माँस-मदिरा नहीं खाना चाहिए पर जो खाते हैं उनपर तो खूब धन-दौलत भी है ऐसा क्यों ?
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन में मांस-मदिरा के सेवन, अधर्म से प्राप्त धन और धर्म के महत्व पर विस्तृत चर्चा की। जानिए क्यों केवल धन नहीं, बल्कि धर्म और संयम से ही सच्चा सुख और शांति मिलती है। Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj explains in his discourse why consuming meat and alcohol, and wealth earned through unrighteous means, do not bring true happiness. Discover why real peace and joy come from righteousness and self-restraint.
SPRITUALITY


मांस-मदिरा, अधर्म और धन: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का मार्गदर्शन
Meat, Alcohol, Unrighteousness, and Wealth: Teachings of Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
Keywords
Premanand Maharaj satsang
Bhajan Marg Hindi transcript
Meat and alcohol in Hinduism
Dharma vs wealth
Spiritual discourse Hindi
Shri Hit Radha Keli Kunj
Vegetarianism in Hinduism
Importance of self-restraint
Consequences of unrighteous wealth
Hindi spiritual pravachan
परिचय
इस लेख में हम श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन का विस्तृत हिंदी ट्रांसक्रिप्ट और सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं। महाराज जी ने मांस-मदिरा के सेवन, अधर्म से प्राप्त धन, और धर्म के महत्व पर गहन प्रकाश डाला है। यह प्रवचन 'भजन मार्ग' यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है।
प्रवचन का मुख्य विषय
महाराज जी से एक श्रोता ने प्रश्न किया कि "मांस-मदिरा खाना-पीना गलत बताया गया है, लेकिन कई लोग यह सब करते हैं और फिर भी उनके पास खूब धन-दौलत है, ऐसा क्यों?"
महाराज जी का उत्तर
धन का संबंध पूर्व पुण्य से:
महाराज जी ने बताया कि सुत, दारा, धन, लक्ष्मी—ये सब पूर्व जन्म के पुण्य के फलस्वरूप मिलते हैं। वर्तमान में जो लोग पाप कर्म (जैसे मांस-मदिरा का सेवन) कर रहे हैं, उनके पुण्य जब समाप्त होंगे, तब उन्हें परिणाम भुगतना पड़ेगा।परिणाम को देखना चाहिए:
विद्वान व्यक्ति केवल वर्तमान नहीं, बल्कि कर्मों के परिणाम को देखता है। मरने के बाद केवल पाप-पुण्य साथ जाते हैं, बैंक बैलेंस नहीं।मांसाहार के दुष्परिणाम:
जो लोग मांस खाते हैं, उन्हें नरक में दुर्गति भोगनी पड़ती है। पैसा होना कोई बड़ी बात नहीं, कसाई और पापियों के पास भी पैसा होता है। असली बात शांति और आनंद है, जो धर्म और संयम से ही मिलता है।तीन प्रकार के हिस्सेदार:
मांसाहार में तीन लोग बराबर भागी होते हैं—कर्ता (जो करता है), अनुमोदक (जो सहमति देता है/खाता है), और प्रेरक (जो प्रेरित करता है)। सभी को समान दंड मिलता है।धर्म और अधर्म का उदाहरण:
महाराज जी ने महाभारत के उदाहरण से बताया—युधिष्ठिर धर्म से चले, तो कष्ट के बावजूद अंत में विजयी हुए; दुर्योधन अधर्म से चला, तो सब कुछ होते हुए भी विनाश हुआ।मदिरा के नुकसान:
शराब पीने से कोई लाभ नहीं, बल्कि शरीर, बुद्धि और समाज दोनों का नुकसान होता है। शराब क्रोध, व्यभिचार, हिंसा, और बीमारियों का कारण बनती है।संयम और ब्रह्मचर्य का महत्व:
संयम और ब्रह्मचर्य में ही असली बल है। अध्यात्मिक बल से ही मनुष्य महान बनता है, न कि मांसाहार या मदिरा से।जुआ, व्यभिचार, और अधर्म का विरोध:
शास्त्र में जूआ, व्यभिचार, और रिश्वत आदि से दूर रहने की सलाह दी गई। धर्म से चलने पर ही शांति और आनंद मिलता है।धन और धर्म का अंतर:
केवल धन से शांति नहीं मिलती, बल्कि धर्म से ही सच्चा सुख संभव है। अधर्म से कमाया धन किसी काम का नहीं।प्रार्थना और संदेश:
महाराज जी ने अंत में प्रार्थना की कि सभी लोग मांस, मदिरा, और अधर्म से दूर रहें, और धर्म, संयम, और करुणा का मार्ग अपनाएं।
मुख्य निष्कर्ष
मांस-मदिरा का सेवन और अधर्म से कमाया धन अंततः दुख और विनाश का कारण बनता है।
धर्म, संयम, और ब्रह्मचर्य से ही जीवन में सच्चा सुख, शांति और आनंद प्राप्त होता है।
दूसरों को कष्ट न दें, जीवों की रक्षा करें, और सादा जीवन अपनाएं।
निष्कर्ष
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का यह प्रवचन आज के समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। धन की बजाय धर्म, संयम, और करुणा को अपनाना ही जीवन का सच्चा मार्ग है।