जीवन एक आनन्द यात्रा
इस लेख को पढ़कर जीवन ही बदल जायेगा
SPRITUALITY


जीवन एक आनन्द यात्रा
I - सैद्धान्तिक विषय
I-(१) जीवन एक आनन्द यात्रा
हर मनुष्य सुखी रहना चाहता है वह भी थोड़ी देर के लिये नहीं बल्कि हर समय। उसकी जीवन-यात्रा की हर चेष्टा के पीछे यही एक खोज छिपी रहती है। इसके रूप अलग-अलग अवश्य हो सकते हैं किसी को नौकरी या उन्नति की खोज है, तो किसी को पारिवारिक सम्बन्धों में प्रेम की खोज; कोई करोड़ों रुपये कमाकर आराम का जीवन चाहता है, तो कोई दर्दनाक रोग की पीड़ा से शीघ्र छुटकारा चाहता है। साथ-साथ, चारों ओर के वातावरण में भ्रष्टाचार, धोखा, हिंसा, छल-कपट और स्वार्थ दीखता है। ऐसे में कोई तो अपने अधिकार को पाने के लिये उत्तेजित होकर क्रोध, चालाकी और "ऊपर तक जान-पहचान" का आश्रय ले लेता है, और दूसरी ओर सज्जन व्यक्ति अपने आपको बेबस और लाचार समझकर "कलियुग के दूषित वातावरण" को कोसता हुआ रह जाता है। जब वह अपने मित्र-बान्धवों से बात करता है, तब उनसे भी मात्र सहानुभूति ही मिलती है, पर समाधान नहीं। बातचीत के अन्त में अधिकतर एक ही शिकायत छाई रहती है कि "हमारे साथ बड़ा अत्याचार हो रहा है, हम बड़े कष्ट में हैं और आज का युग ही ऐसा है कि सुख-शान्ति किसी को मिल ही नहीं पाती।"
प्र.१) इन सब समस्याओं, चिन्ताओं और निराशाओं का मूल कारण क्या है?
उ.) इन सभी कष्टों का मूल कारण यह भ्रमपूर्ण धारणा है कि मनुष्य अपने शरीर को अपनी निज सम्पत्ति मानता है, जिसका उपयोग वह अपनी अधूरी समझ के अनुसार जैसे चाहे वैसे करता रहता है। परन्तु यह तो हम सभी का अनुभव है कि चाहे शरीर हो, प्राण या जीवन ये तीनों ही हमारा कहना नहीं मानते, न ही इन पर हमारा कोई नियंत्रण है। इसका मतलब यही निकलता है कि ये तीनों ही वस्तुएँ किसी अन्य सत्ता द्वारा नियंत्रित हैं और उस परम उदार सत्ता ने बड़े प्रेम और विश्वास के साथ अपने किसी विशेष कार्य के लिये ये वस्तुएँ हमे प्रदान की हैं। इस कार्य की अवहेलना से जीवन-प्राण-शरीर का अन्य कार्यों में दुरुपयोग होता है। यह दुरुपयोग ही इन समस्याओं, बिन्ताओं और निराशा ब का आधारभूत कारण है। इस तथ्य का विश्लेषण लेख संख्या 1-(३) में किया गया है। जिस सत्ता ने हमें इतनी अमूल्य वस्तुएँ दी है. वह निश्चय ही हमारा परय हितैषी है। उसी सत्ता को परमात्मा, भगवान, ईश्वर आदि नामों से जाना जाता है। तो क्या ऐसे करुणामय भगवान ने यह अमूल्य जीवन, प्राण और शरीर हम इसलिये दिये हैं कि हम से-पीट कर, झींक-झींक कर जीवन बिताये ? यह बात युक्ति-संगत नहीं लगती।
प्र.२) यदि ऐसी बात है, तो हमें यह कैसे पता चल सकता है कि भगवान हमसे चाहते क्या हैं? कोशिश करने पर भी जीवन की अनेक समस्याओं के समाधान समझ में नहीं आते क्या इसमें भी वे हमारी मदद करेंगे?
उ.) यह अत्यन्त हर्ष और आशा की बात है कि जीवन की इन जटिल समस्याओं और गुत्थियों से हमें अकेले ही, निःसहाय होकर सामना करने की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा ने हम पर दया करके वह उपाय भी घोषित किया है, जिससे जीवन में कोई गुत्थी प्रकट ही न हो। यह उपाय प्राचीन ऋषियों एवं मनीषियों द्वारा उन ग्रन्थों में स्पष्ट किया गया है, जिन्हें 'धर्मग्रन्थ' कहा जाता है। इन ग्रन्थों में प्रमुख ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीरामचरितमानस एवं श्रीमद्भागवत-महापुराण हैं। इन्हीं ग्रन्थों से हमें भगवान् की इच्छा का भी पता चलता है। वे तो यही चाहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य कष्ट, अभाव, दुःख और चिन्ता पर विजय प्राप्त कर उन्हीं के जैसे परमात्मा बन जाय। इसके लिये आवश्यक यह है कि वह इन धर्मग्रन्थों का नियमित अध्ययन करे, उसमें बतायी गयी आज्ञाओं का पालन करे, दैनिक जीवन के लिये उनसे ही मार्गदर्शन ले और इस प्रकार अपने भगवत्स्वरूप को सुगमता से अनुभव कर ले। इन ग्रन्थों के आधार पर आधुनिक जीवन की गुत्थियों व समस्याओं का समाधान करने के लिये प्रस्तुत परिपत्रकों में प्रयास किया गया है। आशा है कि इन पत्रकों से सभी पाठकों के मन में मनुष्य-जीवन के परम लक्ष्य, भगवत्-प्राप्ति तक जल्दी से जल्दी पहुँचने की उत्सुकता बढ़ेगी।
इस आनन्दमय मार्ग की एक और बड़ी विशेषता है। इसमें ऐसा नहीं है कि मार्ग को सफलतापूर्वक पार करने के बाद ही कभी दूर भविष्य में या जीवन के अन्त में ही आनन्द की प्राप्ति होगी। यह तो ऐसा विलक्षण मार्ग है कि इस पर पहला कदम रखते ही आनन्द के घनीभूत रूप परमात्मा हमारे साथ-साथ चलकर बड़े प्रेम से हमें सँभालते रहते हैं। धर्मशास्त्रों द्वारा बतायी गयी भगवान् की आज्ञा का श्रद्धापूर्वक पालन करने से वर्तमान सांसारिक जीवन की हर परिस्थिति में अनुकूलता ही अनुकूलता का सहज रूप से अनुभव होने लगता है। साथ ही, पग-पग पर भगवान् के मधुर संग के अनुभव से इस आनन्दमय लक्ष्य की प्राप्ति भी सुगम हो जाती है।
प्र.३) इस पुस्तक का लाभ कैसे उठाया जा सकता है? क्या जीवन की समस्याओं पर विजय पाने के लिये यह संकलन अपने में पर्याप्त है?
उ.) प्रस्तुत परिपत्रकों में इस आनन्द यात्रा की तैयारी, उद्देश्य तथा इसमें आने वाली बाधाओं और उनके शास्त्र-अनुमोदित निराकरण' का विश्लेषण देने का प्रयास किया गया है। इस संकलन का पूरा स्थायी लाभ उसी को मिल सकता है, जो अपने आप को साधक मानकर नाम-जप, स्वाध्याय और सत्संग को अपने दैनिक जीवन का अभिन्न और नियमित अंग बनाने के लिये कटिबद्ध हो। शास्त्र की आज्ञा जीवन में कैसे धारण करें, उसमें उठने वाली कठिनाइयों का समाधान कैसे हो इन्हीं विषयों पर इस संकलन में सद्ग्रन्थों का मार्गदर्शन सरल रूप से प्रस्तुत करने की चेष्टा की गयी है। धर्मशास्त्रों, विशेषकर श्रीमद्भगवद्गीता के ही आधार पर समाधान प्रस्तुत किये गये हैं, क्योंकि गीता में सभी धर्मशास्त्रों का सार संग्रहीत है। इस संकलन का उद्देश्य तो केवल यह है कि इसको पढ़ने के बाद इन साधनों को अंगीकार करने व श्रीमद्भगवद्गीता को पढ़कर उसके आश्रित अपना जीवन जीने के लिये श्रद्धालु पाठकों का मन और भी उत्साहित हो जाय। परन्तु गीता के नियमित स्वाध्याय के बिना, केवल इस संकलन के आधार पर अपने सारे संशयों व प्रश्नों का समाधान चाहना एक अधूरा प्रयास ही होगा।
अतः विनम्र निवेदन है कि व्यक्तिगत और पारिवारिक दोनों ही स्तरों पर श्रीमद्भगवद्गीता के नियमित अध्ययन से मन को धर्मग्रन्थों के सिद्धान ग्रहण करने के लिये तत्परतापूर्वक तैयार अवश्य करें। साथ ही साथ, यदि किसी भी सिद्धान्त को दैनिक जीवन में उपयोग करते समय कोई कठिनाई या संशय उपस्थित हो. तो उसके समाधान के लिये उस विषय से सम्बन्धित लेख पर मनर अवश्य उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी आशा है।
परम करुणामय और शरणागत्-वत्सल प्रभु के श्रीचरणों में यह मंगलकामना सादर समर्पित है कि स्वाध्याय की उपरोक्त प्रणाली से सभी पाठकगण धर्मशास्त्रों का आश्रय लेकर कल्याण-मार्ग निर्धारित कर सकें, इस आधुनिक युग में भी सभी जन अपने जीवन के हर पक्ष और परिस्थिति में इन अमूल्य, शाश्वत् सिद्धान्तों की उपयोगिता को निष्ठापूर्वक समझ सकें और तत्पश्चात दैनिक जीवन में हर पल इनका उपयोग करते हुए आनन्दमय-भक्तिमय जीवन का निर्माण सहज रूप से कर सकें।
1. scripture-based solutions
2. compiled
प्रकाशक :-
ईशान एकोज
303, महागुन मैनर, एफ-30, सैक्टर-50, नौएडा (उ०प्र०) - 201301
डॉ. आदित्य सक्सैना, (2022) सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण: 2000 प्रतियाँ (8) दिसम्बर, 2008, श्री गीता जयन्ती)
द्वितीय संस्करण: 2200 प्रतियाँ (2) अक्टूबर 2013)
तृतीय संस्करण: 3300 प्रतियाँ (अगस्त 2022)
पुस्तक प्राप्ति स्थान :-
वेबसाइट: www.radhanikunj.org
* संजय अरोड़ा
दूरभाष: +91-98972-31510, +91-121-266-0122
ईमेल: sanjaythakur75@gmail.com
अबीर मिश्रा
मोबाईल : +91-98111-13488
ISBN: 978-81-932793-7-3
मूल्य : रु० 250/- (दो सौ पचास रुपये)
मुद्रक :-
राधा प्रेस
38/2/16, साइट-4, साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र, गाज़ियाबाद (उ०प्र०)
दूरभाष: +91-120-429-9134