इंद्रियों पर विजय के लिए क्या हमें नियंत्रण करना चाहिए या जागरूक होकर भोगना चाहिए? – श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अमृत वचन

इंद्रियों पर विजय कैसे पाएं? श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचनों के आधार पर जानें – क्या संयम ज़रूरी है या जागरूकता से भोगना चाहिए? पढ़ें महाराज जी की स्पष्ट और गूढ़ शिक्षाएं।

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6/26/20251 मिनट पढ़ें

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इंद्रियों पर विजय: श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की दृष्टि

मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष है – इंद्रियों पर विजय पाना। क्या हमें अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिए या फिर जागरूक होकर उनका भोग करना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने अमृत वचनों में अत्यंत स्पष्टता और सहजता से दिया है। आइए, उन्हीं के शब्दों और दृष्टांतों के माध्यम से इस गूढ़ विषय को समझें।

महाराज जी से प्रश्न: इंद्रियों पर विजय के लिए क्या करना चाहिए?

महाराज जी से एक श्रोता ने पूछा – "इंद्रियों से मुक्त होने के लिए क्या उसे जागृति के साथ भोगना सही है या उसे कंट्रोल करना सही है?" महाराज जी ने अत्यंत सरल, किंतु गूढ़ उदाहरण देकर उत्तर दिया –

"क्या घी में आग डालने से आग बुझ जाएगी?... हम आपसे प्रश्न करते हैं कि आग है और घी डालो उसमें तो क्या आग बुझ जाएगी क्या और प्रज्वलित होगी?"

महाराज जी ने स्पष्ट किया कि इंद्रियों को भोगने से वे कभी तृप्त नहीं होतीं। जैसे आग में घी डालने से वह और भड़कती है, वैसे ही इंद्रियों को भोगने से उनकी तृष्णा और बढ़ती है, शांत नहीं होती।

इंद्रियों को रोकने से ही विजय संभव

महाराज जी ने दो टूक कहा –

"इंद्रियों को रोकने से हम इंद्रिय विजय हो सकते हैं, ना कि इंद्रियों के भोगने से। हम इंद्रियों के गुलाम हो जाएंगे और इंद्रियां हमारी भ्रष्ट होती चली जाएंगी।"1

यहाँ महाराज जी ने बताया कि इंद्रियों का भोग करने से मनुष्य उनकी दासता में फँसता चला जाता है। भोग से तृप्ति नहीं, बल्कि और अधिक भोग की इच्छा पैदा होती है।

क्या भोगने से इंद्रियां कभी तृप्त हुई हैं?

महाराज जी ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए पूछा –

"क्या भोगने के बाद ऐसा लगता है कि अब कछु नाथ न चाही मोरे? भोगने से यही लगता है – और भोगो, अब इसको नहीं, अब इस विषय को भोगो। भोगते-भोगते मर गए, अनंत जन्म व्यतीत हो गए हमारे, लेकिन आज तक हमें तृप्ति नहीं हुई।"1

यहाँ महाराज जी ने गृहस्थ जीवन का उदाहरण देकर बताया कि अनगिनत जन्मों से मनुष्य इंद्रियों का भोग करता आ रहा है, फिर भी संतुष्टि नहीं मिली। हर बार नई तृष्णा, नई चाहत जागती है।

इंद्रियों की दासता या मनुष्य का अधिकार?

महाराज जी ने मनुष्य जीवन की गरिमा को रेखांकित करते हुए कहा –

"हमको इंद्रियों पर शासन करना चाहिए, ना कि उनकी गुलामी में बहते चले जाना चाहिए। हमारा मानो जीवन मिला है इंद्रिय विजय होने के लिए, मनोविजय होने के लिए। हम पशु नहीं हैं, हम मनुष्य हैं।"1

महाराज जी ने बताया कि पशु केवल इंद्रियों के अधीन रहते हैं, जबकि मनुष्य को विवेक और आत्मनियंत्रण की शक्ति मिली है।

इंद्रिय विजय के साधन: नाम जप, शास्त्र स्वाध्याय, गुरु चरणों की सेवा

महाराज जी ने इंद्रिय विजय के लिए स्पष्ट मार्ग बताए –

"हम भगवान का नाम जप करके, शास्त्रों का स्वाध्याय करके, गुरु चरणों की रज माथे पर धारण करके, हम इंद्रियों को वश में कर सकते हैं। हम गंदी आदतों को छोड़ सकते हैं, अपने स्वरूप में स्थित हो सकते हैं, भगवत प्राप्ति कर सकते हैं।"1

यहाँ महाराज जी ने बताया कि इंद्रिय संयम के लिए सतत साधना, नाम जप, शास्त्र अध्ययन और गुरु सेवा आवश्यक हैं। यही साधन मनुष्य को अपनी इंद्रियों का स्वामी बनाते हैं।

भोग से हानि, संयम से लाभ

महाराज जी ने अपने उत्तर का सार देते हुए कहा –

"इंद्रियों को भोगने से हानि ही हानि है, और इंद्रियों को संयम में करने से लाभ ही लाभ है।"

यहाँ महाराज जी ने स्पष्ट किया कि इंद्रिय भोग से केवल हानि होती है – मन, बुद्धि, शरीर और आत्मा सभी का पतन होता है। जबकि संयम से शांति, आनंद और भगवत प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

महाराज जी के वचन: इंद्रिय विजय का सार

  • इंद्रियों का भोग करने से कभी तृप्ति नहीं मिलती, बल्कि तृष्णा और बढ़ती है।

  • इंद्रियों को नियंत्रित करने से ही विजय संभव है, भोग से नहीं।

  • मनुष्य को इंद्रियों का स्वामी बनना चाहिए, दास नहीं।

  • नाम जप, शास्त्र अध्ययन, गुरु सेवा – यही इंद्रिय विजय के श्रेष्ठ साधन हैं।

  • संयम में ही जीवन का वास्तविक सुख, शांति और आनंद छुपा है।

निष्कर्ष: महाराज जी की दृष्टि में इंद्रिय विजय का मार्ग

श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचनों से स्पष्ट है कि इंद्रियों पर विजय पाने के लिए संयम और नियंत्रण ही एकमात्र मार्ग है। जागरूक होकर भोगना, आत्मवंचना है – क्योंकि भोग से तृप्ति नहीं, केवल नई-नई इच्छाएँ जन्म लेती हैं। महाराज जी ने बार-बार उदाहरण देकर, शास्त्रों के आलोक में, और अपने अनुभव से यही समझाया कि मनुष्य का धर्म है – इंद्रियों पर शासन करना, न कि उनकी दासता में जीवन गँवाना।

नाम जप, गुरु सेवा और शास्त्र अध्ययन के द्वारा मनुष्य अपने जीवन को पावन बना सकता है, इंद्रियों को वश में कर सकता है और भगवत प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है।

महाराज जी के इन अमूल्य वचनों को जीवन में उतारना ही सच्ची साधना है, यही इंद्रिय विजय का वास्तविक मार्ग है।

"इंद्रियों को भोगने से हानि ही हानि है, और इंद्रियों को संयम में करने से लाभ ही लाभ है।" – श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

SOURCE:

  1. https://www.youtube.com/watch?v=6JBDuAfL2Y4