भगवत्प्राप्ति का बड़ा सीधा रास्ता है- प्रथम माला

There is a very straight path to attain God

SPRITUALITY

आदरणीय परम पूज्य श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी की लाभदायक पुस्तक 'सत्संग के बिखरे मोती '

10/18/20241 min read

भगवत्प्राप्ति का बड़ा सीधा रास्ता है

हमने संत श्रीभाई जी (हनुमान प्रसादजी पोद्दार) की पुस्तक सत्संग के बिखरे मोती पुस्तक से बेहद कीमती अंश को यहाँ लिखने का सिलसिला शुरू किया था, लेकिन स्वामी रामसुखदास जी की पुस्तक गृहस्थ कैसे रहे के अंशों की लगातार और बड़ी श्रृखला दी गई. अब सत्संग के बिखरे मोती की आगे की श्रृखला को फिर से देना शुरू कर रहे है. आप ध्यान से पढ़े और समझे. आप इसके पहले के अंश दिए हुए लिंक में क्लिक करके पढ़ सकते है.

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https://www.kaisechale.com/-read-the-glory-of-chanting-the-lords-name-you-will-never-be-alone

https://www.kaisechale.com/-can-you-leave-it-to-god-to-decide-what-you-need

अब आगे चलते है.

३०-भगवत्प्राप्तिका बड़ा सीधा रास्ता है- 'हमारे एकमात्र आधार भगवान् हैं; हममें बुद्धि, शक्ति कुछ भी नहीं है, हम उन्हींपर निर्भर हैं-वे जो चाहें, करें।' ऐसा हृदयसे भाव कर लेना।

३१-समस्त शक्तियोंका स्त्रोत भगवान्से ही आरम्भ होता है।

३२-हमारी कितनी भारी भूल है, कितना बड़ा प्रमाद है कि हम भगवान्के विचारके सामने अपना विचार रखते हैं, मानो भगवान् विचार करना भी नहीं जानते।

३३-जो भगवान्की दयाके सीधे प्रवाहको रोकना चाहता है, वह भारी भूल करता है।

३४-भगवान् जब, जो, जैसे करें, वैसे ही होने दो, उसीमें तुम्हारा परम कल्याण है।

३५-रोगी कभी यह नहीं कहता कि हमें यह दवा दीजिये। वैद्यसे वह यह भी नहीं पूछता कि दवा किस चीजसे बनी है, बिना सोचे- विचारे ले लेता है। वह निर्भर करता है वैद्यके निदानपर और विश्वास करता है उसकी योग्यता तथा सहृदतापर। परंतु हम ऐसे अभागे हैं कि परमार्थ-पथमें हम अपना निदान आप करने बैठते हैं। ऐसा न करके केवल भगवान्पर विश्वास करनेकी ही आवश्यकता है।

३६-जो भगवान्को नहीं मानता और मनमानी करता है, उसका कल्याण नहीं होता।

३७-आरम्भसे ही भगवान्‌की दयापर, प्रेमपर, अनुग्रहपर अपना सारा-का-सारा जीवन छोड़नेवालेका, यहाँका और वहाँका सारा भार भगवान् सँभाल लेते हैं।

३८-हमारा सर्वस्व भगवान्‌का है- जिस क्षण यह भाव हुआ कि फिर बिना प्रयत्न ही अन्तर उज्ज्वल हो गया- परम पवित्र हो गया।

३९-बड़ी सीधी बात है- फिर सब कुछ अपने-आप हो जायगा। केवल विश्वास करो भगवान्की कृपापर। भगवान्‌की कृपा है, अपनी कृपासे ही वे मुझे अवश्य स्वीकार कर लेंगे। यह भाव निरन्तर बढ़ाते चले जाओ।

४०-बस, दो बात है- भगवान्‌की कृपापर विश्वास और भगवान्के नामका आश्रय। फिर कोई चिन्ता नहीं। ध्यान नहीं लगता-न सही, मन वशमें नहीं होता, न सही