जो लोग कह रहे है कि आईपीएल का कप विराट कोहली की टीम को महाराज जी के आशीर्वाद से मिला है वो पहले महाराज जी की यह बात सुन ले.

Is Virat Kohli team RCB won the IPL-tournament because of Pujya Premanand maharaj ji blessing, plese read the real truth.

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6/5/20251 min read

जो लोग कह रहे है कि आईपीएल का कप विराट कोहली की टीम को महाराज जी के आशीर्वाद से मिला है वो पहले महाराज जी की यह बात सुन ले.

जो लोग कह रहे है कि आईपीएल का कप विराट कोहली की टीम RCB को इसलिए मिला है क्योकि वो परम पूज्य हिंत गोविन्द शरण जी महाराज को काफी मानते हैं और उनका आशीर्वाद लेने के लिए वृन्दवान जाते रहते हैं , वो महाराज जी का 2 जून,2025 का एकान्तिक वार्तालाप में 14:12 मिनट से 18:22 मिनट तक का वीडियो सुन ले. हम भी उसकी यहाँ स्क्रिप्ट दे रहे है. महाराज जी के इन अनमोल वचनों और इससे पहले के दिए गए उपदेशों से समझ में आता है कि हमे जो इस जन्म में दुःख या सुख मिल रहे हैं वो हमारे पूर्व के पूण्य और पाप के आधार में मिल रहे है और इस जन्म में हम जो पूण्य कर्म कर रहे है, जैसे दान, तीर्थ, संतों से मिलना आदि उसका लाभ मृत्यु के बाद मिलेगा. हाँ अगर कोई भारी अपराध जैसे संत वैष्णव अपराध, भ्रूण ह्त्या आदि महापाप बन गया तो आपको शीघ्र पाप भुगतना पड़ेगा.

हम लोग जीवन में जो सफलता मिलती है, उसे भगवान् की कृपा मानते है, यह भी अच्छी बात है, लेकिन जब दुःख आता है तो फिर निराश हो जाते है और भगवान् से गुस्सा हो जाते है. ऐसा नहीं है. महाराज जी हम मुर्ख प्राणियों को यही बात समझाते है कि कोई लाभ पाने के लिए ही सिर्फ भगवान् कि bhakti ना करो, इन छोटे मोटे लाभ से भी सबसे बाड़ा लाभ भगवत्प्राप्ति है, उसे हासिल करो.

महाराज जी तो यहाँ तक कहते है कि जो कहता है कि मेरे आशीर्वाद से किसी व्यक्ति को सफलता मिल रही है, तो वह गलत कह रहा है, क्योंकि यह सफलता पूर्व जन्म के पुण्यो के आधार पर मिलती ना कि किसी के आशीर्वाद आदि उपायों से. वो कहते है जब कोई व्यक्ति किसी बाबा आदि के पास जाता है और उसके काम बनते है तो यह एक संयोग भर है. महाराज जी तो कहते है कि हमें पूर्व जन्मो के पुण्यों की वजह से सुख मिलता है, लेकिन जब हम किसी बाबा आदि के यहाँ जाते है और वो काम जो सालो से अटका है, वो 'तुक्के' से उसी समय हो जाता है और हमें लगता है कि हमारा काम आशीर्वाद आदि से हुआ है.

महाराज जी कहते है-

"सांसारिक लाभ को भगवान की कृपा से न तोलो, अपनी इच्छाओं की पूर्ति को भगवान की कृपा से न तोलो। यह पुण्य और पाप के फल से आता-जाता रहता है।"

हाँ, महाराज जी यह जरुर कहते है कि अगर हम भगवान् का निरंतर bhajan करेंगे तो हमें जो पूर्व जन्म के पापो के आधार पर जो दुःख (प्रारब्ध) सहना है, उसका असर या दर्द भगवान् थोडा कम कर देंगे. जैसे मान लो आपे जीवन में सांप से काटना लिखा हो, लेकिन bhajan के प्रताप से सिर्फ काँटा लगने से ही आपका प्रारब्ध पूरा हो जाएगा. आइए महाराज जी के 2 जून, 2025 को 14:12 मिनट से 18:22 मिनट तक के एकान्तिक वार्तालाप को सुनते है. आपको और अधिक स्पष्ट हो जाएगा.

14:12 मिनट से 18:22 मिनट तक का ट्रांसक्रिप्ट (सारांश)

प्रश्न: "मेरी सारी इच्छाएं श्रीजी पूरी कर रही हैं, तो क्या निष्काम हुए बिना श्रीजी की प्राप्ति हो जाएगी?"

उत्तर (महाराज जी के वचन):

कामनाएं पूरी होना श्रीजी की कृपा का फल नहीं है। कामना ही न होना, यह श्रीजी की कृपा का असली फल है। कामनाएं पूरी होना, यह तुम्हारे पूर्व के पुण्यों का फल है। जब पाप का नंबर आएगा, तब जो चाहोगे उसके विपरीत होगा, चाहे तुम हजार माला रोज कर लो। इसलिए मेरी बात को गंभीरता से समझना—आज तुम्हारे पुण्यों के फल से तुम्हारी कामनाओं की पूर्ति हो रही है। श्रीजी जब कृपा करेंगी और उनकी कृपा फलीभूत होगी, तो तुम्हारे हृदय में चाह ही मिट जाएगी। कृपा का फल है 'अचाह' हो जाना। अब जो श्रीजी जैसा चाहें, वही मुझे अच्छा लगे, मेरी कोई चाह न रह जाए—यह असली कृपा है। चाह होना अभी कृपा नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास जी भी लिखते हैं: "जाह न चाहिए कबहु कछु तुम सन सहज सनेह, बसहु निरंतर तास उर, निज गेह सुर सोहे।" —जिसको कभी कुछ नहीं चाहिए, प्रभु से भी नहीं, उसके हृदय में भगवान निवास करते हैं।

इसलिए, अगर तुम्हारी कामनाएं पूरी हो रही हैं, तो हर्षित मत हो, कल नहीं होंगी, तो तुम्हें लगेगा कि श्रीजी नाराज हो गईं। कामनाएं पूरी होना भगवान की कृपा नहीं है, यह पुण्य और पाप के फल हैं। सुख-दुख में समान भाव होना, कोई चाह न रह जाना—यह असली कृपा है। भारी दुख की परिस्थिति में भी अगर हृदय कहे कि भगवान बहुत कृपालु हैं, तो यह असली कृपा है।

कामनाओं की पूर्ति में तो सबको कृपा का अनुभव होता है, लेकिन विपत्ति और दुख में कृपा का अनुभव करना—यही सच्ची भक्ति है। सांसारिक लाभ को भगवान की कृपा से न तोलो, अपनी इच्छाओं की पूर्ति को भगवान की कृपा से न तोलो। यह पुण्य और पाप के फल से आता-जाता रहता है।

निष्कर्ष:
निष्काम भाव (इच्छा-रहित प्रेम) से ही भगवत् प्राप्ति होती है। जब तक चाह बनी रहेगी, असली कृपा नहीं मानी जाएगी। जब हृदय में कोई चाह न बचे, केवल श्रीजी की इच्छा ही सर्वोपरि हो जाए, वही सच्ची कृपा और भगवत् प्राप्ति की अवस्था है।