प्रश्न- सन्तान कम होगी तो उनका पालन-पोषण भी अच्छा होगा और परिवार भी सुखी रहेगा; अतः परिवार नियोजन करनेमें हानि क्या है?

Question- If there are fewer children, their upbringing will be better and the family will also be happy; so what is the harm in doing family planning?

महापाप से बचो AVOD THE BIGOTRY

गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तक ''गृहस्थ में कैसे रहें ?'' से यह लेख पेश. पुस्तक के लेखक स्वामी रामसुखदास जी हैं.

9/2/20241 min read

प्रश्न- सन्तान कम होगी तो उनका पालन-पोषण भी अच्छा होगा और परिवार भी सुखी रहेगा; अतः परिवार नियोजन करनेमें हानि क्या है?

उत्तर-कम सन्तानसे परिवार सुखी रहेगा यह बात नहीं है। जिनकी सन्तान नहीं है, वे भी दुःखी हैं; जिनकी सन्तान कम है, वे भी दुःखी हैं; और जिनकी अधिक सन्तान हैं, वे भी दुःखी हैं। हमने बिना सन्तानवालोंको भी देखा है, थोड़ी सन्तान- वालोंको भी देखा है और अधिक सन्तानवालोंको भी देखा है तथा उनसे हमारी बातें हुई हैं। वास्तवमें सन्तानका ज्यादा-कम होना सुख-दुःखमें कारण नहीं है। जो कम सन्तान होनेके कारण सुखी हो, ऐसा आदमी संसारमें एक भी हो तो बताओ। संसारमें क्या, सृष्टिमें भी नहीं है! दुःखका कारण है- भोगपरायणता- 'ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते' (गीता ५।२२)। भोगपरायण आदमी कभी सुखी हो सकता ही नहीं, सम्भव ही नहीं। जो भोगपरायण है, उसकी सन्तान चाहे ज्यादा हो, चाहे कम हो, चाहे बिलकुल न हो, वह तो दुःखी रहेगा ही।

विवाह के बाद आरम्भमें स्त्रीका पुरुषके प्रति और पुरुषका स्त्रीके प्रति विशेष आकर्षण रहता है, इसलिये पहली जो सन्तान होती है, वह केवल भोगेच्छासे ही होती है। भोगेच्छासे पैदा हुई सन्तान प्रायः अच्छी नहीं होती, भोगी होती है। आज जितना भी अच्छे भावोंका प्रचार हुआ है, समाजका सुधार हुआ है, वह सब अच्छे व्यक्तियोंके द्वारा ही हुआ है। क्या भोगी, लोलुप, चोर, डकैत व्यक्तियोंके द्वारा समाजका कभी सुधार हुआ है? और क्या उनके द्वारा समाजका सुधार होनेकी सम्भावना है? अतः सन्तान कम होनेसे प्रायः भोगी सन्तान ही पैदा होगी, जिससे समाजका पतन ही होगा।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.

स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।