प्रश्न- छोटे भाई माता-पितासे लड़ें तो बड़े भाईका क्या कर्तव्य है?

Question: If the younger brother fights with the parents, what is the duty of the elder brother?

लड़ाई झगड़े का समाधान RESOLVE CONFLICT

गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तक ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश. पुस्तक के लेखक स्वामी रामसुखदास जी हैं.

9/7/20241 min read

प्रश्न- छोटे भाई माता-पितासे लड़ें तो बड़े भाईका क्या कर्तव्य है?

उत्तर-बड़ा भाई छोटे भाइयोंको समझाये कि 'देखो भाई ! मैं और आप सब बालक हैं। माता-पिता हमारे लिये सर्वथा आदरणीय हैं, पूज्य हैं। जिस शरीरसे हम भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं, वह हमें माता-पिताकी कृपासे ही मिला है। हम उनके ऋणसे कभी मुक्त नहीं हो सकते। हाँ, हम उनके अनुकूल होंगे तो उनके राजी होनेसे वह ऋण माफ हो सकता है। हम अपने चमड़ेकी जूती बनाकर माता-पिताको पहना दें तो भी उनका ऋण नहीं चुका सकते; क्योंकि वह चमड़ा आया कहाँसे ? उनकी वस्तु ही उनको दी है, हमने अपना क्या दिया ? उनकी वस्तुको हम अपना मानते हैं, यही गलती है। वे हमारेको चाहे जैसा रखें, उनका हमपर पूरा अधिकार है।'

स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।