SCIENCE VS. SPIRITUALITY : विज्ञान के छात्र का प्रश्न: भगवान को देखा नहीं, प्रमाण नहीं, तो कैसे मानें?

"विज्ञान का छात्र हूँ, भगवान को देखा नहीं, कोई प्रमाण नहीं तो कैसे मानूँ?" — इस सवाल का संत प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन के आधार पर विश्लेषण। जानिए विज्ञान, तर्क, श्रद्धा, गुरु वचन, आत्मा और भगवान के अस्तित्व पर विस्तार से।

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6/3/20251 min read

परिचय

आज के वैज्ञानिक युग में, जब हर चीज़ को प्रमाण और तर्क की कसौटी पर परखा जाता है, तब "भगवान" या "ईश्वर" के अस्तित्व पर सवाल उठना स्वाभाविक है। खासकर विज्ञान के छात्रों के लिए, जो विश्लेषणात्मक सोच और तर्क के आधार पर जीवन को समझने की कोशिश करते हैं, उनके मन में यह प्रश्न बार-बार आता है: "भगवान को देखा नहीं, कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं, तो कैसे मानें?" इस लेख में हम इसी विषय पर प्रसिद्ध संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन के आधार पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भगवान के अस्तित्व पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण

विज्ञान क्या कहता है?
विज्ञान हर उस चीज़ को मानता है जिसे अनुभव किया जा सके, मापा जा सके या प्रमाणित किया जा सके। विज्ञान के छात्र तर्क, विश्लेषण और प्रमाण के आधार पर ही किसी चीज़ को स्वीकार करते हैं। लेकिन क्या हर चीज़ को प्रमाणित किया जा सकता है? क्या हर अनुभव को विज्ञान की कसौटी पर कसा जा सकता है?

मानव अनुभव की सीमाएँ
हमारे अनुभव, हमारी इंद्रियाँ और विज्ञान के उपकरण भी सीमित हैं। उदाहरण के लिए, हम अपने मन को, आत्मा को, या भावनाओं को किसी यंत्र से नहीं देख सकते, फिर भी हम मानते हैं कि वे हैं। इसी तरह, ईश्वर का अनुभव भी प्रत्यक्ष प्रमाण से परे है, वह अनुभूति का विषय है, प्रमाण का नहीं1।

गुरु और माँ के वचन का प्रमाण

पिता का प्रमाण कैसे मिलता है?


महाराज जी एक सुंदर उदाहरण देते हैं:
"जैसे आप अपने पिता का प्रमाण तर्क से नहीं खोज सकते। माँ के वचन ही प्रमाण होते हैं, क्योंकि वही जानती हैं कि आपका पिता कौन है। उसी तरह, गुरु के वचन ही भगवान के अस्तित्व का प्रमाण हैं।"

गुरु वचन और विश्वास
यदि गुरु के वचन में दृढ़ विश्वास हो जाए, तो परमात्मा सर्वत्र, बाहर-भीतर, हर जगह अनुभव होने लगते हैं। जैसे माँ के कहने पर हम अपने पिता को मान लेते हैं, वैसे ही गुरु के वचन पर भगवान को मानना चाहिए।

आत्मा का अनुभव और पहचान

क्या आपने खुद को देखा है?
महाराज जी कहते हैं, "तुम अपने को प्रत्यक्ष अनुभव किए हो? फोटो में, शीशे में जो दिखता है, वह केवल शरीर है। असली 'तुम' कौन हो, कहाँ हो, क्या हो? विज्ञान भी केवल शरीर का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, सीटी-स्कैन कर सकता है, पर मन, आत्मा, सूक्ष्म शरीर को नहीं देख सकता।"

आत्मा का प्रमाण
हम अपने अस्तित्व को मानते हैं, पर जान नहीं सकते। जैसे हम आत्मा को प्रमाणित नहीं कर सकते, वैसे ही परमात्मा को भी नहीं। दोनों का अनुभव केवल श्रद्धा, विश्वास और साधना से ही संभव है।

श्रद्धा, तर्क और समर्पण

तर्क की सीमा
तर्क और बुद्धि की एक सीमा होती है। महाराज जी कहते हैं, "तर्क से अपने को नहीं जान सकते, तो परमात्मा को कैसे जान पाओगे? यहाँ तर्क से आगे बढ़कर श्रद्धा और समर्पण की आवश्यकता है।"

मान्यता का महत्व
जैसे गणित में 'मानी संख्या' रखकर सवाल हल हो जाता है, वैसे ही भगवान को ब्रह्म मानकर, गुरु को ब्रह्म मानकर, माता-पिता को ब्रह्म मानकर, आराधना करो, तो मुक्ति संभव है। मानने से जानना होगा, तर्क से नहीं।

भजन और आराधना का मार्ग

अनुभूति का मार्ग
भगवान का साक्षात्कार तर्क से नहीं, भजन और आराधना से होता है। जैसे कोई भारत का नागरिक होते हुए भी प्रधानमंत्री से मिलने के लिए योग्यता और आवश्यकता सिद्ध करनी पड़ती है, वैसे ही भगवान के साक्षात्कार के लिए भी साधना और पात्रता चाहिए।

साधना का महत्व
शरीर के भीतर जो तत्व है, वही आत्मा है, वही परमात्मा का अंश है। उस तत्व को जानने के लिए गुरु की शरण में जाकर, उनके बताए मार्ग पर साधना करनी होगी। बिना साधना के केवल तर्क से भगवान को नहीं जाना जा सकता।

अनुभव और प्रमाण

आत्मा और परमात्मा का अनुभव
कोई भी वैज्ञानिक यंत्र आत्मा या परमात्मा को प्रमाणित नहीं कर सकता। स्थूल शरीर (शरीर), सूक्ष्म शरीर (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार), कारण शरीर — इन सबको प्रकाशित करने वाला जो तत्व है, वही आत्मा है, वही परमात्मा का अंश है। उसका अनुभव केवल श्रद्धा, विश्वास और भजन से ही संभव है।

श्रद्धा और विश्वास
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है, "श्रद्धा और विश्वास के बिना भगवान का अनुभव नहीं हो सकता।" इसलिए भजन करो, श्रीकृष्ण से प्रेम करो, वे सभी संशय दूर कर देंगे।

निष्कर्ष

विज्ञान और अध्यात्म का संगम
विज्ञान हमें तर्क, प्रमाण और विश्लेषण सिखाता है, लेकिन अध्यात्म हमें अनुभव, श्रद्धा और समर्पण का मार्ग दिखाता है। भगवान का अस्तित्व प्रमाण का विषय नहीं, अनुभूति का विषय है। जैसे हम अपने अस्तित्व को बिना प्रमाण के मानते हैं, वैसे ही भगवान को भी मान सकते हैं।

आत्मा का अनुभव
अपने भीतर झाँको, साधना करो, गुरु के वचन में विश्वास रखो, भजन करो — यही मार्ग है भगवान के साक्षात्कार का। तर्क की सीमा के पार, श्रद्धा और प्रेम से ही परमात्मा का अनुभव संभव है।

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नोट:
यह लेख श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन (YouTube Video: YQmJQSNGPW8) के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें विज्ञान और तर्क के आधार पर भगवान के अस्तित्व पर उठे सवालों का गहराई से उत्तर दिया गया है1।