रेरा में केस: खर्च, संघर्ष, राहत और बिल्डर की मनमानी – जानिए हर पहलू और एक असली ग्राहक की कहानी
RERA में केस करने का खर्च, समय, परेशानी, कोर्ट प्रक्रिया और ग्राहकों की संघर्ष भरी सच्ची कहानी जानिए। क्या RERA से राहत मिलती है या बिल्डर की मनमानी चलती है?
गृहस्थ धर्म HOUSEHOLD'S DUTY


रेरा में केस करने का खर्च, परेशानी, समय, कोर्ट प्रक्रिया और ग्राहकों की जमीनी हकीकत
**#RERA #RealEstate #Homebuyers #BuilderIssues #galRights
रेरा क्या है और क्यों जरूरी है?
रेरा (Real Estate Regulatory Authority) एक्ट 2016 के तहत घर खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून है, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता, जवाबदेही और ग्राहकों को न्याय दिलाने का मकसद है12। रेरा के लागू होने के बाद सभी प्रोजेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो गया है और बिल्डर्स को खरीदारों से लिए गए पैसे का 70% हिस्सा उसी प्रोजेक्ट के लिए बैंक में रखना पड़ता है।
रेरा में केस करने का खर्च और प्रक्रिया
1. केस फाइल करने का खर्च
रेरा में केस फाइल करने के लिए राज्य की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जाती है।
रजिस्ट्रेशन फीस आमतौर पर ₹1,000 से ₹5,000 के बीच होती है (राज्य अनुसार अलग-अलग)।
वकील की फीस: अधिकतर मामलों में वकील की जरूरत पड़ती है, जिनकी फीस ₹1 लाख से ₹1.5 लाख तक एडवांस में ली जाती है।
डॉक्यूमेंटेशन, नोटरी, प्रिंटिंग आदि का अलग खर्च भी होता है।
अगर मामला आगे अपीलीय ट्रिब्यूनल या हाईकोर्ट जाता है तो खर्च और बढ़ सकता है।
2. प्रक्रिया
ऑनलाइन/ऑफलाइन शिकायत दर्ज करें।
जरूरी दस्तावेज़ (एग्रीमेंट, पेमेंट रसीद, पत्राचार आदि) अपलोड करें।
सुनवाई के लिए तारीख मिलती है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनी जाती हैं।
आदेश जारी होता है।
रेरा में केस करने में कितनी परेशानी आती है?
1. समय और धैर्य की परीक्षा
रेरा एक्ट के अनुसार 60 दिनों में फैसला आना चाहिए।
लेकिन अक्सर बिल्डर सुनवाई टालने के लिए तारीख पर तारीख मांगते हैं या तकनीकी आपत्ति उठाते हैं।
कई बार दस्तावेजों की कमी, बिल्डर की गैर-हाजिरी, या सरकारी स्तर पर फाइलों की लेटलतीफी से मामला महीनों या सालों तक लटक जाता है।
2. मानसिक और आर्थिक दबाव
बिल्डर केस करने पर बुकिंग कैंसिल करने या अतिरिक्त पैसे की डिमांड करने की धमकी देता है।
बार-बार कोर्ट-कचहरी के चक्कर, सरकारी दफ्तरों में भागदौड़, और खर्चा बढ़ता जाता है।
कई बार रेरा का आदेश मिलने के बाद भी बिल्डर पालन नहीं करता, जिससे ग्राहक को दोबारा केस करना पड़ता है या हाईकोर्ट जाना पड़ता है।
3. बिल्डर की मनमानी
रेरा के आदेश के बावजूद बिल्डर न तो पैसा लौटाता है, न पजेशन देता है।
कई बार रिकवरी सर्टिफिकेट (RC) जारी हो जाता है, लेकिन तहसीलदार या अन्य सरकारी अधिकारी भी आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते।
रेरा के बाद क्या मामला कोर्ट में जाता है?
रेरा के आदेश के खिलाफ बिल्डर या ग्राहक दोनों अपीलीय ट्रिब्यूनल (REAT) में अपील कर सकते हैं।
अगर वहां भी समाधान न मिले तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला रहता है।
कई बार रेरा के आदेश के पालन के लिए भी ग्राहक को कोर्ट जाना पड़ता है, जिससे सालों-साल मामला लटक सकता है।
कितना समय लगता है?
प्रक्रियाअनुमानित समयरेरा में शिकायत60 दिन (आदर्श स्थिति)अपील/REAT3-12 महीनेहाईकोर्ट/SC1-5 साल या अधिक
वास्तविकता में, 60 दिन में बहुत कम मामलों का निपटारा होता है। कई केस 1-3 साल तक चलते हैं, खासकर यदि बिल्डर आदेश नहीं मानता या अपील करता है।
असली केस स्टडी: 10 साल का संघर्ष, फिर भी राहत अधूरी
गुड़गांव के कपल की कहानी
2013 में 1.16 करोड़ का फ्लैट बुक किया, 2014 में पैसे पूरे दिए, लेकिन प्रोजेक्ट शुरू ही नहीं हुआ।
बिल्डर ने बार-बार प्रोजेक्ट और फ्लैट बदलवाए, लेकिन हर बार डिलीवरी टलती रही।
आखिरकार 2022 में रेरा में शिकायत की, रिफंड और ब्याज मांगा।
हरियाणा रेरा ने बिल्डर को 2.26 करोड़ (रिफंड+11.1% ब्याज) देने का आदेश दिया।
लेकिन आदेश के पालन में फिर भी देरी, बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर, मानसिक तनाव और आर्थिक नुकसान।
यह कहानी अकेली नहीं है, हजारों खरीदारों को ऐसा ही संघर्ष झेलना पड़ता है।
क्या रेरा से ग्राहकों को राहत मिली है?
सकारात्मक पहलू
रेरा के कारण पारदर्शिता बढ़ी है, प्रोजेक्ट की जानकारी ऑनलाइन मिलती है।
कई ग्राहकों को रिफंड, पजेशन या ब्याज मिला है। यूपी रेरा ने 5,500 से ज्यादा ग्राहकों को 1,360 करोड़ रुपये दिलवाए हैं।
86% से ज्यादा शिकायतों का निपटारा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी घर खरीदारों के हित को सर्वोपरि माना है।
नकारात्मक पहलू
13,000 से ज्यादा केस ऐसे हैं जिनमें रेरा के आदेश के बाद भी बिल्डर ने पालन नहीं किया।
सिर्फ 1,250 मामलों में ही समझौता या निपटारा हो पाया।
बिल्डर की मनमानी, सरकारी सिस्टम की सुस्ती, और कानूनी पेचीदगियां बनी हुई हैं।
ग्राहकों को बार-बार कोर्ट जाना पड़ता है, जिससे सालों-साल मामला लटक जाता है।
बिल्डर की मनमानी क्यों चलती है?
रेरा के पास सीमित अधिकार हैं, आदेश का पालन न होने पर भी सीधा एक्शन नहीं ले सकता।
बिल्डर अपील, कोर्ट, या तकनीकी बहाने से आदेश टालते रहते हैं।
सरकारी अमला (तहसीलदार, कलेक्टर आदि) भी आदेशों को प्राथमिकता नहीं देता।
कई बार बिल्डर ग्राहकों को धमकी, दबाव या फर्जी डिमांड से परेशान करते हैं।
ग्राहकों के लिए सुझाव
केस फाइल करने से पहले सभी दस्तावेज तैयार रखें।
वकील का चुनाव सोच-समझकर करें।
रेरा के आदेश के पालन के लिए लगातार फॉलोअप करें।
जरूरत पड़े तो मीडिया, सोशल मीडिया या बायर्स एसोसिएशन की मदद लें।
धैर्य और हिम्मत बनाए रखें, क्योंकि न्याय की राह लंबी हो सकती है।
निष्कर्ष
रेरा ने घर खरीदारों को आवाज और मंच तो दिया है, लेकिन जमीनी स्तर पर बिल्डर की मनमानी और सरकारी सिस्टम की सुस्ती से ग्राहकों को पूरी राहत नहीं मिल पाई है। केस करने में खर्च, समय और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। फिर भी, कई मामलों में ग्राहकों को न्याय मिला है और रेरा की वजह से रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता आई है। लेकिन जब तक आदेशों का पालन सख्ती से नहीं होगा, ग्राहकों की लड़ाई जारी रहेगी।
**#RERA #RealEstate #Homebuyers #BuilderIssues #LegalRights #ConsumerRights #PropertyDispute #CourtCase #IndiaProperty #aziabad