भारत में बड़ी उम्र में तलाक के बाद भौतिकता (Materialistic Lifestyle) में सुख ढूंढ रहे लोग पर परम सुख तो मिलेगा वही
पिछले दशक में भारत में 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के दंपतियों के बीच तलाक (जिसे ‘ग्रे डिवोर्स’ या ‘सिल्वर सेपरेशन’ भी कहा जाता है) के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। पारंपरिक सोच के अनुसार, भारतीय समाज में विवाह जीवनभर का बंधन माना जाता था, लेकिन बढ़ती जीवन प्रत्याशा, आर्थिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत खुशहाली की चाह और बदलती सामाजिक मान्यताओं ने इस ट्रेंड को तेज़ किया है
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भारत में बड़ी उम्र में तलाक के बाद भौतिकता (Materialistic Lifestyle) में सुख ढूंढ रहे लोग पर परम सुख तो मिलेगा वही
परिचय
पिछले दशक में भारत में 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के दंपतियों के बीच तलाक (जिसे ‘ग्रे डिवोर्स’ या ‘सिल्वर सेपरेशन’ भी कहा जाता है) के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। पारंपरिक सोच के अनुसार, भारतीय समाज में विवाह जीवनभर का बंधन माना जाता था, लेकिन बढ़ती जीवन कामनाएं, आर्थिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत खुशहाली की चाह और बदलती सामाजिक मान्यताओं ने इस ट्रेंड को तेज़ किया है।
मैंने इस बारे में रिसर्च कि, तो मुझे कुछ चीजे मिली जो मैं आपके सामने पेश कर रहा हूँ और साथ ही अपनी टिप्पणी भी दे रहा हूँ, हो सकता है कि कुछ लोग मुझे से असहमत हो, कुछ सहमत हो. सबकी सोच अलग अलग होती है.
तलाक के बाद जीवन: सर्वे और केस स्टडी के निष्कर्ष
1. खुशहाली के पहलू
नई शुरुआत और आत्मनिर्भरता:
कई केस स्टडीज में पाया गया कि तलाक के बाद, खासकर महिलाएं, अपने पुराने शौक, करियर या सामाजिक जीवन में दोबारा सक्रिय हो जाती हैं। कई लोग अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और स्वतंत्र मानते हैं। उदाहरण के लिए, एक केस में तलाक के 10 साल बाद पिता पुणे में दोस्तों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं और मां बेंगलुरु में पेंटिंग का शौक पूरा कर रही हैं।स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन:
कुछ शोधों में यह भी पाया गया कि तलाक के बाद कई लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत में सुधार हुआ, क्योंकि वे अब तनावपूर्ण या अपमानजनक रिश्तों से बाहर आ गए।महिलाओं में अधिक संतुष्टि:
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, महिलाएं तलाक के बाद पुरुषों की तुलना में अधिक जल्दी खुशहाल और आत्मनिर्भर हो जाती हैं, क्योंकि वे घरेलू कामकाज और सामाजिक नेटवर्किंग में बेहतर होती हैं।
टिप्पणी
केस स्टडी है कि तलाक के 10 साल बाद पिता पुणे में दोस्तों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं और मां बेंगलुरु में पेंटिंग का शौक पूरा कर रही हैं। अब बताओ कि दोस्तों के साथ आदमी क्या पूरा समय साथ रहता होगा. घर पर कभी अकेला भी तो रहता होगा, अब कोई महिला क्या पूरा दिन या रोज रोज पेंटिंग करती होगी. हाँ जैसे कोई पति मारपीट करता होगा तो स्वाभाविक है कि ऐसे पति से छुटकार मिलेगा तो पत्नी खुश ही रहेगी. लेकिन अलग होने के बाद अगर लोग फिर से भौतिकवादी चीजो में ख़ुशी ढूँढेंगे तो फिर ठगे जाएंगे.
दरअसल, आध्यात्मिक नजरिये से देखा जाए तो आजकल लोगों में अध्यात्म का ज्ञान नहीं होने कि वजह से एक ग़लतफहमी बैठ गई है कि अच्छा खाना, अच्छी जगह घर खरीदना, अपने शौक पूरे करना, घूमना फिरना, अच्छे कपडे पहनना एक अच्छा जीवन है. जबकि यह असली सुख नहीं है, एक समय के बाद इन सब चीजो से लोग उबने लगते हैं. कई लोग तलाक लेने के बाद अपने सभी शौक पूरे करते है, जब उससे ऊब जाते है तो ख़ुशी के लिए दूसरी शादी भी कर लेते हैं, लेकिन फिर वही दिक्कत पैदा हो जाती है. दरअसल, हम जिन चीजो में सुख ढूंढ रहे है, यह सब चीजे नाशवान है, इनमे परम सुख नहीं है. परम सुख भगवान् की शरण में है. bhakti और अध्यात्म हमें सिखाता है कि हमें शुष्क वान्चा (दूसरों से सुख लेने कि भावना )नहीं करनी. हमें प्रसन्नता, गाली कि बौछारों, सुख दुःख आदि से विचलित नहीं होना; हमें कर्म दुसरो की सहायता के लिए करना है, अपनी ख़ुशी के लिए नहीं करना है. हमें नाम जप, bhajan कीर्तन और सत्संग करना चाहिए ताकि जीते जी भगवान् से साक्षातकार हो सके.
2. चुनौतियाँ और दुख के पहलू
एकाकीपन और सामाजिक अलगाव:
तलाक के बाद, खासकर बुजुर्ग पुरुषों में, अकेलापन, सामाजिक अलगाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं (जैसे डिप्रेशन, चिंता) अधिक देखी जाती हैं। भारत में संयुक्त परिवार की परंपरा टूटने से बुजुर्गों को भावनात्मक सहारा कम मिलता है।आर्थिक असुरक्षा:
तलाक के बाद महिलाओं को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, खासकर यदि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं। कई बार गुज़ारे भत्ते और संपत्ति का बंटवारा भी विवाद का कारण बनता है279।सामाजिक कलंक और शर्म:
भारतीय समाज में तलाक को अब भी कई जगह कलंक की तरह देखा जाता है, जिससे तलाकशुदा लोगों को सामाजिक आलोचना, अकेलापन और मानसिक तनाव झेलना पड़ता है613।मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
रिसर्च के अनुसार, तलाक के बाद अवसाद, चिंता, आत्मविश्वास में कमी, और आत्महत्या के विचार तक आ सकते हैं, खासकर महिलाओं में।
टिप्पणी
अगर हम भगवान् का सहारा लेते हुए आध्यात्म से परिचित होंगे, तो यह सब परेशानियां नहीं होगी. अध्यात्म आदमी को ऐसे स्तर पर उठा देंगा,जहाँ तनाव, आर्थिक तंगी, अवसाद, चिंता, आत्महत्या के विचार, लोगो क्या कहेंगे इसकी चिंता जैसी चीज की परवाह ही नहीं होती. मैंने लोगों में ऐसी स्थिति वृन्दावन में देखी है. जहां लोग भगवान् का सहारा लेकर परम सुख पा रहे हैं. मैंने अपनी टिप्पड़ी कर दी है, बाकी आप सर्वे और रेसेच के आंकड़े देख सकते है.
सर्वे और रिसर्च के आंकड़े
1. जीवन संतुष्टि और लचीलापन (Resilience) का अध्ययन
एक अध्ययन (60 तलाकशुदा महिलाओं पर) में पाया गया कि जिन महिलाओं में लचीलापन (resilience) अधिक था, उनमें जीवन संतुष्टि भी अधिक थी। तलाक के वर्षों (5 साल से कम या अधिक) के बावजूद, औसतन महिलाएं संतुष्ट और लचीली थीं4।
तलाक के तुरंत बाद मानसिक तनाव अधिक होता है, लेकिन समय के साथ कई महिलाएं अपनी स्थिति को स्वीकार कर आगे बढ़ जाती हैं48।
2. आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ
तलाक के बाद महिलाओं को बच्चों के पालन-पोषण, आर्थिक समस्याओं और सामाजिक आलोचना का सामना करना पड़ता है। कई केस स्टडीज में महिलाओं ने मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं और आत्महत्या के विचार की बात कही2।
पुरुषों के लिए भी अचानक घरेलू कामकाज, अकेलापन और सामाजिक नेटवर्किंग में कमी एक चुनौती बनती है1015।
3. ‘ग्रे डिवोर्स’ के कारण और समाज में बदलाव
अधिक जीवन प्रत्याशा, बच्चों के सेटल हो जाने के बाद खुद के लिए जीने की चाह, और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता मुख्य कारण हैं।
अब कई मामलों में बच्चे भी माता-पिता के फैसले का समर्थन करते हैं।
शहरी क्षेत्रों में यह ट्रेंड अधिक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी तलाक को सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया जाता।
तलाक के बाद खुशहाली बनाम दुख: कौन ज्यादा?
सकारात्मक पक्ष:
नई पहचान और आत्मनिर्भरता:
तलाकशुदा लोग, खासकर महिलाएं, नई पहचान बनाती हैं और अपने जीवन को नए सिरे से जीती हैं।मानसिक शांति:
तनावपूर्ण या अपमानजनक रिश्ते से बाहर आने के बाद मानसिक शांति मिलती है38।समर्थन समूह और काउंसलिंग:
अब काउंसलिंग, सपोर्ट ग्रुप्स और थेरेपी की मदद से लोग जल्दी रिकवर कर रहे हैं83।
नकारात्मक पक्ष:
एकाकीपन और सामाजिक कलंक:
खासकर पुरुषों और आर्थिक रूप से निर्भर महिलाओं में अकेलापन, सामाजिक आलोचना और मानसिक तनाव अधिक होता है।आर्थिक असुरक्षा:
तलाक के बाद आर्थिक चुनौतियां, खासकर महिलाओं के लिए, एक बड़ी समस्या है279।मानसिक स्वास्थ्य पर असर:
अवसाद, चिंता, आत्मविश्वास में कमी, और आत्महत्या के विचार जैसे गंभीर मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे देखे जाते हैं21।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
पहलूखुश/संतुष्ट (%)दुखी/चुनौतियों में (%)महिलाएं (तलाक के बाद)अधिक (समय के साथ)प्रारंभिक समय में अधिक दुख, बाद में संतुष्टिपुरुष (तलाक के बाद)कम (अकेलापन, घरेलू चुनौतियां)अधिक (अकेलापन, सामाजिक नेटवर्क की कमी)आर्थिक रूप से स्वतंत्रअधिक संतुष्टकम दुखीआर्थिक रूप से निर्भरकम संतुष्टअधिक दुखी
निष्कर्ष: क्या लोग खुश हैं या दुखी?
भारत में परिपक्व उम्र में तलाक के बाद जीवन का अनुभव मिश्रित है।
शुरुआती समय में: अधिकतर लोग मानसिक तनाव, अकेलापन, सामाजिक कलंक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं।
समय के साथ: खासकर महिलाएं, अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करती हैं, आत्मनिर्भर बनती हैं और संतुष्टि महसूस करती हैं। पुरुषों में अकेलापन और घरेलू चुनौतियां अधिक देखी जाती हैं।
समाज में बदलाव: अब शहरी क्षेत्रों में तलाक को अधिक स्वीकार किया जा रहा है, और सपोर्ट सिस्टम भी बेहतर हो रहे हैं।
अंततः, भारत में मॅच्योर एज में तलाक के बाद लोग दुख और चुनौतियों के दौर से गुजरते हैं, लेकिन समय के साथ, खासकर महिलाएं, संतुष्टि और खुशहाली की ओर बढ़ती हैं। समाज में बदलाव, काउंसलिंग, आर्थिक स्वतंत्रता और सपोर्ट नेटवर्क्स इस बदलाव को आसान बना रहे हैं।
नोट:
यह रिपोर्ट विभिन्न सर्वे, केस स्टडी और मनोवैज्ञानिक शोधों के आधार पर तैयार की गई है। हर व्यक्ति का अनुभव अलग हो सकता है, लेकिन समग्र ट्रेंड यही दर्शाते हैं कि समय के साथ लोग तलाक के बाद भी खुशहाल जीवन जी सकते हैं, बशर्ते उन्हें सही समर्थन और अवसर मिलें।