भगवान के होते हुए भी मंदिर में दुर्घटना क्यों होती है? – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का दृष्टिकोण
"मंदिर में दुर्घटना क्यों होती है, जब भगवान स्वयं वहां विराजमान हैं? जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन से—कर्म, प्रारब्ध और प्रभु की कृपा की गूढ़ व्याख्या।"
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भगवान के होते हुए भी मंदिर में ऐसी दुर्घटना क्यों हुई? – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन का सारांश
जब भी किसी मंदिर या धार्मिक स्थल पर कोई दुर्घटना होती है, तो अक्सर लोग यह प्रश्न करते हैं—"भगवान के होते हुए भी ऐसी अनहोनी कैसे हो गई?" इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने सत्संग में अत्यंत स्पष्टता से दिया है।
महाराज जी कहते हैं, "लोग पूछते हैं कि आपके प्रभु तो देख रहे थे, फिर भी ऐसी अनहोनी हो गई। तो प्रभु तो तब भी देख रहे थे जब आप पाप कर रहे थे, उस समय कुछ बोले थे क्या?"
"प्रभु तो उस समय भी देख रहे थे जब आप पाप कर रहे थे। जब परिणाम आएगा, तो चाहे मंदिर में हो, चाहे धाम में हो, चाहे गली में हो, वह तो सर्वत्र भगवान विराजमान हैं।"
"अवश्यं भोक्तव्यम् कृतं कर्म शुभाशुभम्—तुम्हें अपने कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा, चाहे जहां हो। या तो उसका प्रायश्चित कर लो, या इतना भजन कर लो कि कर्म नष्ट हो जाए। न भजन किया, न प्रायश्चित किया, तो कर्म भोगना ही पड़ेगा।"
"यह भगवान की कृपा है कि मंदिर या धाम में जो कष्ट मिलता है, वहां बहुत मिलना चाहिए था, वहां थोड़ा सा मिल गया। अगर मृत्यु भी हो गई, तो मंगल हो गया।"
"जो मिनट, जो सेकंड, जहां आपको मरना है, वहीं मरना है। यह पहले से निश्चित हो चुका है। भगवान क्यों बचाएंगे? आपने भगवान को पुकारा क्या? आपने भजन किया क्या? भगवान को क्यों जिम्मेदारी दी जाए?"
"भगवान ने आपको स्वतंत्रता दी है—आप जो कर्म करेंगे, वैसा फल मिलेगा। अच्छे कर्म करोगे, अच्छा फल मिलेगा। बुरे कर्म करोगे, बुरा फल मिलेगा। भगवान को भजो, भगवान की शरण में जाओ, तब भगवान जिम्मेदारी ले लेते हैं।"
"पूरे संसार को छूट है—पाप करो, पुण्य करो, अपने कर्म का फल भोगो, या भजन करके भगवान को प्राप्त कर लो।"
"भगवान बहुत बड़े हैं, गंभीर हैं, अगाध समुद्र हैं। आपको जीवन, बुद्धि, कर्मक्षेत्र दे दिया। अब आप क्या करते हैं, वह आपके ऊपर है।"
"जैसे बाप ने आपको बीज दे दिए, खेती दे दी—अब आप बबूल बोओगे, तो कांटे लगेंगे। इस कर्मक्षेत्र में पाप करोगे, तो उसका दंड मिलेगा।"
"आज अच्छा आदमी है, लेकिन कल उसने पाप किए, तो उसे भोगना पड़ेगा। भगवान कल को भी जानते हैं, वर्तमान को भी जानते हैं।"
"अगर आज भजन करोगे, पाप आचरण छोड़ दोगे, तो कल मंगलमय होगा। अगर पाप करोगे, तो आज भी दुख है, कल और दुखमय होगा।"
मुख्य बिंदु
भगवान सर्वत्र हैं, लेकिन कर्म का फल हर जगह भोगना ही पड़ता है।
मंदिर या धाम में होने वाली दुर्घटनाएं भी प्रारब्ध और कर्म के अनुसार ही होती हैं।
भगवान तभी हस्तक्षेप करते हैं जब हम उनकी शरण में पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं।
कर्म, प्रारब्ध और प्रभु की कृपा—तीनों का गूढ़ संबंध है।
भजन और प्रायश्चित से ही पुराने कर्मों का नाश संभव है।
निष्कर्ष
मंदिर में दुर्घटना या किसी भी धार्मिक स्थल पर अनहोनी होना, भगवान की उपस्थिति पर प्रश्न नहीं उठाता, बल्कि हमारे कर्म, प्रारब्ध और भक्ति की गहराई को दर्शाता है। भगवान ने हमें कर्म करने की स्वतंत्रता दी है—हम जैसा करेंगे, वैसा ही पाएंगे। यदि हम भजन और प्रायश्चित के मार्ग पर चलें, तो प्रभु की कृपा से हमारे कष्ट भी मंगलमय हो सकते हैं। यही श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का गूढ़ और व्यावहारिक संदेश है1।
Sources:
1 (YouTube प्रवचन टाइमस्टैम्प 42:59–46:07, श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज)