यह बात तो प्रत्यक्ष है कि हम पूरा टैक्स देते हैं तो धन चला जाता है और टैक्स पूरा नहीं देते, छिपा लेते हैं तो धन बच जाता है; अतः छिपा लेना अच्छा हुआ ?

It is obvious that if we pay full tax then the money is lost and if we do not pay the full tax and hide it then the money is saved; So is it better to hide it?

SPRITUALITY

Geeta Press book ''गृहस्थमें कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश

3/31/20241 min read

प्रश्न - यह बात तो प्रत्यक्ष है कि हम पूरा टैक्स देते हैं तो धन चला जाता है और टैक्स पूरा नहीं देते, छिपा लेते हैं तो धन बच जाता है; अतः छिपा लेना अच्छा हुआ ?

उत्तर-एक बार ऐसा दीखता है कि टैक्स न देनेसे धन बच गया, पर अन्तमें वह धन रहेगा नहीं*। बचा हुआ धन काममें भी आयेगा नहीं। परंतु धनके लिये जो झूठ, कपट, धोखेबाजी, अन्याय आदि किये हैं, उनका दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा और अन्यायपूर्वक कमाया हुआ धन छोड़कर मरना ही पड़ेगा। तात्पर्य है कि अन्यायपूर्वक कमाया हुआ धन चाहे डॉक्टरों, वकीलों आदिके पास चला जायगा, चाहे चोर-डाकू ले जायँगे, चाहे बैंकों में पड़ा रहेगा, पर आपके काममें नहीं आयेगा। अतः जो धन आपके काममें नहीं आयेगा, उसके लिये पाप, अन्याय क्यों किया जाय ?

सच्चाईसे कमानेपर धन कम आयेगा, यह बात नहीं है। जो धन आनेवाला है, वह तो आयेगा ही। हाँ, किस तरह आयेगा, इसका तो पता नहीं, पर आनेवाला धन आयेगा जरूर। ऐसे कई उदाहरण देखनेमें आते हैं कि जो धनका त्याग कर देते हैं, धन लेते नहीं, उनके सामने भी धन आता है। तात्पर्य है। जैसे घाटा, बीमारी, दुःख आदि बिना चाहे, बिना उद्योग कि आते हैं, ऐसे ही जो धन, सुख आनेवाला है, वह भी बिना चाहे बिना उद्योग किये ही आयेगा-

सुखमैन्द्रियकं राजन् स्वर्गे नरक एव च।

देहिनां यद् यथा दुःखं तस्मान्नेच्छेत तद् बुधः ॥

(श्रीमद्भा० ११।८। १)

'राजन् ! प्राणियों को जैसे इच्छाके बिना प्रारब्धानुसार दुःख प्राप्त होते हैं, ऐसे ही इन्द्रियजन्य सुख स्वर्ग में और नरक में भी प्राप्त होते हैं। अतः बुद्धिमान् मनुष्यको चाहिये कि वह उन सुखों की इच्छा न करे।'

* अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद्विनश्यति ॥

'अन्यायसे कमाया हुआ धन दस वर्ष तक ठहरता है और ग्यारहवाँ वर्ष प्राप्त होनेपर वह मूलसहित नष्ट हो जाता है।'

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.