प्रश्न - भाई-भाई आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?
Question: What should parents do if brothers fight among themselves?
लड़ाई झगड़े का समाधान RESOLVE CONFLICT
प्रश्न - भाई-भाई आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?
उत्तर- माता-पित्ताको न्यायकी बात कहनी चाहिये। वे
छोटे पुत्रसे कहें कि तुम भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नको देखो कि वे रामजीके साथ कैसा बर्ताव करते थे; भीम, अर्जुन आदि अपने बड़े भाई युधिष्ठिरके साथ कैसा बर्ताव करते थे। बड़े पुत्रसे कहें कि तुम रामजीको देखो कि उन्होंने अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव किया था; और युधिष्ठिर अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव करते थे। अतः तुम सब लोग उनके चरित्रोंको आदर्श मानकर अपने आचरणमें लाओ।
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.
स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।