कौन सच्चा, कौन झूठा? जानिए किस पर करें विश्वास – प्रेमानंद महाराज से सीखें जीवन की सच्ची कसौटी
सच्चे और झूठे व्यक्ति की पहचान कैसे करें? किस पर विश्वास करें? जानें प्रामाणिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण, व्यवहारिक उपाय और जीवन में सही निर्णय लेने की कला।
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1. भूमिका: हर विचार मेरा है या कोई और चला रहा है?
हमारे मन में अक्सर यह सवाल आता है – “क्या जो विचार मैं सोचता हूँ, वो मेरा है या कोई और चला रहा है?” इसी तरह, “किस पर विश्वास करें? कौन सच्चा है, कौन झूठा?” यह प्रश्न हर मानव के जीवन का हिस्सा है। श्री प्रेमानंद महाराज के सत्संग में (02:35–06:26) इन जटिल प्रश्नों का सरल, व्यावहारिक और आध्यात्मिक उत्तर मिलता है.
2. सब में भगवान है – मूल दृष्टिकोण
महाराज जी कहते हैं –
“सब में भगवान है। पहले यह भावना धारण करो। व्यवहार में भले ही कोई झूठा निकले, पर परमार्थ में सब सत्य, परमात्मा ही है, दूसरा नहीं है।”
इसका अर्थ है – हर जीव में परमात्मा का अंश है। जैसे एक ही बिजली से हीटर, फ्रिज, पंखा, बल्ब आदि चलते हैं – कार्य भिन्न, शक्ति एक। वैसे ही सबकी मूल सत्ता एक ही है, बस व्यवहार और स्वभाव अलग-अलग हैं। किसी में राक्षसी प्रवृत्ति, किसी में दैवी – पर परमात्मा सबमें है.
3. व्यवहार में सच्चा-झूठा कैसे पहचानें?
आध्यात्मिक दृष्टि से तो सबमें परमात्मा है, पर व्यवहार में हमें निर्णय लेना पड़ता है। महाराज जी कहते हैं –
“अगर व्यक्ति का व्यवहार हमारे अनुकूल है, तो हम उससे दोस्ती कर लेते हैं। अगर व्यवहार अनुकूल नहीं, तो उदासीन हो जाते हैं – न दोस्ती, न शत्रुता।”
यहाँ “उदासीन” का अर्थ है – न मित्रता, न शत्रुता। व्यवहार में दोष और गुण दोनों मिलते हैं। जैसे सोने में मिलावट होती है, वैसे ही हर मनुष्य में गुण-दोष का मिश्रण है। कोई 90% गुणी, 10% दोषी; कोई 90% दोषी, 10% गुणी।
महाराज जी कहते हैं –
“100% तो केवल भगवान या भगवान को प्राप्त महापुरुष निर्दोष हैं। बाकी सबमें कहीं न कहीं दोष है।”
इसलिए व्यवहार में हमें दोष नहीं, गुण ग्रहण करने चाहिए। जैसे हंस दूध-पानी में से केवल दूध पी लेता है, वैसे ही हमें हर व्यक्ति के गुणों को अपनाना चाहिए, दोषों को छोड़ना चाहिए.
4. किस पर विश्वास करें? व्यावहारिक कसौटी
सबमें भगवान देखें, पर व्यवहार में सावधानी रखें।
गुणों को अपनाएं, दोषों को त्यागें।
अगर कोई व्यवहार में झूठा निकले, तो उससे दूरी बना लें – न मित्रता, न शत्रुता।
100% विश्वास केवल भगवान या सिद्ध महापुरुषों पर करें।
सामान्य मनुष्यों में गुण-दोष दोनों होते हैं, इसलिए विवेक से निर्णय लें।
5. गहराई से समझें: दोष और गुण का संतुलन
महाराज जी उदाहरण देते हैं –
“सोना बिना मिलावट के आभूषण नहीं बनता, वैसे ही बिना दोष के कोई मनुष्य नहीं। जैसे दूध-पानी में से हंस केवल दूध पीता है, वैसे ही हमें हर व्यक्ति के गुणों को अपनाना चाहिए।”
इसका व्यावहारिक अर्थ है –
किसी भी व्यक्ति को पूरी तरह अच्छा या बुरा न समझें।
हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई है, उसे पहचानें।
दोषों को नजरअंदाज करें, परंतु अगर किसी का व्यवहार बार-बार झूठा या हानिकारक हो, तो उससे दूरी बना लें।
6. व्यवहारिक जीवन में अपनाएं ये सूत्र
सकारात्मक दृष्टिकोण: सबमें भगवान का अंश देखें, पर व्यवहार में विवेक रखें।
गुण ग्रहण करें: हर व्यक्ति के अच्छे गुणों को अपनाएं।
दोषों से बचें: दोषों को न अपनाएं, न उनका प्रचार करें।
विश्वास की सीमा: 100% विश्वास केवल भगवान या सिद्ध महापुरुषों पर करें।
उदासीनता: जिनका व्यवहार बार-बार हानिकारक हो, उनसे उदासीन रहें – न मित्रता, न शत्रुता।
आत्म-निरीक्षण: स्वयं के दोषों को भी पहचानें और सुधारें।
7. मन के विचार – क्या मेरे हैं या कोई और चला रहा है?
महाराज जी के अनुसार,
“खोपड़ी के अनुसार क्रियाएं अलग-अलग हो रही हैं। जैसे यंत्र के अनुसार क्रियाएं अलग होती हैं – हीटर में गर्मी, फ्रिज में ठंडक, पर बिजली तो एक ही है।”
इसी प्रकार, हमारे विचार, भावनाएं, क्रियाएं – सबकी मूल सत्ता एक ही है, परंतु संस्कार, संगति, वातावरण के अनुसार वे भिन्न रूप में प्रकट होते हैं1.
सकारात्मक संगति: अच्छी संगति से अच्छे विचार आते हैं।
आध्यात्मिक साधना: नाम जप, सत्संग, शास्त्र अध्ययन से मन शुद्ध होता है।
विचारों की शुद्धता: जैसे-जैसे साधना बढ़ती है, विचार भी शुद्ध होते हैं।
दोष-दृष्टि छोड़ें: दूसरों के दोष देखने की बजाय, अपने मन को शुद्ध करें।
8. निष्कर्ष: जीवन में सच्चाई और विश्वास की कसौटी
सबमें परमात्मा का अंश है, व्यवहार में विवेक जरूरी है।
गुणों को अपनाएं, दोषों से बचें।
सच्चा वही है, जिसमें भगवान का अंश प्रकट हो रहा है – व्यवहार में, वाणी में, आचरण में।
झूठा वही है, जिसमें बार-बार दोष, छल, कपट प्रकट हो रहा है।
विश्वास उसी पर करें, जिसमें बार-बार सच्चाई, प्रेम, दया, करुणा दिखे।
अंतिम विश्वास भगवान और सिद्ध संतों पर करें।
9. जीवन में लागू करें – कुछ व्यावहारिक सुझाव
सत्संग, नाम जप, शास्त्र अध्ययन करें।
अच्छी संगति में रहें, बुरी संगति से बचें।
हर व्यक्ति के गुणों को पहचानें, उनसे सीखें।
अपने मन के दोषों को दूर करने का प्रयास करें।
हर निर्णय विवेक और अनुभव से लें, न कि केवल भावुकता से।
किसी पर भी आँख मूंदकर विश्वास न करें, पहले परखें, फिर ही संबंध बनाएं।
10. अंतिम संदेश
महाराज जी के अनुसार,
“सबमें भगवान है, व्यवहार में विवेक रखो, गुणों को अपनाओ, दोषों को छोड़ो, और सच्चे संतों की शरण में रहो – यही जीवन की सच्ची कसौटी है।”
इस ज्ञान को अपनाकर आप अपने जीवन में सच्चे-झूठे की पहचान कर सकते हैं, सही व्यक्ति पर विश्वास कर सकते हैं, और अपने विचारों को भी शुद्ध बना सकते हैं1.
Sources:
1 YouTube – Bhajan Marg by Param Pujya Vrindavan Rasik Sant Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj (02:35–06:26)