कैसी अद्भुत कृपा कि पूरा परिवार बना संत? – एक प्रेरक कथा
जानिए महाराष्ट्र के समीप एक साधारण परिवार की अद्भुत यात्रा, जिन्होंने श्री हरिवंश बाबा जी की कृपा से अपना संपूर्ण जीवन वृंदावन धाम में भजन, सेवा और साधना में समर्पित कर दिया। जानिए कैसे एक परिवार के सदस्य के निधन के समय सद्गुरु देव भगवान ने अपनी दिव्य भूमिका निभाई और कैसे गुरु कृपा से पूरा परिवार संत बना। यह कथा समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
SPRITUALITY


परिचय
आज के भौतिक युग में जब परिवारों में सांसारिकता और भौतिक सुख-सुविधाओं की होड़ लगी है, ऐसे में यदि कोई पूरा परिवार विरक्त भाव से संत जीवन को अपना ले, तो यह घटना न केवल अद्भुत है, बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन जाती है। इसी विषय पर आधारित है "कैसी अद्भुत कृपा कि पूरा परिवार बना संत?" – यह कथा महाराष्ट्र के समीप एक परिवार की है, जिन्होंने श्री हरिवंश बाबा जी की कृपा और मार्गदर्शन में अपना संपूर्ण जीवन वृंदावन धाम में भजन-भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे एक परिवार के सदस्य के निधन के समय सद्गुरुदेव भगवान ने अपनी दिव्य भूमिका निभाई, कैसे उनकी कृपा से पूरा परिवार संत बना, और किस तरह यह यात्रा एक साधारण गृहस्थ जीवन से विरक्त संत जीवन तक पहुँची।
परिवार का प्रारंभिक जीवन और वृंदावन से परिचय
यह परिवार मूलतः हरियाणा के पानीपत के पास समालखा क्षेत्र में निवास करता था। प्रारंभ में ये एक सामान्य गृहस्थ जीवन जी रहे थे, लेकिन ठाकुर जी के प्रति लगाव और भक्ति की भावना उनमें बचपन से ही थी। धीरे-धीरे, संतों के सत्संग और वृंदावन धाम की यात्राओं ने उनके मन में वैराग्य और भजन-भक्ति के बीज बो दिए।
परिवार की माताजी बताती हैं कि जब वे बार-बार वृंदावन आती थीं, तो उन्हें वहाँ की दिव्यता और शांति इतनी भा गई कि संसारिक जीवन फीका लगने लगा। धीरे-धीरे, उनके मन में यह दृढ़ निश्चय हुआ कि अब जीवन का शेष समय वृंदावन धाम में ही व्यतीत करना है। इसी भावना के साथ उन्होंने अपने बच्चों को वृंदावन के गुरुकुल में दाखिला दिलाया और स्वयं भी वहाँ बसने का निर्णय लिया।
श्री हरिवंश बाबा जी से प्रथम भेंट
वृंदावन में निवास के दौरान, परिवार के सदस्य संतों के दर्शन और सत्संग में सम्मिलित होते रहते थे। एक दिन, परिक्रमा के दौरान, माताजी की मुलाकात श्री हरिवंश बाबा जी से हुई। बाबा जी के दर्शन मात्र से ही उन्हें एक अनूठी आत्मीयता और शांति का अनुभव हुआ। धीरे-धीरे, परिवार के अन्य सदस्य भी बाबा जी के सान्निध्य में आने लगे।
बाबा जी का जीवन अत्यंत विरक्त, सरल और भक्ति में लीन था। वे अधिकतर एकांत में रहते, साधना और सेवा में तल्लीन रहते थे। परिवार के सदस्य बताते हैं कि बाबा जी ने कभी भी किसी को अपने पास बुलाने का आग्रह नहीं किया, लेकिन उनकी दिव्यता और प्रेम ने स्वयं ही सबको आकर्षित कर लिया। उनके सान्निध्य में रहकर परिवार के सभी सदस्य भजन, सेवा और साधना में रत हो गए।
संत जीवन की ओर यात्रा
परिवार के तीनों सुपुत्र – श्री हरिवंश नरैण बाबा जी, श्री माधव शरण बाबा जी और श्री केशव शरण बाबा जी – सभी ने बाबा जी के मार्गदर्शन में संत जीवन को अपनाया। माता-पिता ने भी गृहस्थ जीवन का परित्याग कर, पूर्ण रूप से विरक्त भाव से वृंदावन धाम का अखंड वास स्वीकार किया।
इस परिवर्तन की यात्रा में सबसे बड़ा योगदान गुरु कृपा का रहा। बाबा जी के सत्संग, उपदेश और दिव्य सान्निध्य ने परिवार के प्रत्येक सदस्य के हृदय में भक्ति और वैराग्य की ऐसी ज्वाला जला दी कि सांसारिक मोह-माया स्वतः ही छूटती चली गई। परिवार के सदस्य बताते हैं कि बाबा जी की कृपा से ही उन्हें यह मार्ग मिला, अन्यथा सांसारिक बंधनों से मुक्त होना सहज नहीं था।
एक सदस्य की मृत्यु के समय सद्गुरु की भूमिका
परिवार के एक सदस्य, श्री प्रेम तरंगिनी शरण जी, जिनका कुछ वर्ष पूर्व निकुंज वास (मृत्यु) हो गया, उनके अंतिम समय की घटना अत्यंत मार्मिक और दिव्य रही। परिवार के अनुसार, जब उनका देहांत हुआ, तब स्वयं सद्गुरु देव भगवान श्री हरिवंश बाबा जी ने अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया में मार्गदर्शन और सहायता की। उन्होंने अपने हाथों से अंतिम संस्कार कराया, और परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया।
यह घटना न केवल परिवार के लिए, बल्कि सभी शिष्यों और भक्तों के लिए यह संदेश देती है कि सच्चे गुरु अपने शिष्यों का साथ जीवन के अंतिम क्षण तक निभाते हैं। गुरु की कृपा से मृत्यु भी एक साधना और मोक्ष का माध्यम बन जाती है, और शिष्य को भय, शोक या मोह नहीं होता। परिवार ने अनुभव किया कि गुरु की छत्रछाया में मृत्यु भी एक उत्सव के समान है, जहाँ आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है।
गुरु कृपा का प्रभाव और संत जीवन की विशेषताएँ
परिवार के सभी सदस्य आज वृंदावन धाम में अखंड वास कर रहे हैं। वे भजन, कीर्तन, सेवा और साधना में अपना जीवन समर्पित कर चुके हैं। संत जीवन अपनाने के बाद, उन्होंने सांसारिक सुखों, भोग-विलास और संपत्ति का त्याग कर दिया। बाबा जी के सान्निध्य में रहकर उन्होंने यह अनुभव किया कि सच्चा सुख केवल भक्ति, सेवा और गुरु कृपा में ही है।
परिवार के सदस्य बताते हैं कि संत जीवन में आने के बाद, उनके मन में कभी कोई अभाव, दुख या असंतोष नहीं रहा। गुरु की कृपा से उन्हें हर परिस्थिति में संतोष, आनंद और शांति का अनुभव होता है। वे कहते हैं कि गुरु कृपा ही केवलम – अर्थात, केवल गुरु की कृपा ही सब कुछ है, बाकी सब माया है।
संत जीवन का समाज पर प्रभाव
इस परिवार की कथा समाज के लिए एक अद्भुत प्रेरणा है। आज जब परिवारों में कलह, तनाव और भौतिकता का बोलबाला है, ऐसे में यदि एक संपूर्ण परिवार संत जीवन को अपनाता है, तो यह समाज के लिए एक आदर्श बन जाता है। यह कथा यह भी दर्शाती है कि गुरु कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है, और भक्ति का मार्ग केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पारिवारिक भी हो सकता है।
निष्कर्ष
"कैसी अद्भुत कृपा कि पूरा परिवार बना संत?" – यह कथा न केवल एक परिवार की, बल्कि उन सभी साधकों की है, जो गुरु कृपा और भक्ति के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। सद्गुरु देव भगवान की कृपा से यह परिवार आज वृंदावन धाम में अखंड वास कर रहा है, और समाज को भक्ति, सेवा और वैराग्य का संदेश दे रहा है।
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि यदि मन में दृढ़ निश्चय, भक्ति और गुरु कृपा हो, तो सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर, संपूर्ण परिवार भी संत जीवन को अपना सकता है। गुरु की कृपा से ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य – परमात्मा की प्राप्ति – संभव है।
SOURCE:
https://youtu.be/Tekvc4dCyg0
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नोट: यह लेख वीडियो के ट्रांसक्रिप्ट, सत्संग और परिवार के अनुभवों पर आधारित है, जिसमें सद्गुरु की कृपा, संत जीवन की महिमा और परिवार की आध्यात्मिक यात्रा का विस्तार से वर्णन किया गया है।