। जब तक भगवान की प्राप्ति न हो जाए, तब तक निरंतर भजन, स्मरण और साधना में लगे रहें। यही दृढ़ निश्चय आपको साधना में आगे बढ़ाएगा1

3. स्वभाव में परिवर्तन

  • यदि साधना के बावजूद स्वभाव में परिवर्तन नहीं आया, तो साधना का असली लाभ नहीं मिला। स्वभाव परिवर्तन के लिए दो बातें आवश्यक हैं:

    1. अपने ऊपर भगवान की कृपा का अनुभव।

    2. भगवत प्राप्ति का दृढ़ लक्ष्य।

  • जब तक मन और चित्त पूरी तरह भगवान में नहीं लग जाता, तब तक साधु स्वभाव नहीं आता1

4. अहंकार का त्याग

  • साधना में सबसे बड़ा दोष अहंकार है। "मैं साधक हूँ, मैं ज्ञानी हूँ" – यह भाव त्यागें। जब आप गुरु और भगवान के चरणों का आश्रय लेते हैं, तो यह भाव आता है कि "सब कुछ उनकी कृपा से हो रहा है।" अहंकार का त्याग ही साधु स्वभाव की नींव है1

5. सहनशीलता और संतोष

  • कृपा का अनुभव करने वाला उपासक कभी प्रमादी या आलसी नहीं होता, बल्कि पुरुषार्थ करता है, परन्तु उसे अपना पुरुषार्थ नहीं मानता। वह हर परिस्थिति में संतोष रखता है, दुख-सुख में समभाव रखता है और किसी से कोई अपेक्षा नहीं करता। संतोष समस्त कामनाओं का नाश करता है1

6. शुद्ध और सात्विक आहार

  • "जैसा अन्न, वैसा मन" – इसलिए शुद्ध, सात्विक और धर्म के मार्ग से कमाया हुआ अन्न ही ग्रहण करें। अपवित्र या अधर्म से अर्जित अन्न बुद्धि और मन को दूषित करता है, जिससे साधना में बाधा आती है1

7. वाणी और सेवा की शुद्धता

  • व्यर्थ की बातें, निंदा, चुगली, दोषारोपण से बचें। वाणी को शुद्ध रखें, भगवान के गुणों का गान करें। सेवा करते समय कभी अहंकार न लाएं और सेवा का फल या प्रतिफल न चाहें। सेवा का उद्देश्य केवल भगवान को प्रसन्न करना होना चाहिए1

8. दूसरे उपासकों और इष्ट का सम्मान

  • अपने इष्ट को सर्वोपरि मानें, लेकिन कभी भी दूसरे उपासकों, उनकी उपासना या उनके इष्ट की निंदा न करें। सबके इष्ट, सबके साधन, अंततः उसी परमात्मा की ओर ले जाते हैं। सबका सम्मान करें13

9. सर्वत्र भगवान का दर्शन और अनुकूलता

  • शरीर, मन, बुद्धि और इंद्रियों से सदैव अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने की चेष्टा करें। प्रतिकूल आचरणों का त्याग करें और सर्वत्र अपने इष्ट का दर्शन करने का अभ्यास करें। यही साधु स्वभाव है1

निष्कर्ष

भगवान का Favourite बनने के लिए केवल बाहरी अनुष्ठान या कर्मकांड पर्याप्त नहीं हैं। महाराज जी के अनुसार, जब तक हमारे स्वभाव में साधुता, विनम्रता, संतोष, सेवा, शुद्धता, और समर्पण नहीं आता, तब तक सच्ची भक्ति और भगवत कृपा प्राप्त नहीं होती। इन 9 बातों को अपने जीवन में उतारें, तो निश्चित ही भगवान की कृपा और प्रेम की वर्षा आपके जीवन में निरंतर होती रहेगी134

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