"वृंदावन बांके बिहारी कॉरिडोर विवाद: कौन कर रहा है विरोध, सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जनता का रुख, और निर्माण की पूरी जानकारी"

जानिए वृंदावन बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद की पूरी कहानी—कौन कर रहा है विरोध, सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला रहा, आम जनता का रुख क्या है, और सरकार कब से निर्माण कार्य शुरू करेगी। पढ़ें विस्तृत हिंदी आर्टिकल।

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6/9/20251 min read

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परिचय: क्या है बांके बिहारी कॉरिडोर विवाद?

वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर योजना बीते कुछ महीनों से जबरदस्त विवाद और विरोध का केंद्र बनी हुई है। यह विवाद केवल मंदिर के पुनर्विकास या भीड़ प्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें वृंदावन की सांस्कृतिक विरासत, स्थानीय समुदाय की आजीविका, धार्मिक पहचान और सरकारी हस्तक्षेप जैसे कई मुद्दे गहरे जुड़े हैं।

कौन-कौन से वर्ग कर रहे हैं विरोध?

1. गोस्वामी समाज

  • मंदिर में पूजा-पाठ कराने वाला गोस्वामी समाज सबसे मुखर विरोधी है।

  • उनका कहना है कि कॉरिडोर बनने से वृंदावन की ऐतिहासिक कुंज गलियां खत्म हो जाएंगी, जिससे संस्कृति और धार्मिक परंपरा को गहरा आघात पहुंचेगा।

  • वे यह भी मानते हैं कि सरकार मंदिर की निजी संपत्ति और फंड में अनुचित दखल दे रही है।

  • गोस्वामी समाज ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो वे ठाकुर बांके बिहारी को लेकर पलायन कर जाएंगे।

    2. स्थानीय ब्रजवासी एवं दुकानदार

  • ब्रजवासी और दुकानदार भी विरोध में शामिल हैं।

  • उनका कहना है कि कॉरिडोर के निर्माण से उनकी पुरानी दुकानें और मकान उजड़ जाएंगे, जिससे उनकी आजीविका पर संकट आ जाएगा।

  • कई परिवार पीढ़ियों से मंदिर के आसपास दुकानें चला रहे हैं, जिनका मुख्य आय स्रोत यही है।

3. तीर्थ पुरोहित और अन्य स्थानीय समाज

  • मंदिर से जुड़े तीर्थ पुरोहित भी विरोध में हैं।

  • उनका तर्क है कि भीड़ प्रबंधन के लिए अन्य विकल्प उपलब्ध हैं, कॉरिडोर की आवश्यकता नहीं है।

  • वे इसे वृंदावन की मूल पहचान और आध्यात्मिकता के लिए खतरा मानते हैं।

4. राजनीतिक दल

  • कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दल भी विरोध कर रहे हैं, जबकि बीजेपी सरकार इसके पक्ष में है और इसे विकास का प्रतीक बता रही है।

विरोध के मुख्य कारण

  • कुंज गलियों का विनाश: वृंदावन की संकरी गलियां, जो कृष्ण-लीला की साक्षी हैं, उनके खत्म होने का डर1715

  • संस्कृति और विरासत पर खतरा: स्थानीय लोग मानते हैं कि आधुनिक निर्माण से वृंदावन की पारंपरिक जीवनशैली और पूजा पद्धति प्रभावित होगी।

  • आर्थिक संकट: दुकानदारों और स्थानीय परिवारों की आजीविका छिनने का डर।

  • सरकारी हस्तक्षेप: गोस्वामी समाज को आपत्ति है कि सरकार मंदिर की संपत्ति और फंड का इस्तेमाल उनकी सहमति के बिना कर रही है।

  • टेंडर प्रक्रिया में मनमानी: निर्माण कार्य में पारदर्शिता को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या रहा?

1. सुप्रीम कोर्ट की अनुमति

  • सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 को यूपी सरकार को बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर योजना (500 करोड़ रुपये) को लागू करने की अनुमति दे दी है।

  • कोर्ट ने मंदिर के फिक्स्ड डिपॉजिट का उपयोग 5 एकड़ जमीन खरीदने के लिए करने की इजाजत दी, बशर्ते जमीन मंदिर ट्रस्ट या भगवान के नाम पर दर्ज हो।

  • कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर क्षेत्र में भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा के लिए यह विकास आवश्यक है, खासकर 2022 की भगदड़ की घटना को ध्यान में रखते हुए।

2. सेवायतों की आपत्ति और कोर्ट की टिप्पणी

  • मंदिर के सेवायतों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आपत्ति जताई कि उन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया और उनकी सहमति के बिना सरकार मंदिर फंड का इस्तेमाल कर रही है।

  • कोर्ट ने कहा कि यदि किसी को फैसले पर आपत्ति है तो पुनर्विचार याचिका दाखिल करें।

  • कोर्ट ने यूपी सरकार से 29 जुलाई 2025 तक परियोजना की पूरी जानकारी और अध्यादेश की कॉपी मांगी है।

3. निर्माण की जिम्मेदारी और ट्रस्ट

  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निर्माण कार्य मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाएगा, सरकार केवल बाहरी क्षेत्र का विकास करेगी।

  • मंदिर प्रबंधन का पूरा जिम्मा ट्रस्ट के पास रहेगा, सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी।

जनता का रुख: पक्ष में या विरोध में?

विरोध का स्वर

  • स्थानीय ब्रजवासी, गोस्वामी समाज, दुकानदार और तीर्थ पुरोहितों का बड़ा वर्ग विरोध में है।

  • उनका मानना है कि कॉरिडोर से वृंदावन की विरासत, संस्कृति और आजीविका पर गहरा असर पड़ेगा।

  • विरोध इतना तीव्र है कि कई बार प्रदर्शन, धरने और नारेबाजी तक हो चुकी है।

पक्ष में तर्क

  • सरकार, बीजेपी, और कुछ भक्त मानते हैं कि कॉरिडोर से भीड़ प्रबंधन आसान होगा, श्रद्धालुओं को सुरक्षित और सुगम दर्शन मिलेंगे91016

  • 2022 की भगदड़ जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है।

  • सरकार का दावा है कि प्रभावित दुकानदारों को उचित मुआवजा और दुकान के बदले दुकान दी जाएगी।

सारांश

  • स्थानीय स्तर पर विरोध अधिक है, लेकिन सरकार और कुछ बाहरी श्रद्धालु इसे विकास के रूप में देख रहे हैं।

  • कुल मिलाकर, आम जनता दो हिस्सों में बंटी है—स्थानीय निवासी विरोध में, जबकि बाहरी श्रद्धालु और सरकार पक्ष में।

पूरा मामला: विवाद की जड़ और घटनाक्रम

घटनाक्रम का संक्षिप्त विवरण

  1. 2022 की भगदड़: 19 अगस्त 2022 को मंगला आरती के दौरान दो श्रद्धालुओं की मौत और कई घायल हुए। इससे भीड़ प्रबंधन पर सवाल उठे।

  2. याचिकाएं और कोर्ट: मंदिर को बड़ा करने और व्यवस्था सुधारने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई, फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

  3. सरकारी योजना: यूपी सरकार ने 500 करोड़ का ड्रीम प्रोजेक्ट तैयार किया, जिसमें 5 एकड़ में कॉरिडोर, तीन एंट्री गेट, चौड़े रास्ते, पार्किंग, वेटिंग एरिया, और आधुनिक सुविधाएं शामिल हैं।

  4. विरोध और आंदोलन: गोस्वामी समाज, ब्रजवासी, दुकानदारों और तीर्थ पुरोहितों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कि।

  5. सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी: कोर्ट ने सरकार को योजना लागू करने की अनुमति दी, लेकिन ट्रस्ट के अधिकार सुरक्षित रखने और प्रभावित लोगों को मुआवजा देने का निर्देश दिया।

  6. सरकारी तैयारी: सरकार ने PWD को निर्माण एजेंसी नामित किया, सर्वे और मुआवजा प्रक्रिया शुरू की गई।

सरकार कब से कॉरिडोर निर्माण शुरू करेगी?

  • सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बाद, राज्य सरकार ने निर्माण प्रक्रिया तेज कर दी है।

  • सर्वे के बाद लगभग 300 मकानों और 100 दुकानों को नोटिस जारी किए जाएंगे, मुआवजा और पुनर्वास प्रक्रिया शुरू होगी।

  • निर्माण कार्य 2025 के अंत तक या 2026 की शुरुआत में शुरू होने की संभावना है, और इसे पूरा होने में लगभग 3 साल लगेंगे91014

  • सरकार का दावा है कि निर्माण के दौरान किसी भी सेवायत या पुजारी के अधिकारों का हनन नहीं होगा।

कॉरिडोर का स्वरूप और सुविधाएं

विशेषता

कुल क्षेत्रफल लगभग 5 एकड़,

लागत 500 करोड़ रुपये

एंट्री गेट 3

पार्किंग क्षेत्र लगभग 30,000 वर्गमीटर

दुकानों के लिए स्थान 800 वर्गमीटर

अन्य सुविधाएं वेटिंग एरिया, टॉयलेट, सुरक्षा पोस्ट, लॉजिंग आदि

निष्कर्ष: आगे क्या?

बांके बिहारी कॉरिडोर विवाद केवल एक विकास परियोजना का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह वृंदावन की सांस्कृतिक अस्मिता, स्थानीय लोगों की आजीविका और धार्मिक भावनाओं से जुड़ा गहरा प्रश्न है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को परियोजना लागू करने की अनुमति तो दे दी है, लेकिन स्थानीय समाज का विरोध बरकरार है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार विरोधियों को कैसे मनाती है, मुआवजा और पुनर्वास प्रक्रिया कितनी पारदर्शी रहती है, और क्या वृंदावन अपनी आध्यात्मिक पहचान के साथ आधुनिकता का संतुलन बना पाता है या नहीं।