जब भगवान से मांगी गई इच्छाएं पूरी क्यों नहीं होतीं? – पूज्य श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन से
मंदिर में जाकर भगवान से मांगने पर भी इच्छा पूरी क्यों नहीं होती? जानिए प्रेमानंद जी महाराज के वचनों से, भगवान की भक्ति में भाव, पुण्य और तपस्या का महत्व। सच्ची भक्ति कैसे करें, पढ़ें विस्तार से।
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भगवान से मांगने की प्रवृत्ति और उसका परिणाम
महाराज जी से एक श्रोता ने प्रश्न किया – "जब हम मंदिर में जाकर भगवान से कुछ मांगते हैं, जैसे मेरे बेटे की नौकरी लग जाए, तो क्या भगवान हमारी मांग पूरी कर देते हैं?"
महाराज जी ने विस्तार से समझाया कि भगवान को हम किस भाव से मानते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण है। अगर हम भगवान को केवल दुकान की तरह मानते हैं, जहाँ सौदा होता है – पुण्य, तपस्या, अनुष्ठान के बदले में वस्तु – तो यह केवल लेन-देन का संबंध है। लेकिन अगर भगवान को अपना पिता, मित्र, प्रीतम, या स्वामी मानते हैं, तो संबंध बदल जाता है।
मांग पूरी होने की शर्तें
अगर आपके पास पर्याप्त पुण्य, तपस्या या अनुष्ठान है, तो आपकी मांग पूरी हो सकती है।
अगर भगवान से सच्चा प्रेम है, तो मांगने की आवश्यकता ही नहीं रहती; भगवान स्वयं आपके लिए व्यवस्था कर देते हैं।
भगवान सर्वज्ञ हैं, उन्हें पहले से आपकी आवश्यकता का पता है।
केवल मंदिर में जाकर मांगने से कुछ नहीं होता, जब तक आपके पास पुण्य-बल या सच्चा प्रेम नहीं है।
भगवान के साथ अपनापन और निष्काम भक्ति
महाराज जी ने कहा –
"भगवान को अपना मानो, पिता, मित्र, स्वामी, प्रीतम के रूप में। जब यह अपनापन आ जाता है, तो मांगने की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है। भगवान भाव के भूखे हैं, भाव से भजोगे तो भगवान लाचार होजाते हैं।
पुण्य, तपस्या और मांग
भंडारा, दान, पुण्य जितना किया, उसी के अनुसार फल मिलेगा।
अगर पुण्य 100 ग्राम है और मांग 1 किलो की है, तो पूरी नहीं होगी।
भगवान के सब बच्चे हैं, सबको समान भाव से देखते हैं। केवल किसी एक की मांग पूरी करना, बाकी के साथ अन्याय होगा।
श्रद्धा और भगवान की आज्ञा
अगर मांग पूरी नहीं होती, तो लोगों की श्रद्धा डगमगाने लगती है।
गीता और सद्ग्रंथों की बात मानो, भगवान की आज्ञा मानो, तभी कामना पूरी होगी।
तपस्या, पवित्र आचरण और पाप से बचना आवश्यक है।
बिना मांगे, भगवान आवश्यकता पड़ने पर स्वयं व्यवस्था कर देते हैं।
माता-पिता और भगवान का उदाहरण
महाराज जी ने उदाहरण दिया –
जिस प्रकार माता अपने बच्चे के लिए कब क्या देना है, कब स्नान कराना है, कब खिलाना है, यह जानती है, वैसे ही भगवान अपने भक्त के लिए चिंता करते हैं।
"भगवान का भजन किए बिना मांगते घूमो, कहाँ पूरी हो रही है? भगवान ऐसे नहीं सुनते। भाव बिन पुकार सुनते नहीं। भाव से पुकारो, भगवान लाचार हो जातेहैं।
निष्कर्ष
भगवान से मांगना गलत नहीं है, लेकिन मांग पूरी होने के लिए पुण्य, तपस्या, अनुष्ठान या सच्चा प्रेम चाहिए।
भगवान को अपना मानो, भाव से भजो, मांग अपने आप समाप्त हो जाएगी।
भगवान सर्वज्ञ हैं, आवश्यकता पड़ने पर खुद व्यवस्था कर देंगे।
केवल लेन-देन के भाव से मांगना, सच्ची भक्ति नहीं है।
संदेश:
सच्ची भक्ति, प्रेम और अपनापन ही भगवान को प्रसन्न करता है। पुण्य, तपस्या, अनुष्ठान और पवित्र आचरण से ही इच्छाएं पूरी होती हैं, लेकिन जब भाव शुद्ध हो जाता है, तो मांगने की आवश्यकता ही नहीं रहती – भगवान स्वयं आपकी चिंता करते हैं।
Sources:
यह लेख श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन (YouTube वीडियो: Bhajan Marg by Param Pujya Vrindavan Rasik Sant Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj) की 2:30 से 6:32 मिनट की क्लिप पर आधारित है।
https://youtu.be/GwWTX2CY7_A?si=Bk3k9BgXKhTn_b1W